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खाड़ी देशों पर ऊर्जा निर्भरता कम करने की कवायद में जुटी सरकार, अमेरिका व रूस से तेल व गैस खरीद पर ज्‍यादा जोर

भारत भी अपनी ऊर्जा नीति में एक अहम बदलाव यह कर रहा है कि वह अब तेल व गैस के लिए सिर्फ खाड़ी के देशों पर निर्भर नहीं रहना चाहता।

By Manish MishraEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2020 07:20 AM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2020 07:21 AM (IST)
खाड़ी देशों पर ऊर्जा निर्भरता कम करने की कवायद में जुटी सरकार, अमेरिका व रूस से तेल व गैस खरीद पर ज्‍यादा जोर
खाड़ी देशों पर ऊर्जा निर्भरता कम करने की कवायद में जुटी सरकार, अमेरिका व रूस से तेल व गैस खरीद पर ज्‍यादा जोर

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। फिलहाल अपनी उर्जा आपूर्ति के लिए मुख्यत: खाड़ी देशों पर निर्भर भारत अमेरिका के बाद अब रूस और दूसरे देशों की ओर रुख करेगा। पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस सचिव तरुण कपूर ने दैनिक जागरण को बताया कि ऊर्जा बाजार में भारी उथल-पुथल के बीच भारतीय कंपनियां दुनिया के कई देशों में नए तेल व गैस ब्लाक खरीदने की तैयारी में हैं। कोविड-19 ने वैश्विक कूटनीति व वैश्विक इकोनोमी में कई तरह के बदलाव करने की शुरुआत कर दी है। नए माहौल में भारत भी अपनी ऊर्जा नीति में एक अहम बदलाव यह कर रहा है कि वह अब तेल व गैस के लिए सिर्फ खाड़ी के देशों पर निर्भर नहीं रहना चाहता। 

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कपूर के मुताबिक अमेरिका के साथ दो वर्षों में ऊर्जा खरीद काफी बढ़ गई है और यह संभव है कि भारत को तेल व गैस आपूर्ति करने वाला यह एक विश्वसनीय साझेदार देश बने। उन्होंने बताया कि, ''भारत का अपना रणनीतिक भंडार भर चुका है, हम अमेरिका के विशाल रणनीतिक भंडार में तेल खरीद कर रखना चाहते हैं ताकि भविष्य में आपातकाल में या क्रूड के महंगा होने की स्थिति में उसका इस्तेमाल कर सकें।'' फरवरी, 2020 में क्रूड की अंतरराष्ट्रीय कीमत में भारी गिरावट होने के बाद भारत ने अपने रणनीतिक भंडार भर लिये हैं। कुछ दिन पहले ही भारत व अमेरिका के बीच एक समझौते पत्र पर हस्ताक्षर हुआ है जिसके मुताबिक अमेरिकी रणनीतिक भंडार के इस्तेमाल का रास्ता आगे खुल सकता है।

कपूर ने बताया कि ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरुरी है कि जहां तेल व गैस ब्लाक उपलब्ध हो, अब उन्हें खरीदें। अभी भी सरकारी क्षेत्र की ओएनजीसी (विदेश) ने विदेशों में तकरीबन 30 ऐसे ब्लाकों की खरीद कर रखी है। भारत की नजर प्राकृतिक गैस ब्लाकों पर है और इसके लिए सरकार के स्तर पर बातचीत हो रही है। लिक्विफायड नेचुरल गैस (एलएनजी) तकनीक होने की वजह से अब दुनिया के किसी भी कोने से गैस भारत तक लाना आसान हो गया है, यही वजह है कि गैस ब्लाकों में निवेश करने में भारत की खास रुचि है। 

सनद रहे कि पिछले वर्ष पीएम नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा के दौरान दोनो देशों के बीच गैस सेक्टर में दो अहम समझौते हुए थे। रूस के शहर व्लादिवोस्तोक से चेन्नई पोर्ट के बीच समुद्री मार्ग विकसित करने पर बात हो रही है। इस मार्ग का इस्तेमाल क्रूड के साथ ही एलएनजी आयात के लिए भी हो सकता है। कपूर बताते हैं कि भारत अभी अपनी खपत का 47 फीसद घरेलू स्रोतों से पूरी करता है। लेकिन जिस तरह से पूरी नीति ज्यादा से ज्यादा गैस खपत करने की लागू की जा रही है उसे देखते हुए हमें तीन से पांच वर्षो में बड़ी मात्रा में गैस की जरुरत होगी। घरेलू केजी बेसिन से अगले दो वर्षो में उत्पादन काफी बढ़ेगा, इसके बावजूद बाहर से काफी आयात करना होगा।


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