नियम लागू न हो पाने से आरबीआई की साख पर सवाल, आधा दर्जन नियम लिए वापस
आरबीआई एक के बाद एक नये नियम लागू कर रहा है और जिस तरह से दबाव में उसे इन नियमों को वापस लेना पड़ रहा है, सने आरबीआई की साख को लेकर कई अहम सवाल उठा दिये हैं
नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। नोटबंदी लागू होने के बाद जिस तरह से आरबीआई एक के बाद एक नये नियम लागू कर रहा है और जिस तरह से दबाव में उसे इन नियमों को वापस लेना पड़ रहा है, उसने आरबीआई की साख को लेकर कई अहम सवाल उठा दिये हैं। आरबीआई ने अगर कुछ नियमों को वापस लिया है तो उसके तकरीबन आधा दर्जन ऐसे नियम भी हैं जिन्हें लागू ही नहीं किया जा सका। इसमें कुछ नियम तो ऐसे हैं जिसे वित्त मंत्रलय के साथ शीर्ष स्तरीय बैठक में लिया गया।
सिर्फ एक दिन लगी स्याही:
आठ नवंबर, 2016 को नोटबंदी लागू होने के बाद जब बैंकों के सामने लोगों की भीड़ बढ़ी तो वित्त मंत्रलय व आरबीआई के बीच उचस्तरीय बैठक में पुराने नोट बदलने को आने वाले ग्राहकों की अंगुली में स्याही लगाने का फैसला किया गया। ताकि वे एक हफ्ते तक फिर बैंक नहीं आयें। लेकिन आरबीआई के निर्देश के बावजूद स्याही हर बैंक शाखा तक नहीं पहुंच सकी। इस बीच चुनाव आयोग ने भी इस फैसले पर ऐतराज जताया। बहरहाल, दो दिनों बाद किसी भी बैंक ने स्याही का इस्तेमाल नहीं किया।
कभी नहीं मिली पूरी राशि:
सरकार ने नियम बनाये कि हर ग्राहक सप्ताह में 24 हजार रुपये की राशि निकाल सकता है। लेकिन यह एक ऐसा नियम है संभवत: एक फीसद बैंकों में भी पालन नहीं किया गया। आज की तारीख में भी बैंक नकदी देने में राशनिंग कर रहे हैं।
बुजुर्गों को अलग लाइन का इंतजार
ग्राहकों की भीड़ देखते हुए यह भी फैसला किया गया कि बुजुर्गों के लिए बैंक अलग पंक्ति लगाएंगे। यह नियम भी दो दिनों से ज्यादा लागू नहीं हो पाया। कुछ जगहों पर बुजुर्गों को तरजीह जरूर दी गई लेकिन अधिकांश जगहों पर बैंक उनके लिए अलग पंक्ति की व्यवस्था नहीं कर सके।
शादी के लिए ढ़ाई लाख रुपए
सरकार के सुझाव पर रिजर्व बैंक ने शादी-ब्याह वाले परिवार को ढ़ाई लाख रुपए देने की व्यवस्था की। लेकिन इसके लिए ऐसे नियम बनाये गये जिसे लागू करना बैंकों के वश में नहीं था। सलन, शादी में मिठाई बनाने वालों और टैंट वालों से पूछताछ कर यह सत्यापन करना कि उनके बैंक खाते नहीं है। कुछ ही मामलों में ये नियम भी लागू हुए। अधिकांश लोगों को शादी के कार्ड लेकर खाली हाथ ही बैंक शाखा से लौटना पड़ा।
किसानों को कर्ज की प्रतीक्षा
नोटबंदी उस समय लागू हुई थी जब देश में बुवाई का काम चरम पर था। किसानों की दिक्कतों को खत्म करने के लिए बैंकों को निर्देश दिया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त कर्ज उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो। लेकिन इस पर अमल करने में बैंक बुरी तरह से असफल रहे। नोटों की कमी की वजह से किसानों को समय पर कर्ज नहीं मिल सका।
पेट्रोल पंप पर नकदी
जनता की परेशनी को देख सरकार आरबीआई ने पोट्रोल पंपों व सरकारी भवनों में बैंक मित्रों (बैंकिंग करेस्पांडेंट) के जरिए नकदी वितरित करने की योजना शुरु की। लेकिन सिर्फ गिने चुने पेट्रोल पंपों पर भीड़ बढ़ी तो पेट्रोल पंपों ने ही इससे हाथ खींच लिया। जब सरकार को यह सूचना मिली की इसकी आड़ में पेट्रोल पंपों पर दूसरी तरह का खेल शुरु हो गया है तो उसने भी बढ़ावा देना बंद कर दिया।