पेमेंट बैंकों की वित्तीय हालत चिंताजनक, आदित्य बिड़ला ग्रुप ने पेमेंट बैंक बंद करने का किया एलान
कंपनी ने बताया है कि उसके कारोबार में हाल के दिनों में जिस तरह के बदलाव हुए हैं उसे देखते हुए अब आगे इसमें बने रहना संभव नहीं है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। देश के वित्तीय ढांचे में एक के बाद एक चिंता के नए निशान दिखाई देने लगे हैं। अभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को लेकर उपजी चिंताएं खत्म भी नहीं हुई थीं कि सिर्फ भुगतान के उद्देश्य से स्थापित पेमेंट बैंकों को लेकर नई चिंता पैदा हो गई है। शनिवार को आदित्य बिड़ला समूह ने अपने पेमेंट बैंक को बंद करने का एलान किया। आदित्य बिड़ला आइडिया पेमेंट बैंक ने अपने अपने ग्राहकों को सूचित किया है कि 26 जुलाई से पहले वे पेमेंट बैंक में पड़ी अपनी पूरी रकम का हस्तांतरण कर ले। हर ग्राहक के खाते की राशि उसे वापस मिल जाए, इसके लिए पर्याप्त वित्तीय उपाय कर लिए गए हैं।
कंपनी ने बताया है कि उसके कारोबार में हाल के दिनों में जिस तरह के बदलाव हुए हैं उसे देखते हुए अब आगे इसमें बने रहना संभव नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने अगस्त, 2015 में आदित्य बिड़ला समूह समेत देश के 11 बड़े कॉररपोरेट घरानों को पेमेंट बैंक खोलने की अनुमति दी थी। इसमें एयरटेल, पेटीएम, इंडिया पोस्ट, फिनो जैसी कंपनियां शामिल थीं। तकरीबन चार वर्षो बाद एयरटेल और पेटीएम के अलावा अन्य किसी भी पेमेंट बैंक की स्थिति सही नहीं है। कई बैंक तो अभी तक परिचालन भी सही तरीके से शुरू नहीं कर पाए हैं।
पेमेंट बैंकों को हर खाते में अधिकतम एक लाख रुपये रखने या हस्तांतरित करने का अधिकार होता है। जानकारों का कहना है कि ग्राहकों की पहचान संबंधी (केवाईसी) कड़े नियम, जमा राशि जुटाने में बड़े बैंकों से मिल रही प्रतिस्पर्धा, बढ़ती लागत और आर्थिक मंदी की वजह से पेमेंट बैंक अभी तक ग्राहकों के भरोसे को जीतने में सफल नहीं रहे हैं।
इनकी पड़ी मार : वर्ष 2015 में पेमेंट बैंक का लाइसेंस देते हुए आरबीआइ व सरकार की तरफ से बताया गया कि इससे अभी तक बैंकिंग सेवा के दायरे से बाहर रहने वाले लोगों तक सेवा पहुंचाने का काम तेजी से होगा। लेकिन उसके बाद दो बड़े बदलाव हुए। पहला, प्रधानमंत्री जन धन योजना को सरकारी बैंकों ने अपने स्तर पर इतनी तेजी से लागू किया कि वर्ष 2017 तक देश की 99.7 फीसद आबादी तो बैंक सेवा से जोड़ दिया गया।
दूसरा, नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देते हुए सरकार ने यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआइ) शुरू किया, जिससे पेमेंट बैंकों की प्रासंगिकता और कम हो गई। रही सही कसर केवाईसी के नए नियमों ने पूरी कर दी। जिन दूरसंचार कंपनियों ने पेमेंट बैंक का लाइसेंस लिया था उन्हें पहले ऐसा लगा था कि चूंकि ग्राहकों का केवाईसी पहले हो चुका है, इसलिए इस मोर्चे पर उन्हें सहूलियत मिल जाएगी। लेकिन आरबीआइ ने साफ कर दिया कि हर ग्राहक के लिए केवाईसी प्रक्रिया नए सिरे से शुरू करनी होगी। इससे लागत काफी बढ़ गई। कर्ज नहीं देने की बाध्यता से भी इनके पास कमाई का कोई अतिरिक्त जरिया नहीं है। ऐसे में हो सकता है कि आने वाले दिनों में कुछ और पेमेंट बैंक अपना परिचालन बंद कर दें।