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चीनी बाजार पर वार: कुछ सेक्टर्स में दो वर्ष में आत्मनिर्भर हो सकता है भारत, जानें देश कैसे कर सकता है चीन से मुकाबला

भारतीय चावल निर्यातक चीन को एक आकर्षक बाजार के तौर पर देख रहे हैं।

By Ankit KumarEdited By: Published: Wed, 08 Jul 2020 07:42 PM (IST)Updated: Thu, 09 Jul 2020 07:28 AM (IST)
चीनी बाजार पर वार: कुछ सेक्टर्स में दो वर्ष में आत्मनिर्भर हो सकता है भारत, जानें देश कैसे कर सकता है चीन से मुकाबला
चीनी बाजार पर वार: कुछ सेक्टर्स में दो वर्ष में आत्मनिर्भर हो सकता है भारत, जानें देश कैसे कर सकता है चीन से मुकाबला

नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। भारत और चीन के बीच तल्ख माहौल ने इनके आर्थिक रिश्तों को लेकर भी गूढ़ सवाल उठा दिए हैं। सिर्फ डेढ़ दो दशक में चीन ने जिस तरह भारतीय इकोनॉमी में घुसपैठ की उसने तत्कालीन राजनीति, कूटनीति और अर्थशास्त्र को कठघरे में खड़ा कर दिया है। दैनिक जागरण ने पिछले कुछ दिनों में विस्तार से विवेचना की है कि हम धीरे-धीरे उन वस्तुओं में विदेश और खासकर चीन पर निर्भर हो गए हैं जिसमें हम आत्मनिर्भर थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नारा दिया है और उद्योग जगत से लेकर जनता तक इसे लेकर फिलहाल संकल्प भी दिख रहा है। लेकिन जो जमीनी स्थिति है उसमें यह भी मानकर चलना चाहिए कि यह एक दिन में या एक साल में संभव नहीं है। देश के दो बड़े उद्योग चैंबर सीआइआइ और फिक्की ने भारतीय उद्योगों की चीन पर निर्भरता पर अलग-अलग रिपोर्ट रिलीज की।  

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इसके अनुसार प्लास्टिक, लौह अयस्क, आर्गेनिक केमिकल्स, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, रत्‍‌न व आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स ऑटोमोबाइल, रसायन के आयात के लिए हम 4 से 80 फीसद तक चीन पर निर्भर हैं। यही नहीं रत्‍‌न व आभूषण, खनिज उत्पाद, आर्गेनिक केमिकल्स, कपास, इलेक्ट्रिकल मशीनरी सेक्टर में भारत के आयात में चीन की भी बड़ी हिस्सेदारी है। जाहिर है कि लड़ाई लंबी है और इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार तथा उद्योग जगत को कंधा से कंधा भी मिलाना होगा और सुधारों की बरसात भी करनी होगी। 

(यह भी पढ़ेंः चीन में बैंकों के डूबने की आशंका से भारी निकासी कर रहे ग्राहक, इसे रोकने को ड्रैगन का नया प्लान)   

आईबीईएफ की एक रिपोर्ट पर एक नजर डालते हैं। वर्ष 2019-20 में भारत ने 26 अरब डॉलर का रत्‍‌न व आभूषण आयात किया जिसमें 6 फीसद चीन से किया गया और 29 अरब डॉलर का निर्यात किया गया जिसका तकरीबन 35 फीसद चीन को किया गया। इसी तरह से भारत की फार्मास्यूटिकल्स कंपनियों के लिए तैयार दवाओं का चीन एक बड़े बाजार के तौर पर विकसित हो रहा है। कैंसर, डायबिटिज चीन में तेजी से पैर फैला रहा है और भारतीय कंपनियों का निर्यात भी वहां बढ़ रहा है। 

वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में चीन व भारत के बीच दो उच्चस्तरीय बैठकों में भारतीय दल ने सबसे ज्यादा जोर चीन के कृषि बाजार को खुलवाने पर दिया। भारतीय चावल निर्यातक चीन को एक आकर्षक बाजार के तौर पर देख रहे हैं। फिक्की के एक बड़े अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि 'पिछले दस वर्षों से हमारी मैन्यूफैक्चरिंग नीति की कोशिश चीन की तरफ से विकसित सप्लाई चेन में एक अहम हिस्सा बनने को लेकर थी, अब हम इससे अलग होने की नीति अपनाने की बात कर रहे हैं। ऐसे में हमें दीर्घकालिक साफ, स्पष्ट नीति के साथ सामने आने होगा। हम पर कुछ उत्पादों में अंतरराष्ट्रीय बाजार से बाहर होने का भी खतरा होगा।' 

