जानिए इस साल कैसी रही भारतीय अर्थव्यवस्था, यह है एक्सपर्ट्स का नजरिया
Indian Economy 2019 Crisil के चीफ इकोनॉमिस्ट डी के जोशी ने कहा कि इस साल जीडीपी नीचे गई है और मुद्रास्फीति ऊपर आई है।
नई दिल्ली, अंकित कुमार। अर्थव्यवस्था के लिहाज से वर्ष 2019 खासा उतार-चढ़ाव लिए रहा। इस साल दुनिया की अर्थव्यवस्था में सुस्ती का असर देश की आर्थिक वृद्धि पर देखने को मिला। हमारी अर्थव्यवस्था इस साल जीडीपी वृद्धि की रफ्तार में फिसलन, औद्योगिक उत्पादन में भारी कमी एवं साल के आखिर के दो महीनों में खुदरा महंगाई दर में बढ़ोत्तरी के कारण सुर्खियों में रही। विश्लेषकों के मुताबिक Global Slowdown के प्रभाव एवं देश के अर्थतंत्र की ओवरहॉलिंग की वजह से इस साल अर्थव्यवस्था पर यह दबाव देखा गया। हालांकि, धीमी वृद्धि से अगले पांच साल में देश की इकोनॉमी को 5 ट्रिलियन डॉलर का बनाने के लक्ष्य को भारी धक्का लगा है।
एक्सपर्ट्स को उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही से आर्थिक वृद्धि की रफ्तार फिर से पटरी पर आने लगेगी और टिकाऊ वृद्धि दर को हासिल करने में मदद मिलेगी। दबाव झेल रहे सेक्टर्स को सुस्ती की चपेट से बाहर निकालने के लिए सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स में कमी सहित कई महत्वपूर्ण उपाय किए। आइए जानते हैं इस साल देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ी मुख्य घटनाएं क्या रहीं और सरकार ने किस तरह स्थिति को संभालने की लगातार कोशिश की।
विशेषज्ञों के मुताबिक इकोनॉमी की ओवरहॉलिंग का असर
SBI की पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री बृंदा जागीरदार के मुताबिक पिछले पांच-छह साल में बैंकों से कर्ज लेकर निवेश करने का चलन बन गया था। साथ ही इंवेस्टमेंट को डाइवर्ट करने के मामले भी सामने आए। इससे बैंकों के बैड लोन यानी कि NPA (Non-Performing Asset) बढ़ते चल गए। पिछले साल आईएलएंडएफएस संकट के सामने आने के बाद यह संकट और बढ़ गया। इस वजह से बैंकिंग सेक्टर और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों के पास नकदी की कमी हो गई। वे कर्ज देने की स्थिति में नहीं रहे। इससे कैश फ्लो कम हो गया और निवेश एवं डिमांड दोनों में कमी आई। हालांकि, बकौल जागीरदार पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने इकोनॉमी को ओवरहॉलिंग को लेकर जो उपाय किए हैं, उससे आने वाले समय में टिकाऊ वृद्धि दर हासिल होगी। उनके मुताबिक पिछले कुछ समय में सरकार के तमाम उपायों से इकोनॉमी में पारदर्शिता आई है। इससे करप्शन, मनी लांड्रिंग रूकी है। अर्थशास्त्री के मुताबिक IBC से भी बैंकों को बहुत अधिक फायदा हुआ है।
धीमी जीडीपी और बढ़ती महंगाई
रेटिंग एजेंसी Crisil के चीफ इकोनॉमिस्ट डी के जोशी ने कहा कि इस साल जीडीपी नीचे गई है और मुद्रास्फीति ऊपर गई है। जीडीपी वृद्धि दर उम्मीद से काफी नीचे आई है। उस लिहाज से यह साल काफी अनकम्फर्टेबल रहा है। आईएलएफएस संकट के कारण अर्थव्यवस्था की हालत और कमजोर हुई है। फाइनेंशियल सेक्टर को 'लाइफब्लड' बोला जाता है। उन्होंने कहा कि फाइनेंशियल सेक्टर को रिकवर होने के साथ ही रिकवरी शुरू हो पाएगी। रिकवरी बहुत धीमी होगी। इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन अभी निगेटिव है, इम्पोर्ट निगेटिव है। हालांकि, रिकवरी होती दिख रही है। कॉरपोरेट टैक्स में कमी का असर बहुत जल्द देखने को नहीं मिलेगी।
