'जीवनरेखा' को नए रूप की दरकार
आम जनता की सुविधाओं के लिहाज से हमारा रेल तंत्र काफी पिछड़ा नजर आता है। आम यात्रियों के लिए न तो हमारी ट्रेनों में पर्याप्त गति है और न ही स्तरीय सुख-सुविधाएं। यही हाल स्टेशनों तथा प्लेटफार्मो का भी है, जहां आने और जाने वाली ट्रेनों के लिए अलग प्लेटफार्मो का इंतजाम तक नहीं हो स्
आम जनता की सुविधाओं के लिहाज से हमारा रेल तंत्र काफी पिछड़ा नजर आता है। आम यात्रियों के लिए न तो हमारी ट्रेनों में पर्याप्त गति है और न ही स्तरीय सुख-सुविधाएं। यही हाल स्टेशनों तथा प्लेटफार्मो का भी है, जहां आने और जाने वाली ट्रेनों के लिए अलग प्लेटफार्मो का इंतजाम तक नहीं हो सका है।
मैंने दुनिया के कई देशों में ट्रेन का सफर किया है। ज्यादातर देशों में सामान्य ट्रेनें भी 200 किमी की रफ्तार पर चलती हैं। जर्मनी और कोरिया में मैंने 400 किलोमीटर का रास्ता दो घंटे में तय किया है। जबकि हम अभी अपनी राजधानी ट्रेन को भी 120 किमी से आगे नहीं ले जा पाए हैं। बाकी ट्रेनों की औसत रफ्तार तो 50 ही है। जर्मन ट्रेन आंतरिक बनावट व सुख-सुविधा में हमारी शताब्दी ट्रेन जैसी ही थी, लेकिन फर्क यह था कि इतनी रफ्तार पर भी इसके भीतर न तो कोई कंपन था और न ही वैसी आवाज जैसी शताब्दी ट्रेनों में आती है। ट्रेनें जितनी साफ भीतर से थीं उतनी ही बाहर से। बर्लिन स्टेशन में आने और जाने वाली ट्रेनों के लिए अलग प्लेटफार्म हैं। पूरा स्टेशन एक विशालकाय मॉल की तरह एकल छत के नीचे है जिसमें कई मंजिलों में तरह-तरह की शॉप, स्टॉल और रेस्त्रां बने हुए हैं। स्टेशन का आधार तल ही जमीन से दो मंजिल ऊपर है, और स्टेशन तक आने-जाने वाली रेलवे लाइनें एलीवेटेड हैं। शहर के भीतर ये लाइनें सड़क यातायात में किसी तरह का अवरोध पैदा नहीं करतीं। हमने देखा कि बर्लिन से बाहर निकलने के बाद ही इन लाइनों ने जमीन को छुआ। कुछ इसी तरह का इंतजाम कोरिया में सियोल रेलवे स्टेशन पर देखने को मिला। वहां आमतौर पर भीड़-भाड़ देखने को नहीं मिलती। लेकिन बर्लिन में उस रोज हमने प्लेटफार्म पर थोड़ी भीड़ देखी। मगर इतनी नहीं कि धक्कामुक्की हो। ज्यादातर यात्री ट्रेनें इलेक्ट्रीफाइड रूट पर चलती हैं और रफ्तार के लिहाज से हवा काटने के लिए इनके इंजन आगे को थोड़ा नुकीले होते हैं।
विकसित देशों की ट्रेनों में यात्रा करना लक्जरी माना जाता है। ट्रेनों के किराये विमान के किराये के समकक्ष या कभी-कभी ज्यादा भी होते हैं। 400-500 किमी तक की दूरी के लिए लोग विमान के बजाय ट्रेनों में चलना पसंद करते हैं। रेल सेवाओं में भारत जैसा सरकारी एकाधिकार नहीं है। अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग कंपनियां रेल चलाती हैं। ट्रेन चलाना वहां भी बहुत फायदे का सौदा नहीं है। लेकिन न्यूनतम स्तर बनाए रखना जरूरी है। भीड़ न होने से दुर्घटनाएं, खासकर क्रासिंग दुर्घटनाएं न के बराबर हैं। दुर्घटनाओं में मौत के मामले आश्चर्यजनक रूप से बेहद सीमित हैं। इसकी वजह बेहतर कोच डिजाइन है। जिससे टक्कर होने की स्थिति में भी बहुत कम जान-माल का नुकसान होता है। हमारे यहां भी जिन शताब्दी और राजधानी ट्रेनों में जर्मन डिजाइन पर आधारित एलएचबी कोच लगाए गए हैं उनमें दुर्घटनाओं और मौतों का आंकड़ा काफी कम है। काकोदकर कमेटी ने संपूर्ण भारतीय रेलवे में इन्हीं बोगियों को लगाने की सिफारिश की है।
मांग कम होने से ट्रेनों में रिजर्वेशन की कोई मारा-मारी विदेश में नहीं दिखती। कई ट्रेनों में तो आरक्षण की जरूरत ही नहीं पड़ती। आप अपना टिकट लीजिए और कहीं भी जाकर बैठ जाइए। दूसरी ओर हमारे यहां उन्नत पीआरएस सिस्टम के बावजूद उपलब्धता के मुकाबले मांग अत्यधिक होने से लोगों को आरक्षण नहीं मिलता। विदेश में ट्रेनों के भीतर खाने-पीने का इंतजाम भी अलग ढंग का होता है। ट्रेनों में पैंट्री कार होती है, जहां जाकर सुविधाजनक पैकेजिंग में खाद्य सामग्री ले सकते हैं। ट्रेनों के स्टापेज भी बहुत सीमित होते हैं।
जहां तक माल परिवहन का सवाल है तो भारत की तरह विदेश में भी मालगाडियां ही रेलवे के मुनाफे का मुख्य जरिया हैं। लेकिन भारतीय मालगाडियों के मुकाबले वहां मालगाड़ियां गति और वहन क्षमता के लिहाज से काफी आगे हैं। कोई मालगाड़ी 100 किमी से कम रफ्तार पर नहीं चलती। जबकि इनकी लंबाई तीन-तीन, चार-चार किमी तक होती है। हम अभी 25 टन के वैगन चलाने पर विचार कर रहे हैं जबकि वहां 35-50 टन क्षमता के वैगन चलाए जा रहे हैं।
भारतीय रेल बनाम चीन रेल
शीर्ष -- भारतीय रेल -- चीन रेल
शुरुआत -- अप्रैल 1853 -- 1876 (शंघाई-वूसंग)
1947 में ट्रैक -- 53596 रूट किमी -- 27000 रूट किमी
2011 में
ट्रैक (रूट किमी) -- 64,460 -- 91,000
हाईस्पीड ट्रैक (रूट किमी) -- 0 -- 9300
इंजन -- 18,304 -- 19,431
वैगन -- 2,29,381 -- 62,2284
यात्री बोगियां -- 59,713 -- 52,130
यात्री ढुलाई (अरब यात्री किमी) -- 842 -- 961
माल ढुलाई (अरब टन किमी) -- 627 -- 2947
कर्मचारी - 13 लाख -- 31 लाख
गति- यात्री ट्रेन (किमी/घंटा) -- 150 -- 350
गति- मालगाड़ी (किमी/घंटा) -- 100 -- 120
वार्षिक निवेश (करोड़ रुपये) -- 37,500 -- 1,50,000
-संजय सिंह (राष्ट्रीय उप ब्यूरो प्रमुख
दैनिक जागरण)