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इन्हें है समय से पहुंचाने का जुनून

दृश्य एक एक व्यक्ति को अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए ट्रेन पकड़नी है। समय कम है। ट्रेन छूटने का निर्धारित समय होने को है फिर भी वह व्यक्ति आश्वस्त दिख रहा है। दृश्य दो ट्रेन का समय हो चुका है। व्यक्ति की चिंता उसके माथे पर स्पष्ट देखी जा सकती है। उसे पता है कि ट्रेन अपने निश्चित स्

By Edited By: Published: Sun, 17 Feb 2013 02:24 PM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
इन्हें है समय से पहुंचाने का जुनून

दृश्य एक

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एक व्यक्ति को अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए ट्रेन पकड़नी है। समय कम है। ट्रेन छूटने का निर्धारित समय होने को है फिर भी वह व्यक्ति आश्वस्त दिख रहा है।

दृश्य दो

ट्रेन का समय हो चुका है। व्यक्ति की चिंता उसके माथे पर स्पष्ट देखी जा सकती है। उसे पता है कि ट्रेन अपने निश्चित समय से ही छूटेगी। सेकंड की भी लेटलतीफी यहां की रेलवे को पसंद नहीं है क्योंकि इन्हें यात्रियों को समय से पहुंचाने का जुनून जो है।

दृश्य एक का अंदाजा तो आप सहज ही लगा चुके होंगे। जी हां, सही सोच रहे हैं आप। यह है भारतीय रेल सेवा। राष्ट्र की जीवनरेखा। लेटलतीफी को इसने अपनी घोषित नीति बना रखी है। कोहरे वाले दिनों में कच्छप चाल से मंजिल तक सकुशल पहुंचने और पहुंचाने को इसने अपना मंत्र बना लिया है। इन्हें इसी बात पर संतोष है कि यात्रियों का समय कितना भी बर्बाद क्यों न हो, सभी सकुशल पहुंच तो रहे हैं। इस मंत्र के बूते रेलवे प्रशासन कोहरे और खराब मौसम संबंधी तमाम सुरक्षा इंतजामों से परहेज करता है। इसकी लेटलतीफी हमारे मानसिकता में घर कर गई है। इसके पीछे भारतीय रेलवे की कार्यशैली काफी हद तक जिम्मेदार है। हम सब मानकर चलते हैं कि ट्रेन तो लेट ही होगी। लिहाजा अपने पास समय ही समय है।

वहीं दृश्य दो में जापान रेलवे का चित्रण बताता है कि वह समय को लेकर कितने पाबंद हैं। दुनिया में कहीं भी ट्रेन की 60 सेकंड की लेटलतीफी को समय से पहुंचना माना जाता है, लेकिन जापान एक मात्र ऐसा देश है जहां इतने अंतराल को भी ट्रेन को देरी से पहुंचने में शामिल किया जाता है। लेटलतीफी की इसी परिभाषा के अनुसार यहां की 95 फीसद बुलेट ट्रेनें और 98 फीसद सामान्य ट्रेने समय से चलने को प्रतिबद्ध दिखती हैं। यह सिलसिला 1980 से लगातार कायम है। समय से पहुंचाने में शुमार यूरोपीय देशों की ट्रेनों में लेटलतीफी का मानक अलहदा है। जर्मनी और स्विट्जरलैंड में अगर कोई ट्रेन अपने निर्धारित समय से पांच मिनट या इससे अधिक देरी से पहुंचती है तो उसे लेट माना जाता है। इंग्लैंड में यह मानक 10 मिनट का है जबकि इटली और फ्रांस में यह समय 15 मिनट निश्चित है। यूरोपीय मानकों के अनुसार इंग्लैंड, फ्रांस और इटली की सभी 90 फीसद ट्रेनें अपने निर्धारित समय से चलती हैं। हालांकि भारतीय रेलवे भी अपने ट्रेनों की समयबद्धता का आंकड़ा 90 फीसद से ऊपर बताता है लेकिन इसमें एक तकनीकी पेंच है। भारतीय रेलवे ट्रेनों की समयबद्धता की गणना उनके सही समय पर गंतव्य स्थल तक पहुंचने के आधार पर करता है। लंबी दूरी की ट्रेनों में दर्जनों ऐसे स्टेशन आते हैं जहां ट्रेन काफी लेट रहती है और अंतिम गंतव्य स्थल पर निर्धारित समय पर यदि पहुंच जाती है तो उसे लेटलतीफी की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। आंकड़ों को दुरुस्त रखने वाली रेलवे की इस 'चाल' से ट्रेनों की चाल बढ़ती नहीं दिखती। बहरहाल वह पब्लिक भारतीय रेल की सभी सुविधाओं और सहूलियतों से वाकिफ है जिसने इसमें सफर किया है।

देरी के लिए माफी

अपनी ट्रेनों की समयबद्धता के लिए दुनिया में मशहूर जापान में अगर कोई ट्रेन पांच मिनट के लिए भी लेट हो जाती है तो ट्रेन का कंडक्डर देरी के लिए माफी मांगता है। यही नहीं, रेलवे कंपनी इसके लिए यात्रियों को 'देरी प्रमाणपत्र' भी जारी करती है। जब कभी किसी कारण के चलते ट्रेन को एक घंटा देरी हो जाती है तो यह वहां के समाचारपत्रों की सुर्खियां बनती है। प्रशासन को इसका जवाब देना पड़ता है।

कितनी देरी है 'लेटलतीफी'

देश --- निर्धारित समय से देरी

जापान -- 1

जर्मनी -- 5

स्विट्जरलैंड -- 5

इंग्लैंड -- 10

इटली -- 15

फ्रांस -- 15

-अरविंद चतुर्वेदी


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