कई निजी कंपनियों से निकलने की तैयारी में है सरकार, विनिवेश के जरिये जुटाना चाहती है रेवेन्यू
सरकार उन कंपनियों में अपनी बची हिस्सेदारी भी बेचने की तैयारी कर रही है जिन्हें विनिवेश के माध्यम से निजी हाथों में सौंपा जा चुका है
नई दिल्ली, नितिन प्रधान। राजकोषीय प्रबंधन में जुटी सरकार रेवेन्यू के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विनिवेश के प्रत्येक विकल्प पर हाथ आजमा रही है। एक तरफ सरकार विनिवेश के माध्यम से सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया में लगी हुई है। दूसरी तरफ, वह उन कंपनियों में अपनी बची हिस्सेदारी भी बेचने की तैयारी कर रही है, जिन्हें विनिवेश के माध्यम से निजी हाथों में सौंपा जा चुका है। इनमें एक्सिस बैंक और आइटीसी जैसी कंपनियां प्रमुख हैं। इनमें सरकार अपनी बची हिस्सेदारी स्पेसिफाइड अंडरटेकिंग ऑफ यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (SUUTI) के माध्यम से बेचने की तैयारी कर रही है।
इसके अलावा, सरकार हिंदुस्तान जिंक जैसी कंपनियों से भी बची हिस्सेदारी बेचकर निकल जाना चाहती है। एसयूयूटीआइ के माध्यम से सरकार के पास फिलहाल एक्सिस बैंक और आइटीसी की इक्विटी हिस्सेदारी है। एक्सिस बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 4.97 परसेंट और आइटीसी में 7.94 परसेंट है। विनिवेश के जरिये रेवेन्यू जुटाने के सरकार विभिन्न विकल्प तलाश कर रही है।
एक्सिस बैंक के शेयर की मौजूदा कीमत के हिसाब से सरकार की हिस्सेदारी की कीमत 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक बैठती है। जबकि आइटीसी की सरकारी हिस्सेदारी की कीमत करीब 25 हजार करोड़ रुपये है। इस तरह इन दोनों कंपनियों में अपनी इक्विटी बेचने से सरकार को करीब 30 से 35 हजार करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है।
इसके अतिरिक्त सरकार हिंदुस्तान जिंक में अपनी बची हुई 29.58 परसेंट हिस्सेदारी भी निकालने की तैयारी कर रही है। हिंदुस्तान जिंक को रणनीतिक विनिवेश के तहत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने वेदांता समूह को बेचा था। इस कंपनी में वेदांता की हिस्सेदारी 64.92 परसेंट है।
बाजार के जानकारों का मानना है कि सरकार को इस हिस्सेदारी की बिक्री से 25,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि मिल सकती है। सूत्र बताते हैं कि सरकार इन कंपनियों में बची हिस्सेदारी की बिक्री खुदरा निवेशकों के हाथों करना चाहती है। हालांकि शेयर बाजार में अभी उतार-चढ़ाव काफी अधिक है। लेकिन विनिवेश के लिए जिम्मेदार अधिकारियों का मानना है कि तेजी के रुख में बाजार में इन कंपनियों के शेयर बिक्री के लिए उतारने से अच्छा रिस्पांस मिलेगा।
अधिकारियों का मानना है कि इन तीनों कंपनियों में सरकार अगर अपनी बची हुई हिस्सेदारी बेच लेती है तो उसे करीब 60,000 करोड़ रुपये की राशि मिल सकती है। रेवेन्यू कलेक्शन की धीमी रफ्तार को देखते हुए सरकार के लिए चालू वित्त वर्ष में यह बहुत बड़ी रकम साबित हो सकती है। हालांकि इन कंपनियों के शेयरों को बाजार में कब उतारा जाएगा, यह अभी निश्चित नहीं है।
सरकार ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। सरकार इस अवधि में अपने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.3 परसेंट पर सीमित करना चाहती है। लेकिन रेवेन्यू कलेक्शन की धीमी रफ्तार उसके आड़े आ रही है।
दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था में मांग की कमी की वजह से सरकार पर अपना व्यय बढ़ाने का दबाव भी है। ऐसे में पब्लिक सेक्टर की कंपनियों के विनिवेश के माध्यम से रेवेन्यू जुटाना सरकार के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है।