बाजार का भरोसा जगाने आगे आए मनमोहन
रुपये के सबसे निचले स्तर पर गोता लगाने और शेयर बाजार चरमरमाने से घबराए बाजार का भरोसा जगाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद आगे आए हैं। भारत के फिर से 1
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। रुपये के सबसे निचले स्तर पर गोता लगाने और शेयर बाजार चरमरमाने से घबराए बाजार का भरोसा जगाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद आगे आए हैं। भारत के फिर से 1991 जैसे भुगतान संतुलन संकट से गुजरने की आशंकाओं को प्रधानमंत्री ने दो टूक अंदाज में खारिज किया। साथ ही उन्होंने अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण की नीति को पलटने से भी इन्कार किया है।
पढ़ें: अर्थव्यवस्था पर काले बादल
अपने आवास सात रेस कोर्स रोड पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के एक कार्यक्रम के बाद मीडिया से मुखातिब प्रधानमंत्री ने कहा, '1991 की ओर लौटने का कोई सवाल ही नहीं है। उस वक्त भारत में विदेशी मुद्रा विनिमय स्थिर दर आधारित था। अब यह बाजार से जुड़ा है। हम केवल रुपये में हो रहे तेज उतार-चढ़ाव को ही काबू कर सकते हैं।' यह पहली बार नहीं है कि प्रधानमंत्री को 1991 के हालात में अर्थव्यवस्था न जाने का भरोसा देना पड़ा हो। 29 मई, 2012 को यांगून से स्वदेश लौटते समय भी प्रधानमंत्री ने विश्वास दिलाया था कि हालात चिंताजनक हैं, लेकिन 1991 के हालात में जाने जैसी कोई बात नहीं है। उस समय भारत को सोना गिरवी रखना पड़ा था और आर्थिक सुधार लागू करने पड़े थे।
पढ़ें: संकट के गहराते बादल
शुक्रवार को बंबई शेयर बाजार यानी बीएसई का सेंसेक्स 769 अंक लुढ़कने और डॉलर की कीमत 62 रुपये तक पहुंचने से निवेशकों व बाजार का हौसला डोल गया। चारों तरफ से फिर 1991 जैसे संकट की बातें तेज हो गईं। जब उनसे पूछा गया कि चालू खाते का घाटा अब भी काफी ज्यादा है तो प्रधानमंत्री ने माना कि सोने का अधिक आयात इस समस्या की बड़ी वजह है। शुक्रवार को ही सोना 1,310 रुपये उछलकर 31,010 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गया था। इसी कड़ी में उन्होंने यह भी माना, 'लगता है कि हम काफी निवेश बेकार की संपत्तियों में कर रहे हैं।'
इस सवाल पर कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था से कुछ ज्यादा नियंत्रित हो रही है, जिससे ये मौजूदा समस्याएं उपजी हैं और क्या इस स्थिति को पलटा जाएगा, उनका जवाब था 'ऐसी संभावना नहीं है।' अपनी बात का समर्थन जुटाने के लिए प्रधानमंत्री ने वहां मौजूद एक बड़े आर्थिक पत्रकार का रुख करते हुए कहा, 'इनसे पूछिए, ये गुरु हैं।'
दरअसल, बाजार के नकारात्मक लक्षण इसलिए भी केंद्र सरकार की चिंता का सबब हैं, क्योंकि 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने आर्थिक व्यवस्था सुधरने का आश्वासन दिया था। 24 घंटे बाद ही रुपये और बाजार की ऐतिहासिक गिरावट ने सीधे प्रधानमंत्री के बाजार में इकबाल पर सवाल खड़े कर दिए। बाजारों के इस घटनाक्रम से चिंतित वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी कहा, 'मेरा मानना है कि यह शांत रहने का समय है। यह चिंतन का समय है। बहरहाल, देखते हैं कि अब अगले सप्ताह क्या होता है।'
अपनी नीति पर नए सिरे से विचार करे आरबीआइ
आरबीआइ के कार्यक्रम के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि केंद्रीय बैंक को मौजूदा हालात में अपनी मौद्रिक नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए। ग्रोथ की बजाय पूरी तरह महंगाई दर पर इस नीति का फोकस है, जबकि मौजूदा वैश्वीकृत और वित्तीय रूप से लाचार अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति की अपनी सीमाएं हैं। इस मौके पर वर्तमान गवर्नर डी सुब्बाराव और भावी गवर्नर रघुराम राजन भी मौजूद थे। अपने भाषण में सुब्बा ने कहा कि केंद्रीय बैंक की यह आलोचना अनुचित और सत्य से परे है कि उसे ग्रोथ की परवाह नहीं, सिर्फ महंगाई की चिंता है।