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रघुराम राजन की अपील- रिजर्व बैंक की आज़ादी को महफूज रखे सरकार

आरबीआई गवर्नर ने भ्रामक आलोचनाओं को दरकिनार कर कहा कि सरकार केन्द्रीय बैंक की स्वायत्तता को बरकरार रखे।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Tue, 26 Jul 2016 09:30 PM (IST)Updated: Tue, 26 Jul 2016 10:17 PM (IST)
रघुराम राजन की अपील- रिजर्व बैंक की आज़ादी को महफूज रखे सरकार

मुंबई, प्रेट्र : रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के गवर्नर रघुराम राजन अपने आलोचकों को फिर आड़े हाथ लिया है। उन्होंने कहा कि ये लोग कहते घूम रहे हैं कि आरबीआइ ने ऊंची ब्याज दरों से ग्रोथ का गला दबा दिया। यह वही वक्त था जब देश की ग्रोथ रेट बाकी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले काफी ऊंची रही। उन्होंने अपील की कि भ्रामक आलोचनाओं को दरकिनार कर सरकार केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को सुरक्षित रखे।

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राजन ने गवर्नर के दूसरे कार्यकाल के बजाय चार सितंबर को रिटायर होने के बाद अकादमिक दुनिया में लौटने का फैसला किया है। उन्होंने महंगाई को लेकर आलोचकों पर पलटवार करते हुए कहा कि नीतिगत ब्याज दरें (रेपो रेट) ऊंची रखकर मांग और ग्रोथ का गला दबाने के बावजूद महंगाई काबू नहीं कर पाने वाले आरोप विरोधाभासी हैं। अब इन लोगों को कौन समझाए कि जब ये ऊंची ब्याज दरें ग्रोथ को मार रही थीं, उसी वक्त भारत प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे तेज रफ्तार से कैसे दौड़ लगा रहा था।

मीडिया भी लगातार महंगाई बनाम विकास की बेतुकी बहस चलाता रहा है। इसलिए सरकारें बिना जानकारी व दुष्प्रचार से प्रेरित आलोचनाओं का शिकार होने से बचें और केंद्रीय बैंक की आजादी को महफूज रखें। यह अर्थव्यवस्था की स्थिरता और टिकाऊ विकास के लिए जरूरी है। आरबीआइ के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने भी केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का पुरजोर समर्थन किया है।

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गवर्नर ने उन आलोचनाओं को भी नकार दिया कि महंगाई कच्चे तेल (क्रूड) के सस्ते होने के 'सौभाग्य' से नीचे आई है और इसमें रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की कोई भूमिका नहीं है। राजन ने साफ कहा कि कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्य जिस कदर घटे हैं, उसके मुकाबले पेट्रोल व डीजल के दामों में मामूली कटौती हुई है। क्रूड सस्ते होने का ज्यादा लाभ सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर अपने पास रख लिया। अगस्त, 2014 से जनवरी, 2016 के बीच भारतीय क्रूड बास्केट के दाम 72 फीसद नीचे आ गए। इसके मुकाबले पेट्रोल कीमतों में महज 17 फीसद की कमी हुई।

ऊंची महंगाई सबसे ज्यादा कमजोर वर्गो को सताती है, मगर कीमतों में तेज बढ़ोतरी को लेकर शायद ही किसी ने चिंता दिखाई। महंगाई को पीछे धकेलने की राजनीतिक पहल के अभाव में यह और भी जरूरी हो जाता है कि ऐसी संस्थाएं बनाई जाएं जो समूची अर्थव्यवस्था की स्थिरता को बरकरार रखें। शायद यही वजह रही कि पिछली सरकारों ने समझदारी दिखाई और आरबीआइ को काफी हद तक आजादी दी।

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राजन के मुताबिक यह भी आरोप लगाए गए कि उन्होंने मौद्रिक नीति बहुत ज्यादा कठोर रखी। जबकि सचाई यह है कि क्रेडिट ग्रोथ में सुस्ती के लिए बड़ी हद तक सरकारी बैंकों के बढ़ते फंसे कर्जो (एनपीए) की समस्या जिम्मेदार है। गवर्नर ने आरोप लगाया कि अत्यधिक कर्ज बोझ तले दबे कंपनियों के प्रमोटरों ने ही बैंकों में एनपीए की सफाई के उनके अभियान के खिलाफ आवाज उठाई। कुछ सरकारी बैंकों के वे प्रमुख भी प्रमोटरों के मददगार बने, जिनका थोड़ा कार्यकाल बचा था। उन्होंने कड़ी कार्रवाई करने व एनपीए को बाहर लाने के बजाय समस्या को अपने उत्तराधिकारी को सौंपना बेहतर समझा।


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