आरसेप पर दो-टूक फैसला लेना मुश्किल, सस्ते आयात को लेकर आश्वस्त होने के बाद ही पत्ते खोलेगा भारत
आशंका है कि जिन देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा सकारात्मक है आरसेप समझौते पर हस्ताक्षर के बाद वह भी नकारात्मक हो सकता है।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसेप) को लेकर आसियान की अहम बैठक एक हफ्ते बाद बैंकॉक में होने वाली है लेकिन भारत अभी तक इस पर दो टूक राय नहीं बना पाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में कई बार उच्चस्तरीय बैठक होने के बावजूद इस बात की गुंजाइश कम ही है कि भारत आगामी बैठक में आरसेप को हरी झंडी दिखा देगा। चीन समेत दूसरे देशों से आयात के बढ़ने की संभावना अभी भी भारत की सबसे बड़ी चिंता है।
सूत्रों के मुताबिक अब आसियान बैठक के दौरान उच्चस्तरीय चर्चा में आरसेप के दूसरे सदस्य देशों की तरफ से आने वाले प्रस्ताव को देखने के बाद ही कोई अंतिम फैसला होगा।उधर, भारत की कई निजी एजेंसियों ने आरसेप पर जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मौजूदा स्वरूप में आरसेप से भारत को कारोबारी तौर पर बहुत फायदा होने की गुंजाइश कम ही है। हालांकि यह भी माना गया है कि यह समझौता भारत के लिए रणनीतिक तौर पर फायदे देने वाला हो सकता है लेकिन इसकी आर्थिक कीमत बड़ी हो सकती है।
भारतीय स्टेट बैंक के प्रमुख आर्थिक सलाहकार डॉ. सौम्या कांति घोष की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की सबसे बड़ी समस्या यह है कि आरसेप में शामिल दूसरे 15 देशो में से 11 देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा नकारात्मक है। यानी इन देशों से आयात ज्यादा किया जाता है व निर्यात कम होता है। वर्ष 2017-18 में इन देशों के साथ व्यापार घाटा 107.28 अरब डॉलर का था।
भारत के कुल आयात में इन देशों की हिस्सेदारी 34 फीसद है जबकि निर्यात में हिस्सा 21 फीसद है। यही नहीं, आशंका यह भी है कि जिन देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा सकारात्मक है, आरसेप समझौते पर हस्ताक्षर के बाद वह भी नकारात्मक हो सकता है। मसलन, दुग्ध उत्पादों का आयात भारत अभी कम करता है लेकिन आरसेप में शामिल होने के बाद न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया से दुग्ध उत्पाद काफी बढ़ सकता है।उधर, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी इस मुद्दे पर सरकार की मंशा पर सवाल उठाकर दबाव बनाने लगी है।
कांग्रेस ने कहा है कि अगर भारत आरसेप में शामिल होता है तो चीन से आयात होने वाले 80 प्रतिशत उत्पादों पर आयात शुल्क घट जाएगा या वे उत्पाद शुल्क-मुक्त हो जाएंगे। इस बारे में पूछने पर विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता रवीश कुमार का कहना है कि अगले हफ्ते बैंकॉक में होने वाली बैठक तक हमें आरसेप में शामिल होने या नहीं होने को लेकर कयास नहीं लगाने चाहिए। भारत का उच्चस्तरीय दल में उसमें हिस्सा लेगा जिसमें तमाम मुद्दों पर बात होगी। एक बात तय है कि भारत उस सभी बहुराष्ट्रीय समझौते में शामिल होने को तैयार है जिसमें कारोबार से जुड़े हमारे घरेलू संवेदनशील मसलों को भी ध्यान में रखा जाए। यह सबसे जरुरी है।
मोईली ने पीएम को लिखा पत्र
पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोईली ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आरसेप पर अपनी चिंता से अवगत कराया है। मोईली ने पत्र में आग्रह किया है कि दुग्ध उत्पादों, सुपारी और काली मिर्च को मुक्त व्यापार के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसान समुदाय असामयिक बारिश और बाढ़ के चलते पहले ही बेहद दबाव में है। ऐसे में इन उत्पादों पर मुक्त व्यापार से किसानों को बड़ा नुकसान होगा।