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RCEP पर फैसले से पहले कशमकश में भारत, कृषि उत्पादों और सेवा उद्योग को लेकर हैं चिंताएं

RCEP आने के बाद ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड जैसे देशों से दुग्ध उत्पादों समेत गेहूं व अन्य मोटे अनाजों के आयात का रास्ता खुलने का डर है उसको लेकर भारत सबसे ज्यादा चिंतित है।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 08:56 AM (IST)Updated: Fri, 01 Nov 2019 08:56 AM (IST)
RCEP पर फैसले से पहले कशमकश में भारत, कृषि उत्पादों और सेवा उद्योग को लेकर हैं चिंताएं
RCEP पर फैसले से पहले कशमकश में भारत, कृषि उत्पादों और सेवा उद्योग को लेकर हैं चिंताएं

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। तीन दिन बाद यानी अगले सोमवार को आसियान के 10 देशों समेत 16 देशों के बीच होने वाले मुक्त व्यापार समझौते यानी आरसेप पर अंतिम फैसला होना है। लेकिन भारत अभी भी इस समझौते में शामिल होने को लेकर कशमकश में है। सभी 16 सदस्य देशों के अधिकारियों के बीच बैंकॉक में जबरदस्त विमर्श का दौर जारी है और भारत इस बात का प्रयास कर रहा है कि कृषि उत्पादों और सेवा उद्योग को लेकर उसकी चिंताओं को अंतिम मसौदे में शामिल किया जाए। लेकिन बैंकॉक से जो सूचनाएं आ रही हैं उसके मुताबिक अगर भारत आरसेप में शामिल होने से इन्कार करता है तब भी शेष 15 देश इस समझौते को लेकर आगे बढ़ सकते हैं। पिछले वर्ष भारत की वजह से ही इस समझौते पर अंतिम फैसला नहीं हो पाया था।

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पीएम नरेंद्र मोदी सोमवार को बैंकॉक में होने वाली रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) की शिखर बैठक में हिस्सा लेने के लिए शनिवार को देर शाम रवाना हो जाएंगे। पीएम मोदी वहां रविवार को आसियान-भारत शिखर बैठक में हिस्सा लेंगे। जबकि अगले दिन मंगलवार को वे ईस्ट एशिया शिखर बैठक में शिरकत करेंगे और बाद में आरसेप शिखर बैठक में हिस्सा लेंगे। मोदी के साथ विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उद्योग व वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के साथ वरिष्ठ नौकरशाहों का एक बड़ा दल जा रहा है।

विदेश मंत्रलय की सचिव (ईस्ट) विजय ठाकुर सिंह से जब यह पूछा गया कि भारत की क्या मांग है तो उनका जवाब था कि कुछ मुद्दों को लेकर भारत की अपनी चिंताएं है जिस पर बातचीत हो रही है। भारत पूरी गंभीरता से इसमें शामिल हो रहा है ताकि सभी के हितों की रक्षा करने वाले एक पारदर्शी समझौते पर सहमति बन जाए। मेरा मानना है कि जब तक समझौतों को लेकर अंतिम सहमति नहीं बन जाए, हमें इंतजार करना चाहिए। विदेश मंत्रालय के अन्य दूसरे अधिकारियों ने भी यह तो नहीं बताया कि भारत किन मुद्दों पर अड़ा हुआ है लेकिन माना जा रहा है कि सबसे बड़ा मुद्दा कृषि उत्पादों से जुड़ा है।

जिस तरह से आरसेप आने के बाद ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों से दुग्ध उत्पादों समेत गेहूं व अन्य मोटे अनाजों के आयात का रास्ता खुलने का डर है, उसको लेकर भारत सबसे ज्यादा चिंतित है। ऐसे में भारत इनके सस्ते आयात को रोकने के लिए अपने पास कुछ अधिकार चाहता है ताकि वह अपने घरेलू उद्योग व किसानों के हितों की रक्षा कर सके। अब देखने वाली यह होगी कि अगर भारत इसके लिए तैयार होता है तो उसे बदले में किस क्षेत्र में अवसर देने की कोशिश होती है। दूसरी तरफ सरकार को यह भी मालूम है कि आरसेप को लेकर घरेलू स्तर पर विरोध बढ़ रहा है और विपक्ष इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने में जुटा है।

दूसरी तरफ बैंकॉक में आरसेप में शामिल होने वाले अन्य सभी सदस्य देशों के बीच लगभग यह सहमति बन रही है कि अगर भारत शामिल नहीं होता है तब भी बाकी देश इसको लेकर आगे बढ़ सकते हैं। चीन का मत है कि भारत के लिए एक वर्ष तक इंतजार किया जा चुका है और अब आगे बढ़ना चाहिए।


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