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'तेज ग्रोथ के बूते ग्लोबल चुनौतियों से निपटा भारत'

आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि मजबूत आर्थिक वृद्धि और बुनियादी कारकों में सुधार के बूते भारत चुनौतीपूर्ण ग्लोबल माहौल में चट्टान की तरह खड़ा रहा।

By Manish NegiEdited By: Published: Wed, 29 Jun 2016 03:54 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2016 04:03 AM (IST)
'तेज ग्रोथ के बूते ग्लोबल चुनौतियों से निपटा भारत'

मुंबई, (पीटीआई)। भारतीय अर्थव्यवस्था को अंधों में काना राजा बताने वाले आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन ने अब इसी की मजबूती का गुणगान किया है। उन्होंने कहा है कि मजबूत आर्थिक वृद्धि और बुनियादी कारकों में सुधार के बूते भारत चुनौतीपूर्ण ग्लोबल माहौल में चट्टान की तरह खड़ा रहा। वह यह भी मानते हैं कि हमें मजबूत घरेलू नीतियों और ढांचागत सुधारों पर अमल जारी रखना होगा।

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राजन ने कर्ज की रफ्तार बढ़ाने के लिए बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता के दबाव को दूर करने की जरूरत बताई है।रिजर्व बैंक की ओर से मंगलवार को जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) की भूमिका में राजन ने कहा कि हमें आर्थिक विकास में अड़चन डालने वाले विरासत में मिले कानूनी मुद्दों से निपटना होगा। कारगर कारोबारी प्रक्रियाओं और आचरण में सुधार के लिए बदलाव करने होंगे।

विकसित हो रही घरेलू वित्तीय प्रणाली को न केवल जोखिम साझा करने में कारगर होने की जरूरत है, बल्कि नीतिगत दरों में बदलावों का असर बैंकों की उधारी दर पर भी दिखना चाहिए। महंगाई पर अधिक फोकस के कारण ब्याज दरों को ऊंचा रखने के लिए राजन की आलोचना होती रही है। कर्ज की रफ्तार कई सालों के निचले स्तर पर पहुंच गई है क्योंकि फंसे कर्जो से प्रभावित बैंकों ने उधारी कम कर दी है।

दुनियाभर में मिलेजुले संकेतों की तरफ इशारा करते हुए राजन बोले कि ग्लोबल अर्थव्यवस्थाएं कमजोर और असंतुलित वृद्धि को महसूस कर रही हैं। भूराजनीतिक जोखिम बने हुए हैं।

बढ़ सकते हैं बैंकों के एनपीए

आरबीआइ की रिपोर्ट कहती है कि देश में फंसे कर्जो (एनपीए) की स्थिति और बिगड़ने की आशंका है। 2016-17 में बैंकों के एनपीए बढ़कर 9.3 फीसद के स्तर तक पहुंच सकते हैं। मार्च 2016 में ये 7.6 फीसद के स्तर पर थे।

कॉरपोरेट सेक्टर का जोखिम घटा

एफएसआर के मुताबिक 2015-16 के दौरान कॉरपोरेट सेक्टर में कुल जोखिम में कमी आई है। उनके कुल कर्ज का हिस्सा 33.8 फीसद से घटकर 20.6 फीसद पर पहुंच गया है। फिलहाल रिपोर्ट में संकेत दिए गए हैं कि मांग में कमी और नकदी के दबाव के कारण जोखिम बना हुआ है।

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