अब तक जीडीपी वृद्धि की रफ्तार
साल की पहली तिमाही यानी जनवरी-मार्च यानी कि वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में जीडीपी रफ्तार घटकर 5.8 फीसद रह गई। इससे पहले वित्त वर्ष 2017-18 की आखिरी तिमाही देश की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार 8.1 फीसद के उच्च स्तर पर रही थी। यहां से आर्थिक वृद्धि की रफ्तार लगातार हर तिमाही में उतार लिए रही। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के दौरान जीडीपी वृद्धि की रफ्तार घटकर 5 फीसद पर आ गई। इसके बाद सितंबर तिमाही में GDP वृद्धि की रफ्तार और धीमी होकर 4.5 फीसद रह गई। इस तरह देश की जीडीपी वृद्धि छह साल से भी अधिक समय के निचले स्तर पर आ गई।
ऑटोमोबाइल, बैंकिंग, रीयल एस्टेट सबसे अधिक दबाव में
यह वर्ष ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए बहुत अधिक चुनौतियों से भरा रहा। पूरे साल के दौरान वाहनों की बिक्री में गिरावट से ऑटो सेक्टर की कंपनियों एवं संबंधित उद्योगों पर बहुत अधिक दबाव देखने को मिला। सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चर्स के आंकड़ों के मुताबिक इस साल नवंबर में वाहनों की कुल घरेलू बिक्री में 12 फीसद की कमी देखी गई। इससे पहले अक्टूबर में वाहनों की बिक्री में 12.76 फीसद की कमी देखी गई थी। सितंबर में घरेलू बिक्री में 22.41 फीसद की भारी गिरावट और अगस्त में 23.55 फीसद की सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई। जुलाई में वाहनों की बिक्री 18.71 फीसद, जून में 12.34 फीसद, मई में 8.62 फीसद और अप्रैल में 15.93 फीसद तक घट गई। इस वजह से कई कंपनियों द्वारा कर्मचारियों की छंटनी की खबरें भी आईं। दूसरी तरफ सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी की दर 45 साल के स्तर पर पहुंच गई। इसके साथ ही बैंकिंग एवं रीयल एस्टेट सेक्टर पर सबसे अधिक दबाव देखने को मिला। इस दौरान बैंकों की लेंडिंग में भी कोई उल्लेखनीय सुधार होता नहीं दिखा।
सरकार ने संभाला मोर्चा
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मोर्चा संभाला। वित्त मंत्री ने जीएसटी काउंसिल की 37 वीं बैठक से पहले कॉरपोरेट टैक्स में कटौती कर कंपनियों को बड़ी राहत दी थी। इसे निवेश बढ़ाने के लिहाज से मास्टरस्ट्रोक की तरह देखा गया। देखें वीडियो-
इसके अलावा सरकार ने रीयल्टी सेक्टर को वित्तीय मदद की घोषणा की। इसके अलावा 10,000 करोड़ रुपये की राशि से नेशनल इंवेस्टमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर फंड बनाने की घोषणा हुई। साथ ही एमएसएमई सेक्टर के लिए भी आर्थिक सहायता का ऐलान सरकार की ओर से किया गया। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी देश में आर्थिक सुस्ती की स्थिति को भांपते हुए फरवरी से ही रेपो रेट में कटौती की शुरुआत कर दी। केंद्रीय बैंक ने इस साल रेपो रेट में 1.35 फीसद की कमी की।