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फंसा कर्ज बैंको के विलय में बना बड़ा रोड़ा

भारी भरकम फंसे कर्जे (एनपीए) सरकार के लिए दोधारी तलवार बने हुए हैं। इस वजह से सरकारी क्षेत्र के बैंको का मुनाफा घटता जा रहा है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Mon, 16 May 2016 08:54 PM (IST)Updated: Mon, 16 May 2016 09:06 PM (IST)
फंसा कर्ज बैंको के विलय में बना बड़ा रोड़ा

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । भारी भरकम फंसे कर्जे (एनपीए) सरकार के लिए दोधारी तलवार बने हुए हैं। इस वजह से सरकारी क्षेत्र के बैंको का मुनाफा घटता जा रहा है। घटते मुनाफे और खराब वित्तीय स्थिति के कारण सरकार इन बैंकों में सुधार संबंधी कदम भी नहीं उठा पा रही है। बैंकों की खस्ताहाल वित्तीय स्थिति की वजह से ही सरकारी बैंकों में विलय व एकीकरण को लेकर वित्त मंत्रालय फिलहाल तेजी नहीं दिखाने के मूड में नहीं है। इसी वजह से भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) में इसके अन्य पांचों सहयोगी बैंकों के विलय का विचार भी फिलहाल त्याग दिया गया है।

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और नहीं सुधरी बैंकों की स्थिति, मुनाफे को भी लगी भारी चपत

बैंक बोर्ड ब्यूरो का साफ तौर पर मानना है कि जब तक इन बैंको की माली हालत मजबूत न हो, तब तक इन्हें विलय व एकीकरण की राह पर नहीं डालना चाहिए। ऐसे में एसबीआइ समूह के भीतर या अन्य बैंकों में विलय की राह अब अगले वर्ष ही निकलने के आसार हैं। बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान ही यह साफ कर दिया था कि बैंकों में विलय को लेकर अब ज्यादा देरी नहीं होनी चाहिए। लेकिन इन एक वर्ष के भीतर सरकारी बैंकों की माली हालात जिस तरह से बद से बदतर हुई है, उसमें इन्हें विलय के लिए तैयार करने में समझदारी नहीं है। पिछले हफ्ते बैंक बोर्ड ब्यूरो के साथ दर्जन भर बैंकों की बैठक में विलय व अधिग्रहण का मुद्दा भी उठा। लेकिन सभी की यह आम राय थी कि मौजूदा हालात बैंकों की सही वित्तीय तस्वीर पेश नहीं करती है।

वैसे बैंक विलय पर सुझाव देने के लिए सरकार की तरफ से एक समिति गठित की गई है। समिति को आठ दस छोटे सरकारी बैंकों को मिलाकर एक या दो बड़े बैंक में बदलने का रोडमैप देना है। हालांकि एसबीआइ व इसके सहयोगी बैंकों के विलय के लिए सरकार पहले से ही तैयार है। लेकिन बैंकों की माली हालत को देखते हुए वित्त मंत्रालय विलय पर कोई दबाव नहीं बनाना चाहता। एसबीआइ दो सहयोगी बैंकों का पहले ही विलय कर चुका है। अभी पांच बचे हुए हैं। इनका एक झटके में एसबीआइ के साथ विलय करने की तैयारी थी।

पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में पांचों सहयोगियों (स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर) की माली हालत पतली हुई है। इन पांचों बैंकों का संयुक्त मुनाफा इस तिमाही में सिर्फ 108 करोड़ रुपये रहा है। बीते वर्ष की समान अवधि में यह 1,179 करोड़ रुपये था। एनपीए के बढ़ते स्तर और इसके लिए ज्यादा राशि के प्रावधान की वजह से इन बैंकों का मुनाफा 90 फीसद तक कम हो गया है। स्टेट बैंक ऑफ पटियाला को इस तिमाही में 505 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।

पचास फीसद से ज्यादा एनपीए की वसूली संभव नहीं


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