चीन से निर्यात बंद होने की स्थिति में घरेलू स्तर पर कई उत्पादों की कीमतें भी बढ़ेंगी, हमें उसके लिए भी तैयार रहना होगा। अगर चीन भी भारतीय उत्पादों पर उलटी कार्रवाई करता है तो उसके लिए भी तैयार रहना होगा। उक्त अधिकारी के मुताबिक कई उत्पाद ऐसे हैं जहां हमारी चीन पर निर्भरता एक-दो वर्षों में ही खत्म हो जाएगी, जबकि कुछ उत्पाद ऐसे हैं जहां हमें 5-7 वर्ष तक कोशिश करनी होगी। ऐसा ही एक उद्योग है ऑटोमोबाइल पार्ट्स उद्योग। 

ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के डीजी विनी मेहता का कहना है कि भारत के ऑटोमोबाइल बाजार का आकार तकरीबन 118 अरब डॉलर का है जबकि हम महज 4.75 अरब डॉलर ही चीन से आयात करते हैं। तो यह चिंता की बात नहीं है कि हम चीन से कितना सामान लेते हैं लेकिन इसमें से कुछ सामान समूचे उद्योग के लिए काफी महत्वपूर्ण है। साथ ही चीन से कुछ ऐसे ऑटो पार्ट्स भारत लेता है जो हम यहां घरेलू स्तर पर नहीं बना सकते। हमें यह भी देखना होगा कि हमारे यहां तैयार सामान की कीमत कम से कम चीन के बराबर हो। यह कैसे होगा।

सच्चाई यह है कि भारत में सिर्फ फंड की लागत 9-11 फीसद है जबकि जिनसे हमारा मुकाबला है वहां एक फीसद है। फिर भी सरकार की मदद मिले और घरेलू ऑटो सेक्टर कमर कस ले तो दो वर्षों में चीन पर निर्भरता हम खत्म कर सकते हैं। इलेक्ट्रिकल्स सेक्टर एक ऐसा ही क्षेत्र है जहां भारत सरकार ने चीन पर निर्भरता पूरी तरह से खत्म करने की शुरुआत कर दी है। वैसे सच्चाई यह भी है कि अगर इतिहास में पहली बार भारत बिजली उत्पादन क्षमता में आत्मनिर्भर हुआ है तो इसमें चीन की कंपनियों की तरफ से रिकार्ड समय में टरबाईन की आपूर्ति का भी योगदान है। भारत ने जब रिनीवल ऊर्जा के तहत सोलर प्लांट को बढ़ावा देना शुरु किया तो इसमें भी चीन की कंपनियां घुस गई।

एक अनुमान के मुताबिक भारत में अभी तक लगाये गये 90 फीसद सोलर प्लांट में चीन के उपकरणों की हिस्सेदारी है। वर्ष 2018-19 में भारत ने 71 हजार करोड़ रुपये का बिजली उपकरणों का आयात किया था जिसमें 31 हजार करोड़ रुपये के उपकरण चीन से मंगाये गये थे। बिजली मंत्री आर के सिंह का कहना है कि इसमें से ज्यादातर सामान देश में बनते हैं फिर भी हम उसे चीन से मंगाते हैं। अब सरकार चीन से आयातित उपकरणों पर उच्च आयात शुल्क लगा कर उन्हें हतोत्साहित करने जा रही है।

चीनी इलेक्ट्रिकल्स उपकरणों के आयात पर 15 से 40 फीसद तक आयात शुल्क लगाने की तैयारी है। लेकिन भारत में इन उपकरणों के निर्माण की लागत को घटाने की भी कोशिश करनी होगी। दरअसल, आत्मनिर्भर बनने के लिए हमें न सिर्फ चीन बल्कि दूसरे देशों पर भी निर्भरता कम करनी होगी। लिहाजा कोरी भावना से उपर उठकर यथार्थ के धरातल पर लड़ाई लड़नी होगी।


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