NPA पर संसदीय समिति में जवाब देने में SBI और PNB के छूटे पसीने
स्थाई संसदीय समिति के सदस्यों ने एक स्वर में कहा कि नीरव मोदी जैसे फ्रॉड बैंकों के स्तर पर सतर्कता न होने की वजह से ही होते है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। फंसे कर्जे (एनपीए) की गंभीर समस्या से जुझ रहे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुखों को सोमवार को वित्तीय मामलों की संसदीय समिति के सदस्यों के कुछ बेहद तल्ख सवालों का सामना करना पड़ा। भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार को जहां बैंकों में फ्रॉड पर समिति को आश्वासन देने में पसीने छूट गए तो पंजाब नेशनल बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील मेहता के लिए उद्योगपति नीरव मोदी कांड पर अपने बैंक का बचाव करना मुश्किल हो गया। स्थाई संसदीय समिति के सदस्यों ने एक स्वर में कहा कि नीरव मोदी जैसे फ्रॉड बैंकों के स्तर पर सतर्कता न होने की वजह से ही होते है। कुछ सदस्यों ने यह भी जानना चाहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सरकार के प्रति उत्तरदायी है या देश के प्रति।
समिति के एक सदस्य ने बताया, ‘आज की बैठक में मुख्य तौर पर चर्चा एनपीए और इसको लेकर आरबीआइ के नए नियम को लेकर हुई। सदस्य यह जानना चाहते थे कि बैंक किस तरह से एनपीए की समस्या से निबटने की कोशिश कर रहे हैं और आने वाले दिनों में यह किस तरफ जाएगा। एसबीआइ चेयरमैन चूंकि बैंकों से संगठन भारतीय बैंक संघ के प्रमुख भी हैं, इसलिए उनसे कई सवाल बैंकों की तरफ से उठाए जाने वाले कदमों को लेकर थे।
उन्होंने आश्वासन दिया कि एनपीए का सबसे खराब दौर बीत चुका है और अगली छमाही से बैंकों के वित्तीय प्रदर्शन पर भी इसका असर दिखाई देने लगेगा।’ सनद रहे कि एनपीए की वजह से बीते वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही (जनवरी-मार्च) में सरकारी बैंकों को भारी घाटा हुआ है। तकरीबन 17 सरकारी बैंकों को इस तिमाही में कुल 60 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का घाटा हुआ है जो देश के बैंकिंग इतिहास में रिकॉर्ड है।
जन हित को नजरंदाज करने का आरोप:
एसबीआइ के चेयरमैन के तौर पर कुमार से जब यह पूछा गया कि क्या जब एनपीए की समस्या पैदा हो रही थी या जब नोटबंदी से उनके लिए दिक्कतें पैदा रही थी तो उन्होंने सरकार से इस बारे में बात की। इसका संतोषप्रद जवाब नहीं मिलने पर एक सदस्य ने कहा कि आप सरकारी बैंक के अधिकारी भी सरकारी तेल कंपनियों की तरह काम करते हैं। कहने को तो आप आजाद हैं लेकिन नौकरी बचाने के लिए हमेशा सरकार के इशारे पर काम करते हैं। आप देश की जनता के हितों को नजरंदाज करते हैं। यह समस्या आप बैंक प्रमुखों ने भी पैदा की है। जब दूसरे क्षेत्र में समस्या पैदा होती है तो बैंक उसे दूर करते हैं लेकिन यह समस्या तो बैंकों ने खुद पैदा की है।
बैंकों के हालात पर फिल्मी बयां:
बैंकों के हालात पर एक सदस्य ने एक प्रसिद्ध फिल्मी गाने का एक मुखड़ा सुनाया कि..चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए.सावन जो अगन लगाए, उसे कौन बुझाए।
फिच ने पीएनबी की रेटिंग घटाई
फ्रॉड में फंसे पंजाब नेशनल बैंक की दिक्कतें कम नहीं हो रही हैं। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने पीएनबी की वायबिलिटी रेटिंग घटा दी है। बैंक के कर्जो की क्वालिटी बिगड़ने के कारण फिच ने यह कदम उठाया है। उसने बैंक की वायबिलिटी रेटिंग बीबी- से घटाकर बी कर दिया है। उसे रेटिंग वाच निगेटिव की श्रेणी में रखा है। फिच ने एक बयान में कहा कि पीएनबी की वायबिलिटी रेटिंग में दो चिन्हों की गिरावट से पता चलता है कि उसका क्रेडिट प्रोफाइल काफी खराब हुआ है।
यह कमजोरी फिच की उम्मीद से ज्यादा है। वायबिलिटी रेटिंग से परिचालन सुचारु रखने और विफलता टालने की क्षमता का आंकलन होता है। फरवरी में नीरव मोदी के फ्रॉड में 14000 करोड़ रुपये गलत तरीके से निकाले गए। इसके अलावा भी बैंक का एनपीए तेजी से बढ़ा। इसके कारण बैंक के कोर कैपिटलाइजेशन की स्थिति खराब हुई। इससे बैंक की कर्ज देने की लागत में काफी इजाफा हुआ। बैंक का घाटा बीते वित्त वर्ष में बढ़ना इसी का परिणाम है।
आखिर एनपीए इतना ज्यादा क्यों
एक सदस्य ने अमेरिका व भारतीय बैंकों का उदाहरण दिया कि किस तरह से अमेरिकी बैंक सालाना 30,000 अरब डॉलर का कर्ज देते हैं और भारतीय बैंक सिर्फ 1300 अरब डॉलर का कर्ज देते हैं। लेकिन भारतीय बैंकों का एनपीए 15 फीसद है जबकि अमेरिकी बैंकों में यह सिर्फ 1.3 फीसद है। कहने की जरूरत नहीं कि इसका भी जवाब बैंक प्रमुखों के पास नहीं था। वित्त की यह संसदीय समिति देश के बैंकिंग ढांचे की मौजूदा स्थिति पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रही है जिसे मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। 12 जून को समिति के सामने आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल की पेशी होनी है।