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EPFO से जुड़े इस फैसले से बढ़ जाएगी आपकी सैलरी, जानें क्या होगा बदलाव

EPFO Subscribers के लिए बड़ी खबरः केंद्र सरकार नियमों एक बदलाव करने जा रही है इससे आपकी इन हैंड सैलरी बढ़ सकती है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Mon, 09 Dec 2019 12:51 PM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 04:44 PM (IST)
EPFO से जुड़े इस फैसले से बढ़ जाएगी आपकी सैलरी, जानें क्या होगा बदलाव
EPFO से जुड़े इस फैसले से बढ़ जाएगी आपकी सैलरी, जानें क्या होगा बदलाव

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। केंद्र सरकार इस सप्ताह एक ऐसा फैसला करने जा रही है, जिससे संगठित क्षेत्र में काम कर रहे लोगों की आमदनी में वृद्धि हो सकती है। दरअसल, नरेंद्र मोदी सरकार इस सप्ताह सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2019 (सोशल सिक्योरिटी कोड बिल 2019) में संशोधन से जुड़े प्रस्ताव को इस सप्ताह संसद में पेश कर सकती है। इसके बाद चुनिंदा क्षेत्रों में कर्मचारी की सैलरी से ईपीएफ मद में कटने वाले 12 फीसद के अनिवार्य अंशदान घटाया जा सकता है। इससे कर्मचारियों की इन हैंड सैलरी में थोड़ी वृद्धि हो सकती है। नियोक्ता का अंशदान 12 फीसद पर बना रहेगा। हालांकि, इस कदम से रिटायरमेंट के समय कर्मचारियों के हाथ में आने वाली राशि में कमी आ जाएगी। 

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चुनिंदा सेक्टर पर ही लागू होगी नई व्यवस्था

वर्तमान व्यवस्था में संगठित क्षेत्र में कर्मचारी और नियोक्ता ईपीएफ मद में हर माह मूल वेतन का 12-12 फीसद का अंशदान करते हैं। हालांकि, यह नियम हर सेक्टर पर लागू नहीं होगा। इसकी अनुमति एमएसएमई, वस्त्र और स्टार्टअप क्षेत्र की कंपनियों के लिए ही होगी। 'लाइव मिंट' ने एक अधिकारी के हवाले से लिखा है कि 'सेक्टर के आधार पर ईपीएफओ में कर्मचारियों का अंशदान 9-12 फीसद के बीच रह सकता है। इस नए नियम से कर्मचारियों की टेक होम सैलरी बेहतर हो जाएगी।'

पांच साल पुरानी है योजना

इस योजना पर पिछले पांच साल से काम चल रहा है लेकिन इस सप्ताह इसे सदन के पटल पर रखा जा सकता है। हालांकि, इस कदम को अर्थव्यवस्था को सुस्ती के चंगुल से निकालने के लिए घरेलू खपत बढ़ाने वाली पहल के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। कर्मचारियों एवं नियोक्ताओं के अंशदान से हर साल ईपीएफओ के पास 1.3 ट्रिलियन रुपये जमा होते हैं। एक आकलन के मुताबिक चुनिंदा सेक्टर्स में अंशदान में दो से तीन फीसद की कमी से हर साल खर्च के लिए 3,000 करोड़ रुपये की बचत होगी। यह राशि ऐसे समय खपत बढ़ाने के लिहाज से बहुत कम है जब देश की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार छह साल से भी अधिक समय के निचले स्तर पर पहुंच गई है। 


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