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कच्चे तेल की कीमतें आपकी जेब पर कैसे डालेगी असर, जानिए पूरा गणित

कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है तो आपकी जेब पर इसका सीधा सीधा असर पड़ना तय है क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तक तेल आयात करता है। जानिए क्या है कच्चे तेल के बाजार का पूरा गणित।

By Atul GuptaEdited By: Published: Wed, 29 Jun 2016 10:37 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2016 02:44 PM (IST)
कच्चे तेल की कीमतें आपकी जेब पर कैसे डालेगी असर, जानिए पूरा गणित

नई दिल्ली, [अतुल गुप्ता]। ब्रेक्सिट के नतीजों की वजह से दुनियाभर के कई बाजारों में मंदी हावी हो गई जिससे निवेशकों को करीब 2 अरब डॉलर से भी ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा। ब्रेक्सिट के इस बवंडर से कच्चा तेल भी अछूता नहीं रहा और शुक्रवार को कच्चे तेल की कीमत में करीब 6 फीसदी का नुकसान हुआ। कच्चे तेल के अच्छा माने जाने वाले ब्रेंट क्रूड का वायदा बाजार एक समय 3.37 डॉलर गिरकर 47.54 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया। कच्चे तेल की कीमत में आ रहे उतार चढ़ाव से आपकी जेब कैसे होगी प्रभावित आइए आपको बताते हैं-

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तेल की कीमत बढ़ी तो बढ़ेगा आपकी जेब पर बोझ

कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है तो आपकी जेब पर इसका सीधा सीधा असर पड़ना तय है क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तक तेल आयात करता है। ऐसे में कच्चे तेल के भाव बढऩे से उसका आयात बिल काफी बढ़ सकता है। अगर कच्चे तेल के भाव में एक डॉलर की भी बढ़ोतरी होती है तो साल भर में भारत पर 9126 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ जाएगा।

ये है कच्चे तेल के बाजार का गणित

कच्चे तेल के वैश्विक उत्पादन में ओपेक देशों की 40 फीसदी, उत्तरी अमेरिका की 17 फीसदी, रूस की 13 फीसदी, चीन की 5 फीसदी, दक्षिण अमेरिका की 5 फीसदी और अन्य की 20 फीसदी हिस्सेदारी है। ओपेक देशों के कच्चे तेल के उत्पादन में सऊदी अरब की 32 फीसदी, ईरान और इराक की 19 फीसदी, कुवैत की 8 फीसदी, यूएई और वेनेजुएला की 16 फीसदी और अन्य की 25 फीसदी हिस्सेदारी है।

भारत की बात करें तो भारत अपने क्रूड इंपोर्ट का 20.2 फीसदी सऊदी अरब से, 13 फीसदी इराक से, 10.8 फीसदी कुवैत से, 8.6 फीसदी नाइजीरिया से, 7.4 फीसदी यूएई से, 5.8 फीसदी ईरान से और 34.2 फीसदी अन्य से हासिल करता है।

ऐसे तय होते हैं कच्चे तेल के दाम

ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल के भाव मांग और सप्लाई के आधार पर तय होते हैं जिसमें ओपेक की बड़ी भूमिका होती है। चीन की मांग पहले जैसी रफ्तार से नहीं बढ़ने की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट हो रही है। 2010 में चीन की मांग में 12 फीसदी की बढ़त हुई थी जबकि इस साल चीन की मांग में कोई बढ़त नहीं हुई है। इसके अलावा इस बार कीमतों के गिरने के बाद भी ओपेक ने उत्पादन नहीं घटाया और अमेरिका और कनाडा के शेल ऑयल उत्पादन में भी तेज उछाल आया है जिससे कच्चे तेल की सप्लाई बढ़ गई है।

तेल की कीमत गिरने से भारत को फायदा

कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से भारत, चीन और जापान जैसे देशों को फायदा है। वहीं रूस, ईरान और ओपेक देशों को नुकसान हो रहा है। सस्ते कच्चे तेल से भारत की मंहगाई दर में कमी आएगी, करेंट अकाउंट घाटा कम होगा। देश के इंपोर्ट बिल में कमी आएगी और सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी कम होगा। इसके अलावा कच्चे तेल के सस्ते होने से देश की पेंट, प्लास्टिक, फर्टिलाइजर और शिपिंग कंपनियों को फायदा होगा।

हालांकि पिछले साल अधिकांश समय कच्चे तेल के भाव गिरावट पर रहे थे और इसका औसत भाव 40 डॉलर प्रति बैरल रहा था। इसके बावजूद भारत को तेल आयात पर 63.96 अरब डॉलर की भारी रकम खर्च करनी पड़ी थी। चालू वित्त वर्ष में तेल बिल 66 अरब डॉलर रहने और तेल का औसत भाव करीब 48 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान जताया गया है।

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