नौ वर्ष पहले के स्तर पर आ सकती हैं ब्याज दरें
मार्च में थोक महंगाई दर बढ़कर 3.18 प्रतिशत हो गई जो तीन महीनों के उच्च स्तर पर थी
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। पिछले वित्त वर्ष में महंगाई नियंत्रित रहने पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने रेपो रेट घटाकर सस्ते कर्ज की सौगात दी थी। हालांकि बीते कुछ महीनों में महंगाई ने फिर सिर उठाना शुरू कर दिया है। ऐसे में नई सरकार के सामने महंगाई दर को काबू में रखने की बड़ी चुनौती रहेगी। अगर सरकार ऐसा कर पाती है, तो अगले महीने ब्याज दरें नौ वर्षो के निचले स्तर पर आ सकती हैं।
आरबीआइ की मुख्य उधारी दर रेपो रेट फिलहाल छह फीसद पर है। आरबीआइ जून में मौद्रिक नीति की समीक्षा करेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि महंगाई नियंत्रित रहने पर आरबीआइ ब्याज दरें नीचे लाने का रवैया जारी रख सकता है। ऐसी स्थिति में अगर रेपो दर में अगर 0.25 फीसद अंक की कटौती भी होती है तो रेपो दर घटकर 5.75 फीसद पर आ जाएगी जो वर्ष 2010 के बाद न्यूनतम होगी। हाल के महीनों में आरबीआइ ने ब्याज दरों में कटौती के साथ-साथ विकास दर को बढ़ावा देने के लिए बैंकिंग तंत्र में नकदी बढ़ाई है।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों का भी कहना है कि वित्त वर्ष 2018-19 में जिस तरह महंगाई दर कम रही, उससे ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश बनी थी। हालांकि विगत कुछ महीनों से महंगाई दर ने फिर से बढ़ना शुरू कर दिया है। मार्च में थोक महंगाई दर बढ़कर 3.18 प्रतिशत हो गई, जो तीन महीनों के उच्च स्तर पर थी। खुदरा महंगाई दर भी मार्च में 2.86 फीसद के साथ पांच माह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। खुदरा महंगाई दर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति तय करते वक्त इसे ही संज्ञान में लेता है। आरबीआइ ने खुदरा महंगाई दर को चार फीसद (प्लस-माइनस दो फीसद) के स्तर पर नियंत्रित रखने का लक्ष्य रखा है।
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