Move to Jagran APP

In Depth: स्पेस इंडस्ट्री में अब मामूली नहीं रहा भारत, 'मिशन शक्ति' से बढ़ेगा दबदबा

भारत की किफायती स्पेस इंडस्ट्री का अमेरिकी निजी कंपनियां यह कहते हुए विरोध कर रही हैं कि उनके लिए इसरो के साथ प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल है।

By Abhishek ParasharEdited By: Published: Wed, 27 Mar 2019 04:36 PM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2019 10:18 AM (IST)
In Depth: स्पेस इंडस्ट्री में अब मामूली नहीं रहा भारत, 'मिशन शक्ति' से बढ़ेगा दबदबा
In Depth: स्पेस इंडस्ट्री में अब मामूली नहीं रहा भारत, 'मिशन शक्ति' से बढ़ेगा दबदबा

नई दिल्ली (अभिषेक पराशर)। 'मिशन शक्ति' के तहत पृथ्वी की निचली कक्षा में करीब 300 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद उपग्रह को मिसाइल से मार गिराकर भारत उन देशों के ''एलीट क्लब'' में शामिल हो गया है, जिन्हें अंतरिक्ष का सुपरपावर कहा जाता है। अभी तक यह क्षमता सिर्फ अमेरिका, चीन और रूस के पास थी और अब भारत भी इनमें शामिल हो गया है।

prime article banner

अंतरिक्ष और उससे जुड़ी तकनीकी प्रयोगों के मामले में भारत, स्पेस इंडस्ट्री में दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों के दबदबे को चुनौती दे रहा है। एंटी सैटेलाइट क्षमता का प्रदर्शन करने के बाद इस इंडस्ट्री में उसकी दावेदारी और मजबूत हुई है।

भारत की इस उपलब्धि को कारोबारी नजरिए से समझने की कोशिश करते हैं। दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत का स्पेस सेक्टर पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में है और बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है।

2018 में स्पेस इंडस्ट्री का आकार 360 अरब डॉलर का रहा और इसके 5.6 फीसद सीएजीआर की दर से आगे बढ़ने की उम्मीद है, जो 2026 में 558 अरब डॉलर का हो जाएगा।

सैटेलाइट इंडस्ट्री एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री में जहां चीन की करीब 3 फीसद हिस्सेदारी है, वहीं भारत इस कारोबार में करीब 0.5 फीसद हिस्सेदारी पर कब्जा रखता है।

हालांकि, इतनी छोटी हिस्सेदारी के बावजूद भारत का स्पेस इंडस्ट्री करीब देश के 300 से अधिक सेक्टर को बढ़ाने में मददगार रहा है। ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री की 10 बड़ी सैटेलाइट बनाने वाली कंपनियों में भारत का इसरो भी शामिल था।

एसोसिएशन की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक स्पेस इंडस्ट्री चार अहम स्तंभों,

1. सैटेलाइट सर्विसेज

2.सैटेलाइट मैन्युफैक्चरिंग

3. लॉन्च इंडस्ट्री और

4.ग्राउंड इक्विपमेंट, पर टिकी हुई है।

2017 में इस इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा रेवेन्यू सैटेलाइट सर्विसेज (128.7 अरब डॉलर) से मिला। दूसरे नंबर पर 15.5 अरब डॉलर के रेवेन्यू के साथ सैटेलाइट मैन्युफैक्चरिंग रहा और तीसरे पायदान पर लॉन्च इंडस्ट्री मौजूद रही, जिसे 2017 में 4.6 अरब डॉलर की कमाई हुई।

भारतीय स्पेस इंडस्ट्री की कमाई में लॉन्चिंग का बड़ा योगदान रहा है।

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए सरकार ने बताया, 'जानकारी दिए जाने तक सरकार ने कुल 269 विदेशी उपग्रहों को पीएसएलवी की मदद से अंतरिक्ष में लॉन्च किया और उसे इससे 2.2 करोड़ डॉलर और 17.9 करोड़ यूरो की कमाई हुई।'

भारत ने अल्जीरिया, डेनमार्क, स्पेन, सिंगापुर, तुर्की, अमेरिका और ब्रिटेन समेत करीब दो दर्जन से अधिक देशों के सैटेलाइट को लॉन्चिंग की सुविधा देते हुए जबरदस्त कमाई की। सरकार ने संसद में जवाब देते हुए कहा कि वह आगे भी अन्य देशों के उपग्रहों को लॉन्च करने की सेवा को जारी रखेगी।

भारत के स्पेस प्रोग्राम को चलाने वाली सरकारी एजेंसी इसरो का करीब 33 देशों और बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ स्पेस प्रोजेक्ट को लेकर करार है और वह दुनिया के स्पेस कार्यक्रम के लिए लॉन्च पैड का सबसे बड़ा बाजार बनकर उभरा है।

भारत के बढ़ते दबदबे को इस बात से समझा जा सकता है कि इसकी किफायती स्पेस इंडस्ट्री का अमेरिकी निजी कंपनियां यह कहते हुए विरोध कर रही हैं कि उनके लिए इसरो के साथ प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल है, इसलिए अमेरिकी सरकार को अपने सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए इसरो की सेवा पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।

हालांकि, लगातार तेजी से बढ़ रहे भारतीय स्पेस इंडस्ट्री को कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।

भारत का स्पेस सेक्टर पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में है, जबकि दुनिया के अन्य देशों ने अपनी स्पेस इंडस्ट्री के बड़े हिस्से का निजीकरण कर रखा है, जिससे न केवल बड़े वैल्यू चेन का निर्माण हुआ है, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिली है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.