खाली जमीन पर 15 दिन में खड़ी होगी बहुमंजिला इमारत, खास तकनीक का होगा इस्तेमाल
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, ग्राउंड जीरो पर अभी तक 4 लाख 68 हजार घर ही तैयार हो पाए हैं। माना जा रहा है कि इस स्पीड से 2022 तक इस टार्गेट को हासिल करना नामुमकिन है
नई दिल्ली (अमोद कुमार)। एक खाली और बंजर ज़मीन के सामने खड़ा होकर अगर आपसे कोई ये कहे कि आप एडवांस या बुकिंग की रकम जमा करें, आपको यहां बनने वाली बहुमंजिली इमारत में 7वें फ्लोर पर आपका फ्लैट महज 15 से 30 दिन में तैयार हो जायेगा तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी? खैर आज की रियल एस्टेट बाजार की खराब हालत और तमाम परेशानी झेल रहे खरीददार की स्वाभाविक प्रतिक्रिया क्या हो सकती है उससे हम पूरी तरह वाकिफ हैं। मगर ये कोई मजाक या सपना नहीं, बल्कि हकीकत है जो पूरी तरह से संभव होने जा रहा है।
दरअसल 2022 तक प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हाउसिंग फॉर ऑल यानी सभी को घर का टार्गेट हासिल करने के लिए केंद्र सरकार अब भारी मात्रा में ऐसी टेक्नोलॉजी, अफोर्डेबल हाउसिंग सेक्टर में लाना चाहती है जिससे कुछ सालों नहीं, कुछ महीनों भी नहीं, बल्कि कुछ ही दिनों में ही मल्टी-स्टोरीज बिल्डिंग बनकर तैयार हो जाए। दुनियाभर में ऐसी कई कंपनियां हैं जो 15 से 30 दिनों में मल्टी-स्टोरीज बिल्डिंग बना रही हैं। हाउसिंग फॉर ऑल योजना को समयबद्ध लागू करने में आ रही दिक्कतों को देखते हुए अब हाउसिंग सेक्टर में ऐसी टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की योजना को लेकर केंद्र सरकार काफी गंभीर हो गयी है।
अफोर्डेबल हाउसिंग के निर्माण की वर्तमान स्पीड से हाउसिंग फॉर ऑल के टार्गेट को हासिल करना असंभव लगने लगा है। लिहाजा शहरी विकास मंत्रालय हाउसिंग सेगमेंट में दुनिया की सबसे आधुनिक टेक्नोलॉजी लाने और इस्तेमाल करने की योजना बनाई है। मंत्रालय इसके लिए दुनियाभर की कंपनियों के लिए अगले कुछ दिनों में ही ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज 2018 आयोजित करने जा रही है। इसमें दुनियाभर में हाउसिंग के क्षेत्र में एडवांस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने वाली कंपनियां हिस्सा लेंगी।
योजना ये है कि ऐसी टेक्नोलॉजी किफायती दरों पर देश में लाई जाए। जिस कंपनी की टेक्नोलॉजी सबसे बेहतर होगी, जो भी कंपनी नेशनल बिल्डिंग कोड और ग्रीन बिल्डिंग के स्टैंडर्ड के हिसाब से किफायती रेट पर कम से कम समय में सस्ता से सस्ता घर बना कर देगी, उसी के साथ करार किया जाएगा। इसके तहत केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें और प्राइवेट कंपनियां भी लो कोस्ट-फास्ट कंस्ट्रक्शन के लिए करार करेंगी।
शहरी विकास मंत्रालय का उपक्रम बिल्डिंग मटेरियल एंड टेक्नोलॉजी प्रमोशन काउंसिल (BMTPC) के कार्यकारी निदेशक शैलेश कुमार अग्रवाल ने जागरण से बातचीत में कहा- “रैपिड हाउसिंग टेक्नोलॉजी के प्रयोग से हम मजबूत, इको-फ्रेंडली, गुणवत्ता से परिपूर्ण, सुरक्षित और सस्ते मकान बनायेंगे। साथ ही, इन मकानों की उम्र हमारी पारम्परिक मकानों की तुलना में ज्यादा होगी। इनमें वायु, ध्वनि और पानी का प्रदूषण और दोहन कम होगा। भारत में मकानों की कमी को पूरा करने हेतु इन तकनीकों का सहारा लेना ही होगा।”
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में कंस्ट्रक्शन सेक्टर ग्रोथ के हिसाब से कम से कम 25 सालों तक डिमांड बनी रहेगी। आपको बता दें कि साल 2012 के आंकड़ों के मुताबिक, शहरी इलाके में करीब 2 करोड़ घरों की जरूरत है, जिसमें केवल स्लम में रहने वालों के लिए करीब 1 करोड़ घरों की जरूरत होगी। राज्यों की ओर से अफोर्डेबल हाउसिंग प्लान भेजने में हो रही देरी की वजह से अभी तक इस सेगमेंट में शहरी इलाकों के लिए 24 लाख घर कंस्ट्रक्शन के लिए अप्रूव किए गए हैं। ऐसे प्रोजेक्ट में केद्र और राज्य दोनों की भागीदारी होती है, लिहाजा राज्यों की भूमिका भी काफी अहम हो जाती है। ऐसे में नई टेक्नोलॉजी से उम्मीद की जा रही है कि घरों की कीमतें कम होने के साथ ही इसे कम से कम वक्त में तैयार भी कर लिया जाएगा। देखना यह है कि देश के हाउसिंग सेक्टर में कितनी ग्लोबल कंपनियां दिलचस्पी दिखाती हैं।
केंद्र सरकार ने आगामी आमचुनाव से पहले अगले एक साल में 20 लाख सस्ते घर बनाने का लक्ष्य रखा है जिसके लिए प्रतिदिन 5000-6000 घर बनाने होंगे। इसके लिए अब सालों-साल बनते रहने वाले घरों को महज हफ्ते भर में या अधिकतम महीने भर में तैयार करने की रणनीति बनाई गयी है, ताकि 2019 से पहले इसे पूरा किया जा सके। न्यू टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से देशभर में तकरीबन 8.5 लाख घरों का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है।
न्यू बिल्डिंग तकनीक क्या है?
