RCEP के मौजूदा स्वरूप में भारत की चिंताओं को अनदेखा किया गया: पीयूष गोयल
RCEPगोयल ने कहा कि जिन देशों के साथ पूर्व में विदेश व्यापार संबंधी करार हुए उनसे भारत के आयात में वृद्धि हुई। इन देशों में आसियान के अलावा दक्षिण कोरिया जापान और मलेशिया शामिल है
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। आरसेप का वर्तमान स्ट्रक्चर न केवल अपने मार्गदर्शक सिद्धांतों बल्कि भारत के कई मुद्दों और चिंताओं का समाधान करने में असमर्थ रहा। इसलिए भारत के लिए आरसेप पर आगे बढ़ना बेहतर विकल्प नहीं था। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने मंगलवार को राज्यसभा में यह बात कही।आरसेप से अलग रहने के मुद्दे पर दिए अपने वक्तव्य में गोयल ने कहा कि आसियान समेत कई देशों के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) भी भारत के लिए उपयोगी नहीं रहे।
उन्होंने कहा, ‘हमारे अनुभव से यह पता चला है कि इनसे भारत को अपेक्षित लाभ नहीं हुआ। इसलिए सरकार आसियान देशों से हुए एफटीए की समीक्षा करने जा रही है।’गोयल ने कहा कि जिन देशों के साथ पूर्व में विदेश व्यापार संबंधी करार हुए उनसे भारत के आयात में वृद्धि हुई। इन देशों में आसियान के अलावा दक्षिण कोरिया, जापान और मलेशिया शामिल हैं।
वाणिज्य मंत्री के मुताबिक इन समझौतों में भारत ने इन देशों को अपने बाजार में अत्यधिक पहुंच उपलब्ध कराई, जबकि भारत को इसके बदले दूसरे देशों में कम पहुंच प्राप्त हुई। आसियान के साथ हुए एफटीए का उदाहरण देते हुए गोयल ने कहा कि भारत ने 74.4 फीसद टैरिफ लाइनों पर टैरिफ समाप्त कर दिया, जबकि कुछ आसियान देशों ने केवल 50.1 और 69.7 फीसद लाइनों पर ही टैरिफ समाप्त किया।
बढ़ता गया व्यापार घाटा
वाणिज्य मंत्री ने कहा कि इन देशों के साथ हुए द्विपक्षीय कारोबार की तुलना बताती है कि करार लागू होने के बाद की तारीख से भारत के व्यापार घाटे में लगातार वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए वर्ष 2010-11 से 2018-19 तक आसियान के साथ व्यापार घाटा पांच अरब डॉलर से चार गुना बढ़कर 21.8 अरब डॉलर हो गया। आरसेप देशों के साथ व्यापार घाटा 2003-04 में 7.1 अरब डॉलर से नौ गुना बढ़कर 2013-14 में 65.1 अरब डॉलर हो गया। अकेले चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 2003-04 के 1.1 अरब डॉलर से 33 गुना बढ़कर वर्ष 2013-14 में 36.2 अरब डॉलर हो गया।
पीयूष गोयल ने सदन को बताया कि बढ़ते आयात के इस रुख के बावजूद तत्कालीन सरकार 2006 में चीन के साथ व्यापार समझौता करने की कोशिश कर रही थी। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली व्यापार और आर्थिक संबंध समिति को चीन के साथ इस तरह का करार करने की सिफारिश की गई। हालांकि व्यापार घाटा अधिक हो जाने की चिंता व्यक्त करते हुए इसे आगे नहीं बढ़ाया गया।