विदेशी कंपनियों की रॉयल्टी पर लगाम लगाने की तैयारी
वाणिज्य और उद्योग मंत्रलय के औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग यानी डीआइपीपी ने एक प्रस्ताव तैयार किया है
नई दिल्ली (नितिन प्रधान)। सब कुछ ठीक रहा तो विदेशी कंपनियों से टेक्नोलॉजी लेने या उनके ब्रांड नाम का इस्तेमाल करने के एवज में भारतीय कंपनियों को भारी रॉयल्टी के भुगतान में राहत मिल सकती है। सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति के तहत विदेशी कंपनियों को दी जाने वाली रॉयल्टी की दरों की सीमा घटाने पर विचार कर रही है। इससे न केवल कंपनियों के पास छोटे घरेलू निवेशकों को लाभांश देने के लिए राजस्व बचेगा बल्कि ऐसे भुगतान के रूप में विदेशी मुद्रा के खर्च यानी बाहरी प्रवाह में भी कमी लायी जा सकेगी।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रलय के औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग यानी डीआइपीपी ने एक प्रस्ताव तैयार किया है जिसमें पहले चार वर्ष के लिए रॉयल्टी की दर को घरेलू बिक्री के चार फीसद पर सीमित किया जा सकता है। इसी अवधि में निर्यात आय पर रॉयल्टी की दर को सात फीसद तय किया गया है। डीआइपीपी ने इस आशय का एक कैबिनेट नोट तैयार किया है, जिस पर विभिन्न मंत्रलयों समेत कानून मंत्रलय की भी राय मांगी गई है।
सूत्र बताते हैं कि मौजूदा सरकार ने रॉयल्टी भुगतान पर सचिवों की एक समिति के एक अध्ययन से पाया कि जिन उत्पादों और टेक्नोलॉजी के एवज में विदेशी कंपनियों को रॉयल्टी का भुगतान किया जा रहा है, उससे विदेशी मुद्रा भंडार पर काफी दबाव पड़ पड़ रहा है। रॉयल्टी का यह प्रावधान विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी सेंध लगा रहा है। लिहाजा समिति ने नीति में बदलाव का सुझाव दिया। सरकार ने इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर अब रॉयल्टी की दरों में बदलाव का फैसला लिया है।
डीआइपीपी के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चूंकि ये बदलाव नीतिगत हैं इसलिए इन प्रस्तावों को संसद से मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी। सूत्रों के मुताबिक ट्रेडमार्क या ब्रांड के इस्तेमाल में दी जाने वाली रॉयल्टी के लिए घरेलू बिक्री के एक फीसद और निर्यात आय की दो फीसद राशि की अधिकतम सीमा तय करने का प्रस्ताव है। डिजाइन के इस्तेमाल पर करार की तारीख के बाद दस वर्ष तक की अवधि के लिए घरेलू बिक्री के एक फीसद और निर्यात आय के दो फीसद के बराबर रॉयल्टी तय करने का प्रस्ताव किया है। सरकार मान रही है कि 25 वषों में रायल्टी की दरों में कई बार फेरबदल करके इसकी सीमा को बढ़ाया गया है।
1991 में तैयार औद्योगिक नीति में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर वाले संयुक्त उद्यमों में एक करोड़ रुपये एकमुश्त रॉयल्टी भुगतान के साथ कुल घरेलू बिक्री पर पांच फीसद और निर्यात आय पर आठ फीसद रायल्टी भुगतान का प्रावधान किया गया था। यह भुगतान करार के अगले दस वर्षो में बिक्री के आठ फीसद से अधिक नहीं होना चाहिए। इसके बाद इसमें कई बदलाव हुआ। 1996 में प्रेस नोट-4 के तहत ऑटोमैटिक मंजूरी वाले प्रस्तावों में एक करोड़ की सीमा को बढ़ाकर दो करोड़ रुपये किया गया। अंतत: 2009 में रॉयल्टी भुगतान की नीति को बेहद उदार बनाते हुए रॉयल्टी भुगतान के लिए सरकारी मंजूरियों की जरूरत ही समाप्त कर दी गई।