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युवाओं को पता नहीं कब तक बचेगी नौकरी, कर्ज लेने से तौबा

नई दिल्ली। आर्थिक सुस्ती की वजह से नौकरियों पर छाए संकट ने नौकरीपेशा भारतीयों का जीना मुश्किल कर दिया है। भविष्य अधर में होने के कारण युवा प्रोफेशनल्स कर्ज लेने से तौबा कर रहे हैं। एफडी, शेयर और बॉन्ड गिरवी रखकर कर्ज लेने वालों की संख्या में भी तेज गिरावट आई है। उद्योग संगठन एसोचैम के सर्वे के मुताबिक उपभोक्ताओं की

By Edited By: Published: Thu, 17 Oct 2013 08:52 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
युवाओं को पता नहीं कब तक बचेगी नौकरी, कर्ज लेने से तौबा

नई दिल्ली। आर्थिक सुस्ती की वजह से नौकरियों पर छाए संकट ने नौकरीपेशा भारतीयों का जीना मुश्किल कर दिया है। भविष्य अधर में होने के कारण युवा प्रोफेशनल्स कर्ज लेने से तौबा कर रहे हैं। एफडी, शेयर और बॉन्ड गिरवी रखकर कर्ज लेने वालों की संख्या में भी तेज गिरावट आई है। उद्योग संगठन एसोचैम के सर्वे के मुताबिक उपभोक्ताओं की खर्च करने की ताकत टूट चुकी है। सुस्ती ने औद्योगिक वृद्धि और सेवाओं पर दुष्प्रभाव डाला है। अभी तक जो युवा नौकरीपेशा वर्ग जमकर खर्च कर रहा था, उसने अपने हाथ सिकोड़ लिए हैं। उसे यह भी नहीं मालूम की आखिर कितने महीने नौकरी चलने वाली है।

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एफडी, शेयर और बॉन्ड को गिरवी रख कर्ज ले रहा वर्ग अब सतर्कता बरत रहा है। बैंकों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, एफडी गिरवी रख कर्ज लेने वालों की संख्या चालू वित्त वर्ष में 1.6 फीसद तक घट गई है। अगस्त, 2012 से एक साल की अवधि में ऐसा करने वालों की संख्या 20 फीसद की दर से बढ़ रही थी।

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एसोचैम की रिपोर्ट बताती है कि क्रेडिट कार्ड धारक भी कर्ज से दूरी बना चुके हैं। ब्याज दरें सस्ती होने के बजाय महंगी होती जा रही हैं। जिन्होंने कर्ज ले लिया है वे जुर्माने से बचने के लिए नियमित ईएमआइ भुगतान के लिए परेशान हैं। इसके कारण दूसरों का उत्साह कम हो रहा है। सर्वे में लोगों ने बताया कि क्रेडिट कार्ड का पेमेंट करने के लिए वह कर्ज संकट में फंस रहे हैं। इसलिए कार्ड का इस्तेमाल कम से कम किया जा रहा है।

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शेयर और बॉन्ड गिरवी रख कर्ज लेने वालों का आंकड़ा भी 6.6 फीसद घट है। पिछले साल ऐसा करने वालों की संख्या 8.8 फीसद की दर से बढ़ी थी। शेयर बाजार में लगातार हो रही उठापटक भी कर्ज लेने की योजना बना रहे लोगों को पीछे हटने पर मजबूर कर रही है। रिजर्व बैंक से कोई राहत न मिलने की वजह से बैंक ब्याज दरों में कटौती नहीं कर रहे हैं। सुस्ती को देखते हुए बैंक भी संकट में फंसे कॉरपोरेट हाउसों को कर्ज देने में आनाकानी कर रहे हैं। बैंकों का एनपीए (फंसा हुआ कर्ज) भी बढ़ रहा है। एसोचैम ने कहा कि सरकार की तरफ से एनपीए कम करने का दबाव बनाया जा रहा है। इसलिए वे बड़े कर्ज देने से दूरी बनाए हुए हैं। कॉरपोरेट के पास पैसा नहीं इसलिए वे भी जमा से बच रहे हैं।


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