डीजल की दोहरी मूल्य व्यवस्था लागू करना नहीं है आसान
सरकारी तेल कंपनियों का कहना है कि एक ही पेट्रोल पंप पर दो तरह के वाहनों के लिए अलग-अलग कीमत पर एक ही उत्पाद बेचना संभव नहीं होगा
नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही सरकार से देश में डीजल की दोहरी कीमतें तय करने का सुझाव दिया हो, लेकिन जहां तक सरकार और सरकारी तेल कंपनियों का सवाल है तो वह इसे मौजूदा परिदृश्य में संभव नहीं मानते हैं। एक तरफ सरकार मानती है कि यह देश में डीजल की कालाबाजारी की नींव रख सकती है तो दूसरी तरफ सरकारी तेल कंपनियों का कहना है कि एक ही पेट्रोल पंप पर दो तरह के वाहनों के लिए अलग-अलग कीमत पर एक ही उत्पाद बेचना संभव नहीं होगा। सरकार का यह भी कहना है कि इससे महंगाई बढ़ सकती है।
कालाबाजारी की चिंता बड़ी अड़चन
दैनिक जागरण ने सुप्रीम कोर्ट के सोमवार को दिए गये सुझाव के बारे में पेट्रोलियम मंत्रलय के साथ ही देश की कुछ सरकारी रिफाइनरियों के आला अधिकारियों से बात की है। दोनों का कहना है कि अगर वाणिज्यिक वाहनों और महंगे पैसेंजर वाहनों के लिए डीजल की ज्यादा) कीमत तय की जाती है तो इससे कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा।
ऐसा वर्ष 2013 में हो चुका है जब यूपीए सरकार ने डीजल सब्सिडी के बोझ को कम करने के लिए थोक डीजल खरीदारों जैसे रेलवे, सेना, ट्रांसपोर्टर, राज्य परिवहन निगम आदि के लिए दोहरी कीमत व्यवस्था लागू की थी। तब थोक ग्राहकों को डीजल की पूरी कीमत देनी पड़ रही थी। इससे पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल बन गया था।
उस वक्त पैसे बचाने के लिए पेट्रोल पंपों पर राज्य परिवहन निगमों की बसों की लंबी कतारें लग गई थी, क्योंकि उन्हें पेट्रोल पंप से 10 रुपये प्रति लीटर सस्ता डीजल मिलता था। इसे कुछ ही महीनों में बंद कर देना पड़ा। थोक ग्राहकों को सीधे तेल रिफाइनरियों के डिपो से आपूर्ति की जा रही थी।
अब सुप्रीम कोर्ट का जो सुझाव है उसके मुताबिक डीजल चालित वाणिज्यिक वाहनों व पैसेंजर कारों के लिए अलग कीमत तय करनी पड़ेगी। कोर्ट की मंशा है कि इन वाहनों को डीजल ज्यादा कीमत पर मिलना चाहिए। इस बारे में सरकारी तेल कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने मझोले व छोटी पैसेंजर कार कंपनियों की बात कही है जबकि असलियत में देश में बिकने वाली कुल कारों में डीजल से चलने वाली छोटी-मझोली कारों का हिस्सा बेहद कम है। डीजल से चलने वाले एसयूवी की बिक्री भी घट रही है।
चार वर्ष पहले देश में बिकने वाले कुल स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हिकल्स (एसयूवी) में डीजल इंजन एसयूवी का हिस्सा 50 फीसद था लेकिन अब घटकर 23 फीसद रह गया है। वर्ष 2014 में सरकार ने डीजल की कीमत को सरकारी नियंत्रण से बाहर किया और उसके बाद से ही डीजल पैसेंजर वाहनों की बिक्री कम होनी शुरू हो गई। एक समय पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमतों में 20 रुपये का अंतर होता था जो अभी 10 रुपये प्रति लीटर के आस पास है।
महंगाई बढ़ने का डर
वर्ष 2013 में पेट्रोलियम मंत्रलय की उच्च स्तरीय समिति ने जो आंकड़ा पेश किया था, उसके मुताबिक 13 फीसद डीजल का इस्तेमाल कृषि से जुड़े कार्यों में किया जाता है। जबकि नौ फीसद वाणिज्यिक वाहनों में और 19 फीसद औद्योगिक क्षेत्र में होता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक अगर ट्रांसपोर्टर के लिए डीजल महंगा किया जाता है तो उसका सीधा असर माल ढुलाई पर पड़ेगा। देश में अनाजों की ढुलाई में भी डीजल का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। इस तरह से यह कदम महंगाई को हवा देने वाला साबित हो सकता है। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि अभी देश की रिफाइनरियों का सारा ध्यान बीएस-6 मानक इंधन उपलब्ध कराने को है। उन्हें अभी दूसरे कार्यो में नहीं उलझाया जा सकता। सरकार ने वर्ष 2012 में डीजल चालित बड़े वाहनों पर ज्यादा टैक्स वसूलने पर भी विचार किया था, लेकिन उसे लागू करना संभव नहीं माना गया।