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कजर्दाताओं का लक्ष्य कंपनी को बचाना है, बेचना नहीं

सरकार ने वर्ष 2016 में आइबीसी को पारित किया। बाद में इसमें सुधार किए गए, जिसके तहत कुछ खास प्रमोटर्स को दिवालियापन प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियों के लिए बोली लगाने से रोक दिया

By Surbhi JainEdited By: Published: Sat, 26 May 2018 10:56 AM (IST)Updated: Sun, 27 May 2018 10:41 AM (IST)
कजर्दाताओं का लक्ष्य कंपनी को बचाना है, बेचना नहीं
कजर्दाताओं का लक्ष्य कंपनी को बचाना है, बेचना नहीं

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (आइबीबीआइ) के चेयरमैन एम. एस. साहू ने शुक्रवार को कहा है कि आइबीसी का मकसद कंपनी को बिकने के लिए नहीं, बल्कि चलने योग्य होने के लिए तैयार करना है। विभिन्न कंपनियों की दिवालियापन प्रक्रिया का जिम्मा संभाल रही कर्जदाताओं की समिति को साहू ने हिदायत दी है कि उनका पहला लक्ष्य सभी साझीदारों के हित में कंपनी की संपत्ति के पुनरुद्धार पर काम करना है, कंपनी की अधिकतम कीमत तलाश कर उसे बेच देना नहीं।

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एक कार्यक्रम के मौके पर उन्होंने दो टूक कहा है कि इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी), 2016 का बेहतरीन उपयोग नहीं हो पा रहा है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कुछ ठोकरें खाने के बावजूद आइबीसी की अब तक की प्रगति से वे संतुष्ट हैं।

साहू ने कहा, ‘दिवालियापन प्रक्रिया से गुजर रही कंपनी के कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) का स्थान संरक्षक का होता है। उसकी जिम्मेदारी सभी साझीदारों के हितों का ध्यान रखना है। उन्हें आगे बढ़कर कंपनी को कारोबार करते रहने पर काम करना चाहिए, न कि कंपनी को बेच देने पर पूरा ध्यान लगाना चाहिए। सीओसी को जहां तक संभव हो, कंपनी के पुनरुद्धार पर ही ध्यान देना चाहिए। संभव नहीं हो, तो ही बिक्री की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए।’

साहू ने कहा, ‘आइबीसी का उपयोग उसके चरम तक नहीं हो पा रहा है। कंपनी का मूल्य अधिकतम पर पहुंचाना लक्ष्य बन गया है, क्योंकि आइबीसी कानून ऐसा कहता है। लेकिन आइबीसी कानून यह भी कहता है कि कंपनी का अधिकतम मूल्य किसी एक शेयरधारक या शेयरधारकों के ग्रुप के लिए नहीं, बल्कि हर एक साझीदार के हित में होना चाहिए।’

साहू ने जोर देकर कहा कि आइबीसी कानून की ताकतों और उसके बुनियादी मकसदों को समझने में चूक हो रही है। उन्होंने कहा कि समाधान योजना के तहत वर्तमान में दिवालियापन प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियों के सीओसी जो भूमिका निभा रहे हैं, असल में उनकी भूमिका उससे कहीं ज्यादा है। कर्जदाताओं के ऊपर ऐसा समाधान निकालने की बड़ी जिम्मेदारी होती है जो कंपनी को उबार सके। उन्हें ही कारोबार की समझ और समाधान के साथ चलने की वित्तीय ताकत होती है। उनमें कंपनी का प्रदर्शन सुधर जाने तक इंतजार करने की क्षमता होती है।

गौरतलब है कि सरकार ने वर्ष 2016 में आइबीसी को पारित किया। बाद में इसमें सुधार किए गए, जिसके तहत कुछ खास प्रमोटर्स को दिवालियापन प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियों के लिए बोली लगाने से रोक दिया। इसी सप्ताह आइबीसी के तहत कैबिनेट ने घर खरीदारों को ऑपरेशनल क्रेडिटर का दर्जा देकर बड़ी राहत दी है।1साहू ने कहा कि देशभर में नेशनल कंपनी लॉ टिब्यूनल (एनसीएलटी) की 12 खंडपीठों में 800 मामले स्वीकार किए गए हैं। खंडपीठों ने 2,500 मामले खारिज किए हैं, जबकि स्वैच्छिक दिवालियापन के भी 200 मामले दायर किए गए हैं। करीब 100 मामलों का निपटारा हो चुका है।

उन्होंने इस बात को भी सिरे से खारिज कर दिया कि आइबीसी के तहत मामला निपटाने के लिए 270 दिनों की समय-सीमा कम है। उन्होंने कहा कि अधिकतम मामले इस समय-सीमा के अंदर निपटा लिए गए हैं। उनका कहना था कि जिन मामलों में 270 दिनों की समय-सीमा कम मालूम पड़ रही है, उनमें से ज्यादातर मामले विभिन्न कानूनी पहलुओं में उलझे हैं।


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