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वाहनों में आग पर तय हो निर्माताओं की जवाबदेही

नई दिल्ली, जाब्यू। वाहनों में आग लगने की बढ़ती घटनाओं ने भारत में वाहन निर्माण से संबंधित नीति-नियम और अनुपालन तंत्र की गंभीरता व विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लचर तंत्र के कारण अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी भारत में वाहन निर्माण में वैसी गंभीरता नहीं बरततीं, जैसी वे विकसित देशों में बरती जाती है। यही वजह है कि हर म

By Edited By: Published: Sat, 10 May 2014 08:15 PM (IST)Updated: Sat, 10 May 2014 08:15 PM (IST)
वाहनों में आग पर तय हो निर्माताओं की जवाबदेही

नई दिल्ली, जाब्यू। वाहनों में आग लगने की बढ़ती घटनाओं ने भारत में वाहन निर्माण से संबंधित नीति-नियम और अनुपालन तंत्र की गंभीरता व विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लचर तंत्र के कारण अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी भारत में वाहन निर्माण में वैसी गंभीरता नहीं बरततीं, जैसी वे विकसित देशों में बरती जाती है। यही वजह है कि हर मौसम में वाहनों में आग लगने की बढ़ती घटनाओं के बावजूद न तो वाहन कंपनियां चिंतित हैं और न सरकार के कान में जूं रेंग रही है।

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पिछले दिनों दिल्ली में टोयोटा इटियोस कार में अचानक आग लगने की घटना से यह हकीकत फिर उजागर हो गई है। मामले को वाहन के रखरखाव या ड्राइवर की लापरवाही मानकर निपटाने की कोशिश हो रही है। खास बात यह है कि यह कार सिर्फ तीन किलोमीटर चली थी। इतनी जल्दी इंजन इतना गर्म नहीं हो सकता कि आग लग जाए। अधिकृत सर्विस सेंटर में कार की नियमित सर्विसिंग होती थी। परिजनों ने लिखित बयान में किसी साजिश का शक भी नहीं जताया है। ऐसे में मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए?

लंबे अरसे से देश में बड़ी वाहन दुर्घटनाओं के कारणों की जांच व समीक्षा करता आ रहा इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग इस हादसे की छानबीन के बाद इसी निष्कर्ष पर पहुंचा है। उसने विशेष जांच दल बनाकर इस मामले की छानबीन कराए जाने की सरकार से मांग की है।

आइएफटीआरटी के संयोजक एसपी सिंह के अनुसार भारत में जब भी ऐसे हादसे होते हैं, तो चालक की लापरवाही, सर्विस क्वॉलिटी और मौसम पर दोष मढ़ने की कोशिश होती है। वाहन निर्माता की जिम्मेदारी के मुद्दे को दबा दिया जाता है। अंतरराष्ट्रीय ऑटो कंपनियां विकसित देशों में ऐसे मामलों में अपने स्तर पर जांच की पहल करती हैं। वाहनों में आवश्यक सुधार के लिए तत्पर रहती हैं। ये कंपनियां भी भारत में लचर नीतिगत व कानूनी प्रावधानों का फायदा उठाते हुए जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करती हैं। लक्जरी एसी बसों में आग के कई मामलों व अधिक प्रदूषणकारी टवेरा गाड़ियां बेचने के बावजूद वोल्वो और जनरल मोटर्स पर कोई कार्रवाई न होना इसका प्रमाण है। सरकार ने भी ऑटो कंपनियों की ताकतवर लॉबी के आगे घुटने टेक दिए हैं, वरना अनिवार्य ऑटो रिकॉल पॉलिसी (वाहन वापस मंगाने की नीति) लागू करने में इतनी आनाकानी नहीं होती।

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