वेतन से पीएफ कटौती में मिल सकती है छूट
सरकार संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को वेतन से 12 फीसद की अनिवार्य भविष्य निधि (पीएफ) कटौती से छूट दे सकती है। इसे घटाया भी जा सकता है। श्रम मंत्रालय की ओर से तैयार मसौदा विधेयक में पांच दशक से ज्यादा पुराने कर्मचारी भविष्य निधि कानून में बदलाव के लिए कुछ
नई दिल्ली। सरकार संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों को वेतन से 12 फीसद की अनिवार्य भविष्य निधि (पीएफ) कटौती से छूट दे सकती है। इसे घटाया भी जा सकता है। श्रम मंत्रालय की ओर से तैयार मसौदा विधेयक में पांच दशक से ज्यादा पुराने कर्मचारी भविष्य निधि कानून में बदलाव के लिए कुछ मामलों में ऐसा करने की बात कही गई है। प्रस्तावित संशोधनों के तहत उद्योग की श्रेणी की वित्तीय स्थिति या अन्य परिस्थितियों में केंद्र छूट देने या कमी करने का फैसला कर सकेगा। इन बदलावों का उद्देश्य ज्यादा लोगों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना है।
अभी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के पास कर्मचारियों के वेतन का बारह फीसद हिस्सा अनिवार्य रूप से ईपीएफ में जाता है। प्रस्ताव के मुताबिक उसे या तो घटा दिया जाए या एक तय समय तक इसे नहीं लिया जाए। कुछ मामलों में इस अंशदान को मूल वेतन के 12 से 10 फीसद करने का भी प्रस्ताव है। फिलहाल नियोक्ता ईपीएफ कटौती में अपनी ओर से भी 12 फीसद योगदान करता है। नियोक्ता का अंशदान पूर्ववत जारी रहेगा।
श्रम मंत्रालय ने कर्मचारी भविष्य निधि कानून के संशोधित मसौदे पर 30 दिसंबर तक अन्य विभागों से राय मांगी है। मसौदा विधेयक में अनिवार्य पीएफ कटौती के लिए न्यूनतम कर्मचारी संख्या को घटाकर 10 करने का भी प्रस्ताव है। फिलहाल यह सीमा 20 या इससे ज्यादा कर्मचारियों की है। इस सीमा के घटने से ईपीएफओ के साथ 50 लाख कर्मचारी और जुड़ जाएंगे।
कम होंगे ट्रस्टी बोर्ड के सदस्य
मसौदा विधेयक में केंद्रीय ट्रस्टी बोर्ड (सीबीटी) में नियोक्ताओं और कर्मचारियों के प्रतिनिधियों की संख्या घटाने का भी प्रस्ताव है। इसके तहत दोनों की ओर से बोर्ड में पांच-पांच सदस्य रह जाएंगे। अभी नियोक्ता और कर्मचारियों की ओर से सीबीटी में दस-दस प्रतिनिधि होते हैं। राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों की संख्या भी 15 से घटाकर आठ की जाएगी। बोर्ड में केंद्र सरकार के पांच सदस्य पूर्ववत बने रहेंगे।
नियोक्ताओं पर बढ़ेगा जुर्माना
कर्मचारियों के वेतन से कटौती के बाद अंशदान को ईपीएफओ के पास जमा कराने में चूक पर जुर्माना राशि 10,000 रुपये से बढ़ाकर 70,000 रुपये करने का सुझाव दिया गया है। कानून के तहत अन्य तरह की चूक के मामले में यह जुर्माना 5,000 रुपये से बढ़ाकर 35,000 रुपये करने का प्रस्ताव है।