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गोल्डमैन सैश ने मौजूदा आर्थिक संकट को 2008 से बड़ा बताया, विकास दर 6 फीसद से नीचे जाने का अनुमान

खपत में गिरावट को कुल वृद्धि में कमी में एक तिहाई योगदान है। एक कार्यक्रम में प्राची ने कहा कि फिलहाल नरमी की स्थिति है और वृद्धि के आंकड़े 2 फीसद नीचे आए हैं।

By NiteshEdited By: Published: Thu, 17 Oct 2019 06:30 PM (IST)Updated: Fri, 18 Oct 2019 08:50 AM (IST)
गोल्डमैन सैश ने मौजूदा आर्थिक संकट को 2008 से बड़ा बताया, विकास दर 6 फीसद से नीचे जाने का अनुमान
गोल्डमैन सैश ने मौजूदा आर्थिक संकट को 2008 से बड़ा बताया, विकास दर 6 फीसद से नीचे जाने का अनुमान

नई दिल्ली, पीटीआइ। वैश्विक कंपनी गोल्डमैन सैश ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटा दिया है। गोल्डमैन सैश के मुताबिक यह 6 फीसद से नीचे जा सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मौजूदा आर्थिक संकट 2008 से बड़ा है। गोल्डमैन सैश ने खपत में गिरावट को बड़ी चुनौती बताया है, लेकिन इसके लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के संकट जिम्मेदार ठहराने से इनकार कर दिया है। उसने कहा है कि आईएल एंड एफएस के पेमेंट संकट से पहले ही खपत में गिरावट शुरू हो गई थी। दरअसल कई लोगों ने खपत में नरमी के पीछे एनबीएफसी संकट जिम्मेदार ठहराया है।

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बता दें कि एनबीएफसी संकट सितंबर 2018 में शुरू हुआ। उस समय आईएल एंड एफएस में पहले पेमेंट संकट का मामला सामने आया था। उसके बाद इन संस्थानों से खपत के लिए वित्त पोषण थम गया।

ब्रोकरेज कंपनी गोल्डमैन सैश की वाल स्ट्रीट में मुख्य अर्थशास्त्री प्राची मिश्रा ने बताया कि खपत में जनवरी 2018 से गिरावट जारी है। जबकि आईएल एंड एफएस की ओर से चूक अगस्त 2018 की बात है। इसलिए यह काफी पुरानी बात है। खपत में गिरावट को कुल वृद्धि में कमी में एक तिहाई योगदान है। एक कार्यक्रम में प्राची ने कहा कि फिलहाल नरमी की स्थिति है और वृद्धि के आंकड़े 2 फीसद नीचे आए हैं। हालांकि, प्राची ने दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि के बढ़ने की उम्मीद जताई। इसके पीछे वजह आरबीआई की सस्ती मौद्रिक नीति को बताया गया है।

मालूम हो कि केन्द्रीय बैंक ने इस साल अब तक नीतिगत दर में पांच बार कटौती की है। इसी महीने में दर में 0.25 फीसद की कटौती की गई है। जिसके बाद नया दर 5.15 फीसद पर आ गया है. ऐसे में इस साल अब तक कुल मिलकर रेपो दर में 1.35 फीसद कटौती हो चुकी है। आर्थिक वृद्धि दर बढ़ने के पीछे कंपनियों के कर में कटौती जैसे उपायों को भी बताया गया है, ऐसा माना जा रहा है कि इससे धारणा मजबूत होगी और वृद्धि में तेजी आएगी।

उन्होंने निवेश और निर्यात में लंबे समय गिरावट की बात कही, लेकिन खपत में तेज गति से गिरावट को चिंता का कारण बताया। गौरतलब है कि जून तिमाही में वृद्धि दर छह साल के न्यूनतम स्तर 5 फीसद पर आ गई। उधर, आरबीआई की ओर से 2019-20 के लिए आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को कम कर 6.1 फीसद किया गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्वबैंक जैसी एजेंसियों ने भी वृद्धि दर के अनुमान को कम किया है। 


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