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राजनीतिक मतभेदों से धीमी होगी आर्थिक सुधार प्रक्रिया

भारत में राजनीतिक मतभेदों के चलते आर्थिक सुधारों की रफ्तार धीमी रहेगी।

By Anand RajEdited By: Published: Tue, 28 Jun 2016 01:44 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jun 2016 03:22 AM (IST)
राजनीतिक मतभेदों से धीमी होगी आर्थिक सुधार प्रक्रिया

चेन्नई। भारत में राजनीतिक मतभेदों के चलते आर्थिक सुधारों की रफ्तार धीमी रहेगी। प्रमुख ग्लोबल क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने सोमवार को यह बात कही। अलबत्ता एजेंसी ने अपने बयान में हाल ही में एफडीआइ (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) नियमों में दी गई ढील को सकारात्मक बताया। मूडीज के मुताबिक कारोबारी माहौल में सुधार और निवेश प्रक्रिया को आसान बनाने में प्रगति के बावजूद दो प्रमुख क्षेत्रों में सुधार ठप हैं। पहला वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और दूसरा भूमि अधिग्रहण विधेयक।

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बयान में कहा गया है कि इन मतभेदों की वजह से सुधारों की प्रक्रिया समान नहीं रह पाएगी। सरकार की 20 जून को एफडीआइ नीति में ढील देने की घोषणा सुधारों की निरंतरता दिखाती है। इससे निजी निवेश के लिए रास्ता तैयार होगा और उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा। अधिक एफडीआइ भारत की बाह्य वित्तपोषण की जरूरत ऐसे समय में पूरी करेगी, जब पोर्टफोलिया का प्रवाह सीमित है।

पिछले दो वर्षों में कुल एफडीआइ में वृद्धि देखने को मिली है। 31 मार्च, 2016 को खत्म हुए वित्तवर्ष में यह सर्वाधिक स्तर पर था। एफडीआइ लगातार तीन वित्त वर्ष के औसत 24.2 अरब से बढ़कर 36 अरब हो गया था। फिलहाल एफडीआइ की आवक चालू खाते के घाटे की तुलना में अधिक है। यह सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का लगभग एक फीसद है। इससे पूर्व वित्त वर्ष में यह जीडीपी का 4.8 फीसद है।

ये भी पढ़ें- भारतीय रुपये के मुकाबले पौंड और लुढ़का रेटिंग एजेंसी ने उम्मीद जताई कि इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के विकास से एफडीआइ बढ़ेगी। इससे भारत के बड़े महानगरों और निवेश व उत्पादन क्षेत्रों के बीच "मेक इन इंडिया" और "स्मार्ट सिटी" पहल के तहत नेटवर्क बनेगा। मूडीज के मुताबिक, केवल अधिक एफडीआइ से ही भारत में विकास की रफ्तार व उत्पादकता तेज नहीं होगी। एफडीआइ फिलहाल कुल अचल संपत्ति का 10 फीसदी है। यह बंद पड़े घरेलू निजी निवेश का विकल्प नहीं है।भारत में राजनीतिक मतभेदों के चलते आर्थिक सुधारों की रफ्तार धीमी रहेगी। प्रमुख ग्लोबल क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने सोमवार को यह बात कही। अलबत्ता एजेंसी ने अपने बयान में हाल ही में एफडीआइ (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) नियमों में दी गई ढील को सकारात्मक बताया। मूडीज के मुताबिक कारोबारी माहौल में सुधार और निवेश प्रक्रिया को आसान बनाने में प्रगति के बावजूद दो प्रमुख क्षेत्रों में सुधार ठप हैं। पहला वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और दूसरा भूमि अधिग्रहण विधेयक।
बयान में कहा गया है कि इन मतभेदों की वजह से सुधारों की प्रक्रिया समान नहीं रह पाएगी। सरकार की 20 जून को एफडीआइ नीति में ढील देने की घोषणा सुधारों की निरंतरता दिखाती है। इससे निजी निवेश के लिए रास्ता तैयार होगा और उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा। अधिक एफडीआइ भारत की बाह्य वित्तपोषण की जरूरत ऐसे समय में पूरी करेगी, जब पोर्टफोलिया का प्रवाह सीमित है।
पिछले दो वर्षों में कुल एफडीआइ में वृद्धि देखने को मिली है। 31 मार्च, 2016 को खत्म हुए वित्तवर्ष में यह सर्वाधिक स्तर पर था। एफडीआइ लगातार तीन वित्त वर्ष के औसत 24.2 अरब से बढ़कर 36 अरब हो गया था। फिलहाल एफडीआइ की आवक चालू खाते के घाटे की तुलना में अधिक है। यह सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का लगभग एक फीसद है। इससे पूर्व वित्त वर्ष में यह जीडीपी का 4.8 फीसद है।
रेटिंग एजेंसी ने उम्मीद जताई कि इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के विकास से एफडीआइ बढ़ेगी। इससे भारत के बड़े महानगरों और निवेश व उत्पादन क्षेत्रों के बीच "मेक इन इंडिया" और "स्मार्ट सिटी" पहल के तहत नेटवर्क बनेगा। मूडीज के मुताबिक, केवल अधिक एफडीआइ से ही भारत में विकास की रफ्तार व उत्पादकता तेज नहीं होगी। एफडीआइ फिलहाल कुल अचल संपत्ति का 10 फीसदी है। यह बंद पड़े घरेलू निजी निवेश का विकल्प नहीं है।

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