राजन को कम सैलरी मिलने का दुख, वेतन प्रणाली पर उठाए सवाल
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रघुराम राजन ने केन्द्रीय बैंकों में सुधार को लेकर कई सुझाव दिए हैं।
मुंबई, प्रेट्र : रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन महसूस करते हैं कि उन्हें कम वेतन मिलता है। सरकारी बैंकों की वेतन प्रणाली में उनको गंभीर विसंगतियां दिखती हैं। राजन ने कहा है कि जहां एक ओर शीर्ष स्तर पर वेतन कम हैं तो दूसरी ओर निचले पायदान के कर्मचारियों का वेतन ज्यादा है। टॉप लेवल पर कम सैलरी होने की वजह से ही बैंकों को प्रतिभाओं को आकर्षित करने में मुश्किल पेश आती है।
राजन ने मजाक में ही इशारा किया कि खुद उन्हें भी लगता है कि उनका वेतन कम है। सितंबर में पद छोड़ रहे राजन यहां आयोजित एक बैंकिंग कॉन्फ्रेंस में पहुंचे थे। वह बोले कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निश्चित तौर पर सैलरी को लेकर समस्या है। यही प्रतिभाओं को लाने की राह में रोड़ा है। खासतौर से विशेष पदों के लिए तो सैलरी ज्यादा होनी ही चाहिए।
हाल में रिजर्व बैंक ने शीर्ष अधिकारियों के मासिक वेतन सार्वजनिक किए थे। वेतन के आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई 2015 में राजन का कुल मासिक वेतन 1,98,700 रुपये रहा। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष में चीफ इकोनॉमिस्ट रहे राजन ने शिकागो यूनिवर्सिटी से छुट्टी लेकर गवर्नर पद संभाला है। चार सितंबर को कार्यकाल समाप्त होने के बाद वह वापस अकादमिक दुनिया में लौट जाएंगे।
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आंकड़ों से साफ होती है सूरत सरकारी और निजी बैंकों में टॉप-लेवल सैलरी में काफी अंतर है। इसका पता सरकारी बैंकों की सालाना रिपोर्ट से चलता है। भारतीय स्टेट बैंक की मुखिया अरुंधती भट्टाचार्य को बीते वित्त वर्ष महज 31.1 लाख रुपये बतौर वेतन मिले। इसकी तुलना में एचडीएफसी बैंक के एमडी आदित्य पुरी को इसी अवधि में 9.7 करोड़ रुपये वेतन में प्राप्त हुए।
दोनों के वेतन में यह अंतर 30 गुने से ज्यादा का है। स्थितियां बदलने के लिए सुझाव राजन ने सुझाव दिया है कि निजी बैंकों की तर्ज पर सरकारी बैंकों को भी ईएसओपी (इंप्लॉयी स्टॉक ओनरशिप प्लान) जैसे रिवार्ड्स देने चाहिए। निचले स्तर पर बेहतर पेस्केल भी अवसरों का स्रोत हो सकता है। यहां तक क्लास थ्री के लिए आरबीआइ का मेहनताना काफी आकर्षक है जिससे अत्यधिक योग्य लोगों को आकर्षित करने में मदद मिलती है। क्लास थ्री नौकरियों में भी काफी इंजीनियर और एमबीए मिल जाते हैं। इनका सदुपयोग किया जा सकता है।
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