सरकार की तरफ से राहत के बावजूद टैरिफ बढ़ाए बिना टेलीकॉम कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार नहीं
विश्लेषकों का मानना है कि कंपनियों का प्रति यूजर औसत रेवेन्यू जब तक साल 2015 के स्तर पर नहीं आएगा सरकार की तरफ से मिलने वाले किसी राहत पैकेज का लाभ नहीं होगा
नई दिल्ली, नितिन प्रधान। वित्तीय संकट में फंसी टेलीकॉम कंपनियों को सरकार की तरफ से भले ही राहत मिल रही हो, लेकिन बिना टैरिफ बढ़ाए कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार की कोई उम्मीद नहीं है। टेलीकॉम सेक्टर के जानकारों और विश्लेषकों का मानना है कि कंपनियों का प्रति यूजर औसत रेवेन्यू जब तक साल 2015 के स्तर पर नहीं आएगा, सरकार की तरफ से मिलने वाले किसी राहत पैकेज का लाभ नहीं होगा।
बुधवार को ही केंद्र सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों को राहत देते हुए स्पेक्ट्रम शुल्क भुगतान को दो वर्षो तक के लिए टाल दिया है। हालांकि, अभी एजीआर की अदायगी को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है और सचिवों की समिति उस पर विचार कर रही है। बावजूद इसके टेलीकॉम सेक्टर के एक्सपर्ट मान रहे हैं कि इस क्षेत्र के अन्य बकाया मुद्दों का हल ढूंढने के साथ-साथ टैरिफ दरों में बढ़ोत्तरी को अब टाला नहीं जा सकता।
दरअसल जानकारों का मानना है कि टेलीकॉम सेवाओं और डाटा को सस्ता करने की होड़ में कंपनियों की वित्तीय स्थिति बिगड़ती चली गई। साल 2015 में जब प्रति यूजर औसत रेवेन्यू 200 रुपये था, तब कंपनियां ठीक स्थिति में थीं। लेकिन वर्तमान में यह गिरकर एयरटेल के लिए 128 रुपये और वोडाफोन के लिए 107 रुपये रह गया है। इसका मतलब यह है कि एयरटेल प्रति ग्राहकों से हर महीने सिर्फ 128 रुपये और वोडाफोन आइडिया 107 रुपये का राजस्व हासिल कर रही है।
मॉर्गन स्टेनले के पराग गुप्ता के मुताबिक इसे वापस 2015 के स्तर पर लाना होगा। यद्यपि टेलीकॉम सेक्टर की तीनों बड़ी कंपनियां जियो, एयरटेल और वोडाफोन आइडिया टैरिफ दरों में वृद्धि करने की मंशा जता चुकी हैं। लेकिन इंडस्ट्री के के जानकारों का कहना है कि अगर 200 रुपये का प्रति यूजर औसत रेवेन्यू पाने के स्तर तक पहुंचना है तो कंपनियों को मौजूदा दरों से टैरिफ में 30 परसेंट की वृद्धि करनी होगी। ब्रिकवर्क रेटिंग के निदेशक (रेटिंग) विपुल शर्मा का कहना है कि टैरिफ दरों में 10 परसेंट की वृद्धि भी कंपनियों के घाटे में 30 परसेंट तक की कमी ला सकती है।
टेलीकॉम सेक्टर का रेगुलेटर ट्राई फिलहाल टैरिफ दरों में संशोधन पर विचार कर रहा है। मुकेश अंबानी नियंत्रित रिलायंस जियो टैरिफ दरों में बढ़ोतरी का समर्थन पहले ही कर चुकी है। क्रेडिट सुइस के मुताबिक यह ट्राई पर निर्भर करेगा कि वह कितनी वृद्धि की सिफारिश करता है। क्रेडिट सुइस मानती है कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह 20 परसेंट से अधिक होनी चाहिए।
टेलीकॉम सेक्टर के जानकारों का मानना है कि टैरिफ दरों में वृद्धि और सरकार के शुल्कों में कमी पूरे सेक्टर की दशा को सुधारने में मदद कर करेगी। पूरा सेक्टर करीब सात लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा है। यही नहीं, एयरटेल और वोडाफोन आइडिया दोनों ने ही चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में रिकॉर्ड घाटा दर्ज किया है। एयरटेल को 23,045 करोड़ रुपये और वोडाफोन आइडिया ने 50,921.9 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया है। दोनों कंपनियों पर एजीआर बकाया मद में 81000 करोड़ रुपये चुकाने की तलवार भी लटक रही है।
टेलीकॉम कंपनियों के संगठन सीओएआइ के महानिदेशक राजन एस मैथ्यूज का मानना है कि भुगतान में राहत के साथ साथ सेक्टर के अन्य मुद्दों को भी सुलझाना आवश्यक है। वर्तमान में टेलीकॉम कंपनियां अपने राजस्व का 30 परसेंट हिस्सा सरकारी टैक्स और शुल्कों के भुगतान पर खर्च कर रही हैं। इन शुल्कों व टैक्स दरों को तार्किक बनाना आवश्यक है।