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Home Buying Tips: सपनों का घर खरीदने को बनाएं लक्ष्य, सुंदर घर का सपना बेचने वालों पर न जाएं

Home Buying Tips अपनी क्षमता से बाहर नहीं निकलें। आप किसी फैंसी घर को चाहे जितना पसंद करते हों लेकिन एक सीमा से ज्यादा खर्च नहीं करें।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Mon, 11 Nov 2019 09:03 AM (IST)Updated: Mon, 11 Nov 2019 09:03 AM (IST)
Home Buying Tips: सपनों का घर खरीदने को बनाएं लक्ष्य, सुंदर घर का सपना बेचने वालों पर न जाएं
Home Buying Tips: सपनों का घर खरीदने को बनाएं लक्ष्य, सुंदर घर का सपना बेचने वालों पर न जाएं

नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। वर्षो तक लोगों की बचत और खर्च का नजदीकी निरीक्षण करने के बाद मुङो एक बात का पक्का यकीन हो गया है कि ज्यादातर बड़े फैसले वित्तीय हालत को ध्यान में रखकर नहीं लिए जाते हैं। अक्सर फैसले बचत करने वाले के मनोविज्ञान पर आधारित होते हैं। जब बात घर खरीदने की आती है, तो लोग अपनी वित्तीय स्थिति से ज्यादा दूसरी बातों पर ध्यान देते हैं। वे बाहरी चीजों से प्रभावित हो जाते हैं। डेवलपर सपनों का घर देने का वादा करते हैं और लोग फंस जाते हैं।

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इंसान अपने पड़ोस से प्रभावित होने वाला प्राणी है। हम दुनिया को कैसे देखते हैं, यह बहुत हद तक हमारे रहन-सहन से प्रभावित होता है। चाहे कोई झुग्गी में रहने वाला परिवार हो या शहर के किसी शानदार घर में रहने वाला कोई बड़ा बिजनेसमैन या अधिकारी तबके का व्यक्ति, यह बात सभी पर समान रूप से लागू होती है।

रियल एस्टेट डेवलपर इस तरह के इंसानी मनोविज्ञान का उपयोग भरपूर उपयोग करते हैं। वे चकाचौंध में यकीन रखने और तुरंत सपनों की दुनिया में चले जाने वाले ग्राहकों को भटकाने-भरमाने का पूरा लाभ उठाते हैं। कुछ दिनों पहले मुङो ट्विटर के जरिये एक चौंकाने वाली बात पता चली। मुंबई का एक जाना-माना डेवलपर लोगों को घर बेचने से पहले उनकी आर्थिक स्थिति को परखने का दावा कर रहा था। वह आर्थिक स्थिति के मुताबिक लोगों की पहचान करके उन्हें घर खरीदने के लिए निमंत्रण भेजता था। खैर कई वर्षो के बाद आज भी वह कांप्लेक्स खाली है। कीमतें आधी हो चुकी हैं, फिर भी घर बिके नहीं हैं। खरीदने का निमंत्रण तो आज मजाक जैसा लगता है। लेकिन उस दौर में यह कामयाब था, लोग इस निमंत्रण के झांसे में आ जाया करते थे।

आज भले ही ट्विटर जैसी जगहों पर इनका मजाक बनाया जाता हो। लेकिन उस समय डेवलपर बाकायदा अखबारों में इश्तिहार देते और डींगे हांकते कि उनकी प्रॉपर्टी सिर्फ वही लोग खरीद सकते हैं जिन्हें इसे खरीदने का निमंत्रण दिया जाएगा। जरा सोचिए कि डेवलपर्स कैसे संभावित ग्राहकों के मनोविज्ञान में सेंध लगाते थे। असल में वे लोगों की मानसिकता का फायदा उठाते थे। हर किसी के मन में यह ख्वाहिश होती है कि उसका एक शानदार घर हो। बस इसी शानदार घर का सपना दिखाकर डेवलपर लोगों को घर बेचा करते थे। वैसे अगर गौर करें तो बिक्रेता आज भी कपड़ों से लेकर स्मार्टफोन तक को बेचने में मनोविज्ञान का उपयोग कर रहे हैं।

