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नौ माह की गहन चर्चा के बाद लागू हुई नोटबंदी: RBI पूर्व डिप्टी गवर्नर

आर गांधी ने बताया कि नोटबंदी का पहला विचार फरवरी 2016 में आया था

By Surbhi JainEdited By: Published: Thu, 09 Nov 2017 11:57 AM (IST)Updated: Thu, 09 Nov 2017 11:57 AM (IST)
नौ माह की गहन चर्चा के बाद लागू हुई नोटबंदी: RBI पूर्व डिप्टी गवर्नर
नौ माह की गहन चर्चा के बाद लागू हुई नोटबंदी: RBI पूर्व डिप्टी गवर्नर

नई दिल्ली (जेएनएन)। विपक्ष भले ही नोटबंदी के फैसले को जल्दबाजी में उठाया कदम करार दे रहा हो लेकिन हकीकत यह है कि मोदी सरकार ने यह ऐतिहासिक निर्णय नौ महीने के मंथन के बाद किया। भारतीय रिजर्व बैंक ने इसकी खूबियों और खामियों पर चर्चा और सुनियोजित तैयारी के बाद ही नोटबंदी का फैसला लागू किया।

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रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर. गांधी ने नोटबंदी का एक साल पूरा होने पर बेंगलुरु से टेलीफोन पर ‘दैनिक जागरण’ से विशेष बातचीत में यह अहम जानकारी दी। गांधी ने यह भी बताया कि आठ नवंबर 2016 को 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद होने की घोषणा के बाद रिजर्व बैंक ने आम लोगों को नई करेंसी उपलब्ध कराने के लिए किस तरह चाकचौबंद इंतजाम किए थे।

नोटबंदी के पीछे के राज खोलते हुए गांधी ने कहा कि इसका पहला विचार फरवरी 2016 में आया था। सरकार ने विमुद्रीकरण के बारे में रिजर्व बैंक की राय मांगी थी। आरबीआइ के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने पहले तो सरकार को मौखिक रूप से इस पर राय दी। बाद में एक विस्तृत नोट बनाकर सरकार को भेजा गया जिसमें स्पष्ट तौर पर बताया गया कि नोटबंदी की खामियां और खूबियां क्या-क्या हैं।

गांधी ने कहा कि जिस समय नोटबंदी के विचार पर चर्चा चल रही थी, उसी दौर में आरबीआइ नई सीरीज के 500 रुपये के नोट लाने की तैयारी कर रहा था। सरकार ने आरबीआइ से नई सीरीज के नोट लाने की प्रक्रिया को गोपनीय रखने को कहा। वैसे उस समय यह तय नहीं था कि नोटबंदी का निर्णय कब होगा और किस तारीख से होगा।

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को राष्ट्र को संबोधित करते हुए 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद करने का एलान किया था। इसके बाद रिजर्व बैंक ने 2000 रुपये और 500 रुपये के नए नोट जारी किए थे।

गांधी ने बताया कि वैसे तो नोट छापने वाली प्रेस से करेंसी को देश के विभिन्न भागों तक पहुंचाने की स्थापित प्रक्रिया है लेकिन नोटबंदी के बाद नई करेंसी लोगों को जल्द उपलब्ध कराने के लिए इस प्रक्रिया को और तेज किया गया।

नोटबंदी के फैसले के समय करीब 15 लाख करोड़ रुपये के पुराने नोट थे। ऐसे में अगर प्रत्येक नोट को बदला जाता तो आरबीआइ को 23 अरब नए नोट छापने पड़ते। आरबीआइ ने इन सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद यह फैसला किया।


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