रेलवे को 2,500 करोड़ का चूना
रेलवे अफसरों ने आयरन ओर की ढुलाई के नियम तो काफी सख्त बनाए, मगर उनका पालन सुनिश्चित कराने के उपाय करना भूल गए। नतीजतन चार सालों में आयरन ओर ढोने वाली कंपनियों ने रेलवे को लगभग 2,500 करोड़ रुपये का चूना लगा दिया। कैग की हालिया रिपोर्ट में इस गड़बड़ी को उजागर किया गया है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कै
नई दिल्ली। रेलवे अफसरों ने आयरन ओर की ढुलाई के नियम तो काफी सख्त बनाए, मगर उनका पालन सुनिश्चित कराने के उपाय करना भूल गए। नतीजतन चार सालों में आयरन ओर ढोने वाली कंपनियों ने रेलवे को लगभग 2,500 करोड़ रुपये का चूना लगा दिया। कैग की हालिया रिपोर्ट में इस गड़बड़ी को उजागर किया गया है।
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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] की संसद में पेश रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2008 से 2012 के दौरान 28 कंपनियों ने घरेलू इस्तेमाल के नाम पर निर्यात वाले आयरन ओर [लौह अयस्क] की ढुलाई के जरिये रेलवे के साथ धोखाधड़ी कर खूब फायदा उठाया। इन कंपनियों ने घरेलू इस्तेमाल के नाम पर रेलवे को बहुत कम भाड़ा अदा कर आयरन ओर का निर्यात कर दिया। घरेलू इस्तेमाल और निर्यात योग्य आयरन ओर के भाड़ों में भारी अंतर है। निर्यात वाले आयरन ओर व पेलेट का भाड़ा घरेलू इस्तेमाल वाले के मुकाबले करीब तीन गुना ज्यादा है। इन कंपनियों ने निर्यात वाले आयरन ओर की ढुलाई घरेलू इस्तेमाल वाला बताकर की। सार्वजनिक क्षेत्र की कुद्रेमुख आयरन ओर कंपनी तथा निजी क्षेत्र की रश्मि मेटालिक्स ने रेलवे को सबसे ज्यादा चूना लगाया। चार साल तक रेलवे में कोई भी इस गड़बड़ी को पकड़ नहीं सका। गड़बड़ी पकड़े जाने के बाद भी इन कंपनियों से 13,852 करोड़ रुपये की पेनाल्टी वसूलने में रेलवे अब तक नाकाम रहा है। उसने 15 कंपनियों को सिर्फ 1,875 करोड़ रुपये की वसूली के नोटिस भेजे हैं। कुद्रेमुख को 1,671 करोड़ तथा रश्मि मेटालिक्स को 660 करोड़ की वसूली का नोटिस दिया गया है।
कैग ने घोटाले पर हैरानी जताते हुए लिखा है कि रेलवे ने स्पष्ट नियम बनाए थे कि घरेलू इस्तेमाल के लिए आयरन ओर की ढुलाई करने वाली प्रत्येक कंपनी को छह कागजात जमा करने होंगे। इनमें औद्योगिक उद्यम ज्ञापन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का सहमति पत्र, वित्तीय वर्ष का फैक्ट्री लाइसेंस, ठेका श्रम कानून के तहत पंजीकरण प्रमाणपत्र, सेंट्रल एक्साइज पंजीयन प्रमाणपत्र तथा मासिक एक्साइज रिटर्न शामिल थे। इसके बावजूद ज्यादातर कंपनियों ने या तो ये कागजात जमा ही नहीं किए अथवा किए तो उनका ब्योरा गलत था। लंबे समय तक रेलवे प्रशासन ने इनकी जांच करने की जरूरत नहीं समझी।