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    धीरूभाई अंबानी ने देखा था पोस्टकार्ड से सस्ती कॉल का सपना, जियो ने उसे कैसे किया साकार?

    Updated: Mon, 22 Apr 2024 03:05 PM (IST)

    आज फोन कॉल काफी सस्ती हो गई है। अगर सिर्फ फोन कॉल की बात करें तो इसे तकरीबन आप मुफ्त ही कह सकते हैं। लेकिन एक समय था जब लोगों को इनकमिंग कॉल के लिए भी पैसे देने पड़ते थे। रिलायंस इंडस्ट्रीज के फाउंडर धीरूभाई ने पोस्ट कार्ड से भी सस्ती कॉल का सपना देखा था जिसे पूरा किया उनके बड़े बेटे मुकेश अंबानी ने रिलायंस जियो के साथ।

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    उस समय इनकमिंग कॉल के भी पैसे देने पड़ते थे।

    बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। आज एक फोन कॉल के कितने रुपये लगते हैं? इस जवाब के लिए आपका दिमाग पर जोर डालना बताता है कि अब भारत में फोन कॉल कितनी सस्ती हो चुकी हो है। तकरीबन मुफ्त ही कह सकते हैं। और इसका काफी हद श्रेय जाता है रिलायंस इंडस्ट्रीज की जियो इंफोकॉम को।

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    कॉल रेट को इतना सस्ता करने का सपना देखा था, रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) के फाउंडर धीरूभाई अंबानी ने। वह चाहते थे कि भारत के लोग पोस्ट कॉर्ड से भी कम कीमत में कॉल करें। यह वो जमाना था, जब इनकमिंग कॉल के भी पैसे देने पड़ते थे।

    रिलायंस कम्युनिकेशंस की शुरुआत

    साल 2002 में धीरूभाई अंबानी के 'कर लो दुनिया मुट्ठी में' नारे के साथ रिलायंस टेलिकॉम सेक्टर में उतरी। उस समय दूरसंचार क्षेत्र में BSNL और एयरटेल जैसी कंपनियों का दबदबा था। लेकिन, रिलायंस कम्युनिकेशंस (Reliance Communications या RCom) ने सिर्फ 600 रुपये का फोन और 15 पैसे की कॉल रेट देकर तहलका मचा दिया।

    हालांकि, धीरूभाई अंबानी के इंतकाल के बाद रिलायंस ग्रुप का उनके दोनों बेटों- मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच बंटवारा हो गया। मुकेश की टेलिकॉम सेक्टर में काफी दिलचस्पी थी, लेकिन 2006 में रिलायंस ग्रुप के बंटवारे में RCom धीरूभाई के छोटे बेटे अनिल के हिस्से आई।

    उस वक्त भारत का टेलीकॉम सेक्टर काफी तेजी से बदल रहा था। वोडाफोन जैसी विदेशी कंपनी भी सस्ते प्लान के साथ इंडियन मार्केट में उतर गई थी। वहीं, रिलायंस का कस्टमर बेस मुख्यत: CDMA था। मतलब कि आप सिर्फ RCom में ही इसका सिम चला सकते हैं। और कॉल रेट भी सेम नेटवर्क ही सस्ता पड़ता था।

    रिलायंस कम्युनिकेशंस का बुरा दौर

    उस दौर में चीन के किफायती मल्टीमीडिया फोन की एंट्री भी हो चुकी थी। इन फोन की लोकप्रियता काफी तेजी से बढ़ रही और इसमें GSM सिम लगता था। जैसा कि आजकल का सिम होता है, जो किसी भी फोन में लग जाता है। GSM सिम और सस्ते चाइनीज फोन के गठजोड़ ने RCom के कस्टमर बेस को भारी चोट पहुंचाई।

    2010 के आसपास तो ऐसा वक्त आ गया कि टेलिकॉम मार्केट पर वोडाफोन, एयरटेल, आइडिया और BSNL जैसी कंपनियों का पूरा कब्जा हो गया। फिर RCom को भी मजबूरन GMS सिम वाले सेगमेंट में उतरना पड़ा, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। उसके पूरे कस्टमर बेस को दूसरी टेलिकॉम कंपनियों ने कैप्चर कर लिया था।

    फिर मार्केट में आया रिलायंस जियो

    रिलायंस ग्रुप के बंटवारे के वक्त यह करार हुआ था कि दोनों भाई कोई ऐसा बिजनेस नहीं शुरू कर सकते, जिससे दूसरे को नुकसान हो। यह नॉन-कंपीट कंडीशन साल 2010 में खत्म हुई। और उसके बाद मुकेश अंबानी ने टेलिकॉम सेक्टर में उतरने की तैयारी शुरू कर दी, जो उनका वर्षों पुराना सपना था।

    रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) ने जून 2010 में 4,800 करोड़ रुपये में इन्फोटेल ब्रॉडबैंड सर्विसेज लिमिटेड (IBSL) में 96 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी। यही इकलौती नॉन-लिस्टेड टेलिकॉम कंपनी थी, जिसने 4जी ऑक्शन में भारत के सभी 22 सर्किलों में ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम जीता था।

    जियो इन्फोकॉम ने कैसे बनाया दबदबा

    इन्फोटेल ब्रॉडबैंड सर्विसेज लिमिटेड जनवरी 2013 में रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड (RJIL) बन गई। लेकिन, जियो पूरे देश में अपनी 4जी सर्विस सितंबर 2016 में पेश किया। इसने शुरुआत में अपनी सेवाओं को मुफ्त रखा। जब पेड भी की, तो दाम दूसरी कंपनियों के मुकाबले काफी कम रखा।

    इससे यूनिनॉर, एयरसेल और टाटा डोकोमो जैसी कई छोटी टेलिकॉम कंपनियों को बिजनेस समेटना पड़ा। वोडाफोन और आइडिया ने वजूद बचाने के लिए मर्जर कर लिया। लेकिन, यह कंपनी आज भी वित्तीय मुश्किलों से जूझ रही है।

    वहीं, जियो ने लगातार अपने ग्राहकों की संख्या के साथ रेवेन्यू भी बढ़ाया और देश की सबसे बड़ी कंपनी बन गई। धीरूभाई अंबानी ने जो सपना देखा था, वह Rcom ने बस उसकी शुरुआत की। लेकिन, उसे सही मायने में अंजाम तक पहुंचाया, मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो ने।

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