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कच्चे तेल का आयात घटाना आसान नहीं, पिछले तीन वर्षों में घरेलू क्रूड उत्पादन में 10 फीसद की गिरावट

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें अप्रैल 2020 के मुकाबले इस वर्ष मार्च में तीन गुना से भी ज्यादा हो गई हैं। ऐसे में आयातित क्रूड यानी कच्चे तेल पर निर्भरता को खत्म करने के प्रयासों को लेकर चर्चा जोरों पर है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Thu, 11 Mar 2021 09:36 PM (IST)Updated: Fri, 12 Mar 2021 07:38 AM (IST)
कच्चे तेल का आयात घटाना आसान नहीं, पिछले तीन वर्षों में घरेलू क्रूड उत्पादन में 10 फीसद की गिरावट
पिछले तीन वर्षो में ही क्रूड के घरेलू उत्पादन में 10 फीसद की गिरावट हुई है।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें अप्रैल, 2020 के मुकाबले इस वर्ष मार्च में तीन गुना से भी ज्यादा हो गई हैं। ऐसे में आयातित क्रूड यानी कच्चे तेल पर निर्भरता को खत्म करने के प्रयासों को लेकर चर्चा जोरों पर है। इस संदर्भ में केंद्र सरकार के इस लक्ष्य का भी जिक्र जरूरी है जिसमें उसने वर्ष 2022 तक आयातित तेल पर देश की निर्भरता 10 फीसद और वर्ष 2030 तक 50 फीसद घटाने की बात कही थी। हालांकि, आंकड़े ही बता रहे हैं कि जमीनी सच्चाई काफी अलग है।

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असल में पिछले तीन वर्षो में ही क्रूड के घरेलू उत्पादन में 10 फीसद की गिरावट हुई है। इस अवधि में कच्चा तेल उत्पादन 3.56 करोड़ टन से घटकर 3.217 करोड़ टन रह गया है। वैसे, पेट्रोलियम मंत्रालय को भरोसा है कि अगले एक दशक में घरेलू स्तर पर क्रूड और प्राकृतिक गैस उत्पादन में अच्छी वृद्धि होगी।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में क्रूड उत्पादन वर्ष 2011-12 में 3.81 करोड़ टन के साथ अपने उच्च स्तर पर रहा था। लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट का ही रुख बना हुआ है। इसके चलते आयातित क्रूड की मात्रा लगातार बढ़ रही है।

पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत आने वाली एजेंसी पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014-15 में भारत ने 21.07 करोड़ टन (210 मिलियन मीट्रिक टन) क्रूड का आयात किया था जो वर्ष 2019-20 में बढ़ कर 27.007 करोड़ टन हो गया है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जुलाई के आंकड़े बताते हैं कि 16.28 करोड़ टन क्रूड आयात किया गया है।

इस तरह से वर्ष 2020-21 के दौरान संभावना है कि क्रूड आयात में कमी होगी। लेकिन यह घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी की वजह से नहीं, बल्कि कोरोना की वजह से कई महीनों तक मांग में भारी कमी की वजह से होने वाली है। पीपीएसी के मुताबिक अप्रैल, 2020 से फरवरी, 2021 के बीच देश में पेट्रोलियम उत्पादों की कुल खपत 17.5 करोड़ टन रही है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान यह 21.4 करोड़ टन, उसके पहले वर्ष 2018-19 में 21.3 करोड़ टन और वर्ष 2017-18 में 20.6 करोड़ टन रही है।

हाल ही में इंटरनेशनल एनर्जी फोरम की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत क्रूड खपत के मामले में चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। यही नहीं, वर्ष 2040 तक भारत में कच्चा तेल ईधन का एक बड़ा स्त्रोत बना रहेगा। उधर, पेट्रोलियम मंत्रालय का कहना है कि घरेलू तेल व गैस उत्पादन को बढ़ावा देने की उसकी नीति हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसें¨सग पॉलिसी (एचईएलपी) का असर अगले 10 वर्षो में दिखाई देने लगेगा।

भारत अभी भी अपनी कुल खपत का 85 फीसद तक क्रूड आयात करता है, जो देश को कई बार भारी परेशानी में डाल देती है। भारत अपनी जरूरत का 60 फीसद तेल सऊदी अरब, ईराक व खाड़ी के दूसरे देशों से लेता है। खाड़ी क्षेत्र में जब भी अस्थिरता होती है तो उसका असर क्रूड पर होता है और खामियाजा देश की आम जनता को भुगतना पड़ता है।


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