- प्रिकास्ट बिल्डिंग कम्पोनेन्ट
- लेग्गो ब्लॉक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
- पॉडकास्ट बाथरूम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
- फैक्ट्री में ही दीवार बनेगी
- फैक्ट्री में ही छत और बीम बनेगा
- फैक्ट्री में ही सीढियां और छज्जा बनेगा
- फैक्ट्री में अलग-अलग कम्पोनेन्ट बनाने के बाद उसे साइट पर लाकर असेम्बल कर दिया जायेगा (जैसा कि आजकल मेट्रो रेल के निर्माण में प्रयोग हो रहा है।)
अब सवाल ये कि नई टेक्नोलॉजी से कुछ दिनों में ही अगर घर तैयार होंगे तो ये कितनी मजबूत होंगी और उसकी कीमतें कितनी कम होंगी?
प्रधानमंत्री आवास योजना को शुरू हुए 2 साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है। साल 2022 तक बड़े शहरों में करीब 2 करोड़ सस्ते घरों की जरूरत होगी। दूसरी ओर 2019 के आम चुनावों से पहले सरकार ने 20 लाख सस्ते घर तैयार करने का टारगेट रखा है। लिहाजा अब घरों के जल्द कंस्ट्रक्शन पर फोकस किया जा रहा है। इसके लिए सरकार ने 16 ऐसे एडवांस तकनीक की पहचान की है जिसके इस्तेमाल से समयबद्ध मास कंस्ट्रक्शन हो पाए। अर्बन डेवलपमेंट मिनिस्ट्री ने इस टार्गेट को हासिल करने के लिए हाउसिंग सेक्टर की दुनिया भर की हाई तकनीक का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को आमंत्रित किया है। मकसद ये है कि कुछ दिनों में ही 5-7 मंजिला इमारत बने। साथ ही, घरों की कीमतों में 20-25 पर्सेंट की कमी भी आए। मान लीजिये EWS कैटेगरी में एक बेड रूम सेट को बनाने में यदि 6 लाख रुपए लग रहे हैं तो नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से ये महज 4-5 लाख में बन कर तैयार हो जाएंगे। इस बावत बिल्डिंग मटेरियल एंड प्रमोशन काउंसिल के निदेशक शैलेश अग्रवाल ने जागरण से कहा- “न्यू बिल्डिंग टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से दामों में कम से कम 15% की आएगी। वहीं, लगभग 35% समय की बचत होगी।”
रैपिड मास हाउसिंग कंस्ट्रक्शन (RMHC) तकनीक का इस्तेमाल करने वाली कंपनी जो केंद्र सरकार के सभी मानकों पर खरा उतरेगी उन्हें राज्यों में मास हाउसिंग कंस्ट्रक्शन (MHC) के लिए टेंडर मिलेगा। यहां आपको बता दें कि बड़े हाउसिंग शॉर्टेंज के बावजूद हाउसिंग फॉर ऑल मिशन के तहत करीब 37.5 लाख घरों को फंडिंग की मंजूरी मिल चुकी है। हालांकि, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, ग्राउंड जीरो पर अभी तक 4 लाख 68 हजार घर ही तैयार हो पाए हैं। माना जा रहा है कि इस स्पीड से 2022 तक इस टार्गेट को हासिल करना नामुमकिन है। इसलिए शहरी विकास मंत्रालय ने विदेशों में प्रयुक्त नई टेक्नोलॉजी के जरिये जमीनी चुनौतियों को हल करने का निश्चय किया है।
वहीं, शहरी विकास मंत्रालय का उपक्रम हिंदुस्तान प्रीफैब लिमिटेड ने अपने टेक्नोलॉजी पार्क में अफोर्डेबल सिंगल और डबल स्टोरी मकानों की प्रोटो-टाइप श्रृंखला तैयार किया हैं जिन्हें हफ़्ते-दो हफ्ते में तैयार किया जा सकता है और इनकी कीमत लगभग 20-30% कम होगी।