आर्थिक सुस्ती से उबरने की बात कहना अभी जल्दबाजी: मनमोहन सिंह
पांच तिमाहियों से विकास दर में जारी गिरावट जुलाई-सितंबर तिमाही में थम गई, जो कि अर्थव्यवस्था के लिए एक बेहतर संकेत है
नई दिल्ली (पीटीआई)। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर बढ़कर 6.3 फीसद होने का स्वागत किया है साथ ही चेताया है कि पांच तिमाहियों से जारी गिरावट दूर होने की बात कहना अभी जल्दबाजी होगा। उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा दर से यूपीए सरकार के दस साल के कार्यकाल की औसत रफ्तार हासिल करना नरेंद्र मोदी सरकार के लिए संभव नहीं होगा।
यहां व्यवसायियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि जुलाई-सितंबर तिमाही में बेहतर विकास दर देश के लिए अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि पिछली पांच तिमाहियों से विकास दर में लगातार गिरावट आ रही थी, ऐसे में सिर्फ एक तिमाही में बढ़त के आधार पर यह मान लेना ठीक नहीं होगा कि देश आर्थिक सुस्ती के दौर से उबर गया है।
पूर्व प्रधानमंत्री के अनुसार कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि केंद्रीय सांख्यकीय कार्यालय (सीएसओ) ने अनौपचारिक आर्थिक क्षेत्र पर नोटबंदी और जीएसटी के असर को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया है। जबकि देश की अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 30 फीसद है। अर्थशास्त्री एम. गोविंद राव और राष्ट्रीय सांख्यकीय आयोग के पूर्व चेयरमैन प्रणव सेन के बयानों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास को लेकर अभी भी काफी अनिश्चितता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भविष्यवाणी की है कि चालू वित्त वर्ष 2017-18 में विकास दर बढ़कर 6.7 फीसद हो जाएगी। अगर यह हासिल भी हो जाती है तो मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल की औसत विकास दर सिर्फ 7.1 फीसद होगी।
उन्होंने दावा किया कि मोदी सरकार यूपीए सरकार के दस साल के कार्यकाल की औसत विकास दर हासिल नहीं कर पाएगी। यूपीए सरकार की दस साल की औसत दर हासिल करने के लिए पांचवें वर्ष में 10.6 फीसद विकास दर हासिल करनी होगी। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो उन्हें खुशी होगी लेकिन उन्हें नहीं लगता कि यह संभव है। गौरतलब है कि पांच तिमाहियों से विकास दर में गिरावट जुलाई-सितंबर तिमाही में थम गई। इस दौरान मैन्यूफैक्चरिंग में उछाल आने से विकास दर बढ़कर 6.3 फीसद हो गई।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने यह भी कहा है कि नोटबंदी के चलते अप्रैल-जून तिमाही में विकास दर घटकर 5.7 फीसद के निचले स्तर पर रह गई। इसमें भी नोटबंदी के वास्तविक असर को शामिल नहीं किया गया क्योंकि जीडीपी के अहम अनौपचारिक आर्थिक तंत्र की दिक्कतों को स्थान नहीं मिल पाया। उन्होंने कहा कि जीडीपी में एक फीसद की गिरावट से देश को डेढ़ लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है।