आसान नहीं होगा रेल बजट का आम बजट में विलय
वित्त मंत्रालय के लिए रेलवे के वित्तीय बोझ को आम बजट में शामिल करना राजकोषीय संतुलन बनाने की प्रक्रिया में बड़ी चुनौती हो सकती है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाने का फैसला सरकार के लिए बहुत आसान नहीं होगा। ऐसा होने से रेल मंत्रालय के तहत चलने वाली इस भारी-भरकम प्रक्रिया से तो राहत मिल सकती है, लेकिन वित्त मंत्रालय के लिए रेलवे के वित्तीय बोझ को आम बजट में शामिल करना राजकोषीय संतुलन बनाने की प्रक्रिया में बड़ी चुनौती हो सकती है।
रेल मंत्री सुरेश प्रभु की तरफ से रेल बजट के आम बजट में विलय के प्रस्ताव पर अनौपचारिक चर्चा में इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू निकलकर आ रहे हैं। अभी तक रेल बजट को देश के विकास की रफ्तार से जोड़कर देखा जाता है। इसलिए इसे तैयार करने में भी रेल मंत्रालय को उतनी तैयारी करनी होती है। लेकिन आम बजट में इसके विलय के बाद रेल मंत्रालय भी अन्य मंत्रालयों के समान वित्त मंत्रालय से बजटीय आवंटन पाने वाले एक मंत्रालय के समान हो जाएगा। इस बात की आशंका भी जतायी जा रही है कि ऐसा होने के बाद रेलवे का व्यावसायिक नजरिया प्रभावित हो सकता है।
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दूसरी तरफ वित्त मंत्रालय के लिहाज से यह आशंका भी जतायी जा रही है कि आम बजट का हिस्सा बनने के बाद रेलवे को होने वाले घाटे को भी इसमें शामिल करना होगा। जानकारों का मानना है कि ऐसा करने से सरकार के राजकोषीय संतुलन बनाने की पूरी कवायद विफल हो जाएगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस वित्त वर्ष का बजट पेश करते हुए राजकोषीय घाटे को अगले दो साल में तीन फीसद के स्तर पर लाने का लक्ष्य तय किया है। लेकिन दोनों बजट को एक कर देने से इस लक्ष्य को पाने में दिक्कत आ सकती है।
दोनों के विलय में राजकोषीय संतुलन में दिक्कत इसलिए भी आएगी क्योंकि रेलवे का राजस्व सरकार के राजस्व का हिस्सा होना तो ठीक है लेकिन साथ ही रेलवे के खर्च भी केंद्र के बजट का हिस्सा बनेंगे। ऐसी स्थिति में अगर किसी वित्त वर्ष में राजस्व संग्रह की रफ्तार में कमी आती है तो रेलवे के खर्चो की पूर्ति करना केंद्र सरकार का ही दायित्व होगा। उन परिस्थितियों में या तो सरकार को रेलवे के आवंटन में कटौती करनी होगी जो रेलवे के कामकाज को प्रभावित करेगी या फिर यह स्थिति सरकार के राजकोषीय घाटे को बढ़ाएगी।
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रेल मंत्री के इस प्रस्ताव पर वित्त मंत्रालय सभी संभावित दृष्टिकोणों से विचार कर रहा है। अधिकारी इस बात से भी इन्कार नहीं कर रहे हैं कि दोनों बजटों को एक करने से बजट संबंधी प्रक्रिया में लगने वाले समय में बचत होगी और केवल एक आम बजट पर भी सरकार का सारा ध्यान केंद्रित रहेगा। लेकिन सरकार के राजकोषीय लक्ष्यों के लिहाज से इसे अभी लागू करना संभव नहीं लग रहा है।