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Coronavirus: सरकार कर सकती है राहत पैकेज का एलान, इंडिया इंक ने कहा छह महीने तक ब्याज मुक्‍त हो कर्ज

संदेश स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री अभूतपूर्व संकट के वक्त में उद्योग जगत को साथ लेकर ही हर जरूरी कदम उठाना चाहते हैं।

By NiteshEdited By: Published: Mon, 23 Mar 2020 09:05 PM (IST)Updated: Tue, 24 Mar 2020 06:05 PM (IST)
Coronavirus: सरकार कर सकती है राहत पैकेज का एलान, इंडिया इंक ने कहा छह महीने तक ब्याज मुक्‍त हो कर्ज
Coronavirus: सरकार कर सकती है राहत पैकेज का एलान, इंडिया इंक ने कहा छह महीने तक ब्याज मुक्‍त हो कर्ज

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोरोनावायरस से जिस तरह से देश की अर्थव्यवस्था के तहस नहस होने का खतरा पैदा हुआ है उसे रोकने के लिए सरकार की तरफ से जल्द ही एक बडे़ आर्थिक पैकेज का ऐलान हो सकता है। पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कोरोना से उत्पन्न चुनौतियों और इससे निबटने के संभावित उपायों पर देश के नामी गिरामी उद्योगपतियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए लगभग 75 मिनट तक चर्चा की। बताया जाता है कि खुद तो बमुश्किल दस मिनट बोले, बाकी वक्त उद्योग जगत के प्रतिनिधियों को सुने।

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संदेश स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री अभूतपूर्व संकट के वक्त में उद्योग जगत को साथ लेकर ही हर जरूरी कदम उठाना चाहते हैं। सीआइआइ, फिक्की, एसोचैम जैसे बड़े उद्योग चैंबरों के प्रमुखों की तरफ से जो सुझाव दिए गए हैं उसका लब्बोलुआब यही है कि एक तरफ जहां कम आय वर्ग के लोगों के हाथ में पैसा पहुंचाने की तत्काल व्यवस्था होनी चाहिए वहीं उद्योग जगत पर कर्ज चुकाने की लटकी मौजूदा तलवार को हटाने की व्यवस्था होनी चाहिए। उद्योग जगत ने सरकार को यह भी आश्वस्त किया कि वह कोरोनावायरस से लड़ने में इस्तेमाल होने वाले चिकित्सा उपकरणों के निर्माण में हर मुमकिन मदद करेंगे और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए भी सरकार के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहेंगे।

बैंक ना ले ब्याज, ना हो एनपीए :उद्योग जगत की एक प्रमुख चिंता कर्ज चुकाने की है। लॉकडाउन होने से बड़े छोटे हर प्रकार के औद्योगिक गतिविधियों पर ताला लगता जा रहा है। ऐसे में जिन उद्यमियों ने कर्ज ले रखा है और जिनका मासिक किस्त कट रहा है उनके लिए इसे जारी रखना मुश्किल हो सकता है। पीएम के समक्ष मांग रखी गई कि कम से कम छह महीने तक बकाये कर्ज पर कोई भी ब्याज नहीं लिया जाए। यह काम कर्ज की अवधि में छह माह की वृद्धि कर आसानी से की जा सकती है। यानी जिस कर्ज की परिपक्वता अवधि तीन वर्ष है उसे 3.5 वर्ष कर दिया जाए।

आरबीआइ के दिशानिर्देश के मुताबिक 90 दिनों से एक दिन ज्यादा भी कर्ज नहीं चुकाने वाले कर्ज खाता को एनपीए (फंसे कर्जे) घोषित कर दिया जाता है। इस पर उद्योग चैंबरों ने मांग रखी है कि इस नियम को नौ महीनों से एक वर्ष तक के लिए स्थगित किया जाए ताकि कर्ज कंपनी प्रबंधन को मौजूदा मंदी से निपटने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। इसके साथ ही नए कर्ज के लिए ब्याज की दर को एक फीसद तक कम करने का सुझाव भी दिया गया है।

हर व्यक्ति के हाथ में दी जाए नकदी: उद्योग जगत की तरफ से एक बड़ी मांग यह थी कि अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए देश की बड़ी आबादी के हाथ में नगदी पहुंचाना जरुरी है। कोरोना की वजह से प्रभावित उद्योगोंें के सभी कामगारों व खास तौर पर असंगठित क्षेत्र के युवा कामगारों के हाथ में 5,000 रुपये पहुंचाने की व्यवस्था होनी चाहिए। जबकि एक निश्चित आय सीमा के भीतर वाले सभी 65 वर्ष से ज्यादा आयु वर्ग के लोगों के हाथ में 10 हजार रुपये देने की व्यवस्था होनी चाहिए। यह डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर स्कीम के तहत हो सकता है। इस सुझाव का दोहरा फायदा होगा। एक तो प्रभावित जनता को आर्थिक मदद मिलेगी दूसरी मांग भी बढ़ेगी।

फिस्कल डेफीसिट की ना हो चिंता -सीआइआइ और फिक्की के प्रतिनिधियों ने कहा है कि मौजूदा हालात में राजकोषीय घाटे की कोई चिंता नहीं होनी चाहिए। अगर यह 1.5 से दो फीसद ज्यादा भी होता है तो कोई परेशानी नहीं है। फिक्की की अध्यक्षा डा. संगीता रेड्डी ने बताया कि अगले वित्त वर्ष के लिए फिस्कल डेफीसिट के लक्ष्य को दो फीसद ज्यादा करने का मतलब होगा कि सरकार के पास 4 लाख करोड़ रुपये ज्यादा खर्च करने की छूट होगी। इस राशि का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में किया जा सकेगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2020-21 के लिए 3.5 फीसद का राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा है।

एनसीएलटी में ना जाए कोई मामला : उद्योग जगत पर अभी दिवालिया कानून की भी तलवार लटकी हुई है। कर्ज चुकाने में देरी होने पर ग्राहक कर्ज वूसली के लिए इंसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड के तहत कंपनी कानून प्राधिकरण ले कर चले जाते हैं। वहां दिवालिया प्रक्रिया शुरु की जाती है। ऐसे में एक वर्ष तक एनसीएलटी में किसी भी तरह के मामले को नहीं ले जाने की घोषणा होनी चाहिए। क्योंकि अभी जैसे हालात बने हैं उसका असर देश की औद्योगिक गतिविधियों व भुगतान आदि पर कई महीनों तक बने रहने के आसार हैं। इसी तरह से एक मांग यह रखी जाए कि किसी तरह की अदायगी ना होने या अन्य नियमन संबंधी उल्लंघन पर 10 महीनों तक उद्योग जगत के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया जाए।ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री ने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का भी गठन किया है। अब तक अलग अलग सेक्टर के साथ उसकी दो तीन बैठकें हो चुकी हैं। और माना जा रहा है कि जल्द ही पैकेज की घोषणा हो सकती है। 


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