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महंगाई के अनुपात में नहीं बढ़ेगी आयकर छूट सीमा

करदाताओं को निराश करते हुए केंद्र सरकार ने आयकर से छूट की सीमा हर साल महंगाई में वृद्धि के हिसाब से बढ़ाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। वित्तीय मामलों सबंधी संसद की स्थायी समिति ने आयकर की छूट की सीमा को महंगाई में उतार-चढ़ाव से जोड़ने का सुझाव दिया था, लेकिन सरकार ने प्रत्यक्ष कर संहिता यानी डीटीसी के संशोधित मसौदे में इसे जगह नहीं दी है। फिलहाल आयकर छूट की सीमा 2,00,000 लाख रुपये है।

By Edited By: Published: Sat, 05 Apr 2014 10:08 PM (IST)Updated: Sat, 05 Apr 2014 10:08 PM (IST)
महंगाई के अनुपात में नहीं बढ़ेगी आयकर छूट सीमा

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। करदाताओं को निराश करते हुए केंद्र सरकार ने आयकर से छूट की सीमा हर साल महंगाई में वृद्धि के हिसाब से बढ़ाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। वित्तीय मामलों सबंधी संसद की स्थायी समिति ने आयकर की छूट की सीमा को महंगाई में उतार-चढ़ाव से जोड़ने का सुझाव दिया था, लेकिन सरकार ने प्रत्यक्ष कर संहिता यानी डीटीसी के संशोधित मसौदे में इसे जगह नहीं दी है। फिलहाल आयकर छूट की सीमा 2,00,000 लाख रुपये है।

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सरकार अगर संसदीय समिति की सिफारिश मंजूर कर लेती तो प्रत्यक्ष कर संहिता-2013 पारित होने पर महंगाई दर में इजाफे के मुताबिक इनकम टैक्स छूट सीमा में वृद्धि हो जाती। वित्त मंत्रालय का कहना है कि आयकर छूट सीमा को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ना कई वजहों से व्यावहारिक नहीं है।

मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि समिति ने यह भी स्पष्ट नहीं किया था कि आयकर छूट की सीमा को खुदरा महंगाई से जुड़े उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से क्यों जोड़ा, थोक मूल्य सूचकांक से क्यों नहीं? अगर मूल्य सूचकांक के आधार वर्ष या वस्तुओं की सूची में कोई बदलाव होता है तो जटिलता पैदा हो सकती है। इससे विसंगति पैदा हो जाएगी। इनकम टैक्स से छूट की सीमा को महंगाई में वृद्धि से इसलिए भी नहीं जोड़ा जा सकता, क्योंकि इसका निर्धारण करदाताओं को दी जाने वाली अन्य तरह की कर राहतों सहित कई कारकों के आधार पर किया जाता है।

आयकर में छूट की सीमा को बढ़ाया जाएगा तो उसका असर केंद्र सरकार के राजस्व पर पड़ेगा। मसलन, मौजूदा स्थिति में अगर छूट की सीमा को दो लाख रुपये से बढ़ाकर तीन लाख रुपये किया जाता है तो इससे सरकारी खजाने पर लगभग 60,000 करोड़ रुपये की चपत लगेगी। यानी केंद्र सरकार को इतनी रकम कम मिलेगी। इसका नतीजा यह होगा कि सरकार को देश के विकास और अन्य मदों से जुड़े खर्चो में कटौती करनी पड़ेगी।

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