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राजकोषीय घाटे को भूल सरकार अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी पर लाने पर दे ध्‍यान: उद्योग जगत

उद्योग जगत का कहना है कि अभी राजकोषीय घाटे को लेकर चिंता करने की जरुरत नहीं है बल्कि सारा ध्यान किसी भी तरफ से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने व औद्योगिक जगत में भरोसा कायम करने का है

By Manish MishraEdited By: Published: Mon, 27 Apr 2020 08:05 AM (IST)Updated: Mon, 27 Apr 2020 08:05 AM (IST)
राजकोषीय घाटे को भूल सरकार अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी पर लाने पर दे ध्‍यान: उद्योग जगत
राजकोषीय घाटे को भूल सरकार अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी पर लाने पर दे ध्‍यान: उद्योग जगत

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। ऐसे समय जब केंद्र सरकार देश के उद्योग जगत के लिए एक आर्थिक पैकेज को लेकर गुणा-भाग कर रही है तब राजकोषीय घाटे को लेकर नई चिंताएं सामने आने लगी है। उद्योग जगत के प्रतिनिधियों का कहना है कि अभी राजकोषीय घाटे को लेकर चिंता करने की जरुरत नहीं है बल्कि सारा ध्यान किसी भी तरफ से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने व औद्योगिक जगत में भरोसा कायम करने का है। कोविड-19 की वजह से लागू लॉकडाउन की वजह से कम से दो महीने तक के लिए इकोनोमी ठप रहने जा रही है, ऐसे में इकोनोमी की गति सामान्य बनाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, भले ही इसके लिए राजकोषीय घाटे का स्तर बहुत ज्यादा हो जाए।

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एसोचैम के महासचिव दीपक सूद ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि, ''राजकोषीय घाटा तय करने के लिए एफआरबीएम कानून पर ही अभी रोक लगाने की जरुरत है। यह सरकार के हाथ खोल देगा और वह ज्यादा खुल कर खर्चे कर सकेगी, जिसकी जरुरत है। अभी देश की इकोनोमी की रफ्तार को सामान्य करने या कोविड-19 के पहले वाली स्थिति में पहुंचाने के लिए सरकारी खर्चे की भूमिका काफी होगी।'' एसोसैम ने यह बात वित्त मंत्रालय के साथ हुई अपनी बैठकों में भी रखी है।

सीआइआइ के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी एफआरबीएम कानून को खत्म करने की बात तो नहीं कर रहे हैं लेकिन उनके संगठन की राय है कि कम से कम 3-4 वर्षों तक तीन फीसद के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करने पर ध्यान देना मौजूदा हालात में संभव नहीं होगा। बनर्जी ने दैनिक जागरण को बताया कि अभी हालात अप्रत्याशित हैं और इससे निपटने के दूसरे देशों के तरीके को भी देखिए तो आप पाएंगे कि वहां की सरकारें घाटे की चिंता किए बगैर भारी भरकम राशि खर्च कर रही है ताकि बाजार में मांग बनी रहे और लोगों के रोजगार की रक्षा हो सके। 

उनका साफ मानना है कि सरकार को जल्द उद्योग जगत के लिए आर्थिक पैकेज लेकर सामने आना चाहिए वरना मुश्किलें बढ़ेंगी।दरअसल, एफआरबीएम कानून के तहत राजकोषीय घाटा देश की कुल इकोनोमी का 3 फीसद तय किया गया है और सरकार के लिए इस कानून का पालन आवश्यक है। अभी सरकार के राजस्व की स्थिति बहुत ही खराब होती दिख रही है और इकोनोमी को रफ्तार देने के लिए सरकार के खर्चे में भारी इजाफा की जरुरत बताई जा रही है। 

राज्य सरकारों ने भी केंद्र को यही सलाह दी है कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को मौजूदा तीन फीसद से बढ़ा कर 5 फीसद करने की अनुमति मिलनी चाहिए। पीएम नरेंद्र मोदी के साथ पिछली बैठक में कई राज्यों के मुख्य मंत्रियों ने इस मुद्दे को उठाया था और संभवत: आज होने वाली बैठक में यह एक प्रमुख मुद्दा रहेगा। केंद्र से इजाजत मिलने के बाद हर राज्य को भी अपने यहां कानूनी प्रावधान करना होगा। राज्यों में केरल इस मुद्दे को उठाने में सबसे आगे है। 


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