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राह से भटकी आइबीसी में बड़े बदलाव की जरूरत, नए दिवालिया कानून को लेकर संसदीय समिति की रिपोर्ट

इंसाल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) की सफलता को लेकर जानकारों के एक वर्ग के संदेह को संसदीय समिति की छानबीन ने भी बल दिया है। वित्त मामलों की संसदीय समिति ने एक रिपोर्ट में कहा है कि आइबीसी अपने राह से भटक गई है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Wed, 04 Aug 2021 01:06 PM (IST)Updated: Wed, 04 Aug 2021 01:06 PM (IST)
राह से भटकी आइबीसी में बड़े बदलाव की जरूरत, नए दिवालिया कानून को लेकर संसदीय समिति की रिपोर्ट
इस रिपोर्ट में आइबीसी से जुड़े हर तंत्र की खामियां उजागर की गई हैं।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। इंसाल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) की सफलता को लेकर जानकारों के एक वर्ग के संदेह को संसदीय समिति की छानबीन ने भी बल दिया है। वित्त मामलों की संसदीय समिति ने एक रिपोर्ट में कहा है कि आइबीसी अपने राह से भटक गई है और फंसे कर्ज को वसूलने में आइबीसी अब तक वैसा काम नहीं कर पाई है जिसके लिए इसे अस्तित्व में लाया गया था। संसदीय समिति की रिपोर्ट मंगलवार को लोकसभा में पेश की गई। इस रिपोर्ट में आइबीसी के राह से भटकने की बड़ी वजह इसमें हुए संशोधनों को माना गया है।

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इस रिपोर्ट में आइबीसी से जुड़े हर तंत्र की खामियां उजागर की गई हैं। इस कानून के मुताबिक फंसे कर्ज से जुड़े मामलों का आइबीसी के तहत अधिकतम 180 दिनों के भीतर निपटारा करने का प्रविधान है। लेकिन करीब 13,000 मामले ऐसे हैं जो इस समय सीमा को बहुत पहले पार कर चुके हैं और लटके हैं। इन मामलों में नौ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि फंसी हुई है। ऐसे में संसदीय समिति ने कई तरह से व्यापक बदलाव करने की सलाह सरकार को दी है। हालांकि आइबीसी में पहले ही सरकार कई संशोधन कर चुकी है। लेकिन संसदीय समिति की सिफारिशों को करने की स्थिति में इसमें और कई संशोधनों की दरकार होगी।

वर्ष 2016 में राजग सरकार ने आइबीसी को लागू किया था और इसे जीएसटी की तरह ही एक क्रांतिकारी आर्थिक कदम बताया गया था। संसदीय समिति ने भी स्वीकार किया है कि वर्ष 2017 और वर्ष 2018 में विश्व बैंक की तरफ से ईज आफ डूइंग बिजनेस की रैकिग में भारत की स्थिति बेहतर होने के पीछे आइबीसी एक अहम वजह थी। लेकिन उसके बाद से यह कानून अपने उद्देश्यों से काफी भटक गया है। आइबीसी के तहत आए मामले में 95 फीसद राशि की वूसली नहीं होने के लिए भी इसमें हुए संशोधनों को जिम्मेदार बताया गया है। समिति ने कहा है कि इन्हीं बदलावों की वजह से 71 फीसद मामलों का निपटान 180 दिनों के भीतर नहीं हो पाता है। ऐसे में समिति का सुझाव है कि नए सिरे से आइबीसी में कुछ बदलाव करने की जरूरत है ताकि इसके उद्देश्यों के साथ सामंजस्य स्थापित हो सके।

ये बताई गईं कमियां

  • आइबीसी की सफलता के लिए इंसाल्वेंसी रिजाल्यूशन प्रोफेशनल्स (आइआरपी) की भूमिका बहुत अहम होती है, लेकिन समिति ने महज स्नातक उत्तीर्ण को भी आइआरपी बना दिए जाने पर हैरानी जताई है।
  • आइआरपी की योग्यता व विशेषज्ञता पर संदेह जताते हुए समिति ने कहा है कि इन्हें बड़े बड़े जटिल मामलो को निपटाने की जिम्मेदारी दी जा रही है जो अनुचित है
  • इंसाल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी बोर्ड आफ इंडिया (आइबीबीआइ) की तरफ से अभी तक 203 आइपी के खिलाफ जांच की गई है और 123 के खिलाफ कार्रवाई भी की गई है।

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