नोटबंदी का असर!, 2016-17 के दौरान नए नोटों की छपाई का खर्च बढ़कर हुआ 800 करोड़ रुपये
2016-17 और 2017-18 के दौरान सरकार को नोटों की छपाई के लिए क्रमश: 790.65 और 490.12 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। 2016-17 के दौरान सरकार को नए नोटों की छपाई में 709.65 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। मंगलवार को संसद को दी गई जानकारी में सरकार ने बताया कि 2016-17 के दौरान सरकार को प्रिटिंग लागत के मद में 709.65 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। हालांकि अगले साल इसमें कमी आई और 2017-18 में यह रकम 409.12 करोड़ रुपये हो गई।
गौरतलब है कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा करते हुए 500 और 1000 रुपये के नोट को बैन कर दिया था। इसके बाद सरकार को नए 2000 और 500 रुपये के नोटों की तत्काल छपाई करनी पड़ी थी।
राज्यसभा को दी गई लिखित जानकारी में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि (नोटबंदी के पहले) 2015-16 में नोटों की छपाई के लिए 340.21 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे। वित्त मंत्री ने बताया, ‘2016-17 और 2017-18 के दौरान सरकार को नोटों की छपाई के लिए क्रमश: 790.65 और 490.12 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े।’
सरकार से पूछा गया कि नोटबंदी की वजह से 500 और 1000 रुपये के नोटों को वापस लेने और उन्हें नष्ट करने और नए नोटों की छपाई के दौरान खजाने पर कितना बोझ पड़ा।
जेटली ने कहा, ‘आरबीआई ने अपने खाते में अलग से नोटबंदी के बाद हुए नोटों की छपाई के खर्च को नहीं दिखाया है।’ उन्होंने बताया कि एसबीआई को छोड़कर किसी भी सरकारी बैंक ने नोटबंदी के दौरान जान-माल के नुकसान की कोई खबर नहीं दी है। उन्होंने बताया कि केवल एसबीआई ने बताया है कि नोटबंदी के दौरान उसके तीन कर्मचारी और एक ग्राहक की मौत हुई।
जेटली ने कहा कि मृतकों के परिवार वालों को करीब 44 लाख रुपये से अधिक की राशि दी गई है, जिसमें ग्राहक के परिवार को दी गई तीन लाख रुपये की रकम शामिल है।
अर्थव्यवस्था और रोजगार की स्थिति पर नोटबंदी के प्रभाव के बारे में किसी अध्ययन के बारे में पूछे जाने पर जेटली ने कहा सरकार ने ‘अभी तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं कराय है।’
यह भी पढ़ें: फेडरल रिजर्व के संकेतों और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से तीन हफ्तों की ऊंचाई पर