हालांकि, घर का मामला थोड़ा अलग है, क्योंकि यहां खर्च काफी बड़ा होता है। यह मामला किसी युवा व्याक्ति द्वारा कोई मंहगा फोन खरीदने जैसा नहीं है। अगर कोई बाहरी कारणों से प्रभावित होकर क्षमता से अधिक मंहगा फोन खरीद लेता है, तो कुछ महीनों तक उसे वित्तीय समस्या हो सकती है। इसके बाद वह इससे उबर जाएगा। लेकिन घर खरीदने के मामले में की गई गलती से बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। कई बार तो इससे लोगों और परिवारों को स्थायी नुकसान हो जाता है।

घर खरीदने के मामले में तीन बेसिक नियम आज भी उतने ही कारगर हैं, जितना यह पहले होते थे। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि डेवलपर्स कितना संकट में हैं या 2008 अथवा 2013 की तुलना में आज कीमत में कितना अंतर है। मैं पहले भी इन तीन नियमों की चर्चा कर चुका हूं। इनमें पहला नियम है कि आप सिर्फ अपने रहने के लिए घर खरीदें, जिससे कि आपको रेंट नहीं देना पड़े। इसे निवेश करने के लिए बिल्कुल भी नहीं चुनें। आपका पहला घर आपको रेंट से छुटकारा दिलाने और ईएमआइ भरने से मिलने वाली टैक्स छूट के लिए होना चाहिए।

दूसरा नियम यह है कि अपनी क्षमता से बाहर नहीं निकलें। आप किसी फैंसी घर को चाहे जितना पसंद करते हों, लेकिन एक सीमा से ज्यादा खर्च नहीं करें। आपकी ईएमआइ आपके परिवार की कुल आय के एक तिहाई से अधिक नहीं होनी चाहिए। घर खरीदते समय रियल स्टेट द्वारा फैलाए गए प्रचार के जाल में कतई नहीं फंसे। अपना सपनों का घर खरीदने से बचें, हो सकता है कि आप भविष्य में ज्यादा अमीर हो जाएं, तब आप इस सपने को पूरा कर सकते हैं।

तीसरा नियम यह कहता है कि घर खरीदें, वादा नहीं। मतलब आप किसी डेवलपर द्वारा किए जा रहे वादों पर भरोसा नहीं करके तकनीकी बातों का ख्याल रखें। एक तथ्य कहता है कि कीमत की वजह से लोग उतना परेशान नहीं होते, जितना निवेश करने के बाद भी घर नहीं मिलने से होते हैं। इसलिए कभी वादों पर भरोसा नहीं करें। वास्तव में सिर्फ उस घर का सौदा करना चाहिए जो मौजूद हो। किसी दूसरे के दिखाए सपने या वादों में नहीं पड़कर वास्तविक चीजों को ध्यान में रखना चाहिए। इन मूल बातों को ध्यान में रखकर खरीदे गए घर के मामले में निवेशकों को निराश नहीं होना पड़ेगा।

भारतीय ग्राहकों की एक खासियत यह है कि वे छोटी-छोटी खरीदारी तो खूब ठोक-बजाकर करते हैं। लेकिन जब बात बड़े वित्तीय फैसलों की आती है, तो यही ग्राहक जमीनी हकीकतों की अनदेखी कर मनोवैज्ञानिक आधार पर फैसले कर लेते हैं। सपनों का घर खरीदने के मामले में यह बात ज्यादा ही सच मालूम पड़ती है। घर खरीदते वक्त ग्राहक अक्सर झूठे प्रचार और वादों में फंसकर निवेश कर देते हैं और बाद में पछताते हैं। इस तरह के खर्च का खामियाजा कई बार अगली पीढ़ी को भुगतना पड़ता है। ऐसे में लुभावने वादों में पड़ने से बेहतर है कि घर खरीदते वक्त कुछ मूलभूत बातों का ख्याल रखना चाहिए।

(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं)


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