पवार प्याज निर्यात पर पाबंदी के खिलाफ
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। प्याज के मूल्य भले ही सातवें आसमान पर पहुंच गए हों, लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार के निर्यात पर पाबंदी के पक्ष में नहीं हैं। वह अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध के भी खिलाफ हैं। पवार ने कहा कि ग्लोबल स्तर पर देश कृषि उत्पादों के बडे़ निर्यातक के रूप में उभर रहा है। ऐसे फैसले से इस छवि को धक्का लगेगा। पवार बुधवार को यहां एक समारोह में हिस्सा लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। प्याज के मूल्य भले ही सातवें आसमान पर पहुंच गए हों, लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार के निर्यात पर पाबंदी के पक्ष में नहीं हैं। वह अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध के भी खिलाफ हैं। पवार ने कहा कि ग्लोबल स्तर पर देश कृषि उत्पादों के बडे़ निर्यातक के रूप में उभर रहा है। ऐसे फैसले से इस छवि को धक्का लगेगा। पवार बुधवार को यहां एक समारोह में हिस्सा लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
कृषि मंत्री ने कहा कि प्याज व अन्य कृषि उत्पादों की आपूर्ति कभी-कभी बाधित होने से थोड़े समय के लिए कीमतें बढ़ जाती हैं। इसका प्रभाव निर्यात पर नहीं पड़ना चाहिए। दुनिया में कृषि उत्पादों के बड़े निर्यातक की छवि को बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। प्याज मूल्य में हालिया तेजी भारी बारिश के चलते महाराष्ट्र जैसे राज्यों से आपूर्ति प्रभावित होने से आई है।
भारत से कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़कर 2.33 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह पिछले साल के 1.86 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले अधिक है। निर्यात की इस गति को बकरकार रखने के लिए विश्व बाजार में अपनी साख को बनाना भी जरूरी है। इसके लिए आयात-निर्यात नीति में स्थिरता आनी चाहिए।
सूत्रों के मुताबिक वाणिज्य और उपभोक्ता मामले मंत्रालय की ओर से प्याज की बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। पवार ने कहा कि बारिश के सामान्य होने के साथ ही ढुलाई व परिवहन व्यवस्था में सुधार से प्याज की आपूर्ति बढ़ेगी और कीमतें काबू में आ जाएंगी। चालू वित्त वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही में कुल 5.12 लाख टन प्याज का निर्यात हो चुका है। पिछले साल इसी अवधि में 5.17 लाख टन प्याज निर्यात किया गया था।
डेयरी पर आयोजित समारोह में पवार ने डेयरी क्षेत्र की कंपनियों से कहा कि वे दुग्ध प्रोसेसिंग में अपनी हिस्सेदारी को 30 से बढ़ाकर 50 फीसदी करें। बारिश सीजन में जब दूध का उत्पादन ज्यादा होता है, उस समय उत्पादकों को दूध का उचित मूल्य देना जरूरी है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भूमिहीन परिवारों के लिए खासतौर पर दूध उत्पादन की अहमियत बहुत ज्यादा है।