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खाद्य तेलों में महंगाई से मिलेगी राहत, सरकार कर रही आयात शुल्क घटाने की तैयारी, जल्द हो सकता है फैसला

तथ्य यह है कि वर्ष 1994-95 तक घरेलू खपत का मात्र 10 फीसद Edible oil ही आयात किया जाता था। लेकिन अब कुल जरूरतों के लगभग 65 फीसद खाद्य तेलों की भरपाई आयात से हो रही है। भारतीय बाजार में सालाना 2.5 करोड़ टन खाद्य तेलों की जरूरत होती है।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Sun, 13 Jun 2021 08:36 AM (IST)Updated: Mon, 14 Jun 2021 06:32 AM (IST)
खाद्य तेलों में महंगाई से मिलेगी राहत, सरकार कर रही आयात शुल्क घटाने की तैयारी, जल्द हो सकता है फैसला
Import Duty on Edible Oils P C : Pixabay

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आम उपभोक्ताओं की रसोई का बजट बिगाड़ रहे खाद्य तेलों की महंगाई को थामने के लिए जल्दी ही कुछ पुख्ता उपाय किए जाने की संभावना है। उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों पर काबू पाने के लिए गठित मंत्रिसमूह (जीओएम) की प्रस्तावित बैठक में अगले सप्ताह इस पर कोई फैसला हो सकता है। संभावित उपायों में खाद्य तेलों के आयात शुल्क में कटौती ही सबसे सहज और स्वाभाविक विकल्प बचा है, जिस पर विचार किया जा सकता है। इन्हीं अटकलों को देखते हुए घरेलू खाद्य तेल बाजार में हलचल भी शुरू हो गई है।

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वैश्विक स्तर पर खाद्य तेलों के मूल्य में तेजी का असर तो घरेलू बाजार पर पड़ा ही है, रबी सीजन में तिलहनी फसलों की पैदावार भी प्रभावित हुई है। इसके साथ ही सरसों तेल में दूसरे खाद्य तेलों की मिलावट की मिली छूट को समाप्त करने से सरसों तेल का मूल्य बहुत बढ़ा है। जून, 2020 में जिस सरसों तेल का मूल्य 120 रुपये किलो था, वही वर्तमान में 170 रुपये प्रति किलो हो गया। सोयातेल का मूल्य 100 से बढ़कर 160 रुपये और पामोलिन ऑयल 85 रुपये से बढ़कर 140 रुपए तक पहुंच गया है। कमोबेश अन्य खाद्य तेलों के मूल्य भी इसी तर्ज पर बढ़ गए हैं।

आम उपभोक्ताओं की महंगाई की इन दिक्कतों को देखते हुए सरकार जल्द पुख्ता कदम उठा सकती है। सूत्रों के मुताबिक, जीओएम की बैठक में इस मुद्दे पर उचित फैसला लिए जाने की पूरी संभावना है। उपभोक्ता मामले मंत्रालय की ओर से इस तरह का प्रस्ताव रखा जा सकता है।

सरकार की इस पहल की भनक जिंस बाजार तक पहुंच गई है। सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन फॉर आयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (कोएट) के प्रेसिडेंट सुरेश नागपाल ने बताया कि सीमा शुल्क में कटौती की अफवाह भर से बाजार में कीमतें टूटी हैं। मात्र एक दिन में फ्यूचर सौदों में सोयाबीन में सात रुपये और सरसों तेल में पांच से छह रुपये की गिरावट आई है। नागपाल ने कहा कि सरकार की पहल से खाद्य तेलों में 10 फीसद तक की कमी आ सकती है।

तथ्य यह है कि वर्ष 1994-95 तक घरेलू खपत का मात्र 10 फीसद खाद्य तेल ही आयात किया जाता था। लेकिन अब कुल जरूरतों के लगभग 65 फीसद खाद्य तेलों की भरपाई आयात से हो रही है। भारतीय बाजार में वर्तमान में सालाना 2.5 करोड़ टन खाद्य तेलों की जरूरत होती है, जिसमें से 1.50 करोड़ टन से ज्यादा का आयात करना पड़ता है। देश में 45 लाख टन सोयाबीन तेल, 75 लाख टन पाम ऑयल, 25 लाख टन सूरजमुखी तेल तथा पांच लाख टन अन्य तेलों का आयात किया जाता है।

वर्ष 2020-21 में देश में कुल 3.66 करोड़ टन तिलहनी फसलों का उत्पादन हुआ है। इसमें मूंगफली 1.01 करोड़ टन, सोयाबीन 1.34 करोड़ टन और सरसों की हिस्सेदारी लगभग एक करोड़ टन रही है। लेकिन इतनी पैदावार से खाद्य तेलों की जरूरतों को पूरा करना संभव नहीं है। यही वजह है कि वैश्विक स्तर पर कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का सीधा असर हमारी रसोई पर पड़ता है।


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