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RCEP नहीं, अमेरिका व ईयू से एफटीए भारत का अगला लक्ष्य; आरसेप में जाने पर भारत के छोटे उद्योग हो सकते थे तबाह

भारत ने 15 देशों के RCEP में जाने की बजाय अमेरिका व यूरोपीय यूनियन (ईयू) के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) करने का लक्ष्य तय किया है। भारत का यह भी मानना है कि RCEP में शामिल होने से भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम को धक्का लग सकता है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2020 08:22 PM (IST)Updated: Tue, 17 Nov 2020 07:53 AM (IST)
RCEP नहीं, अमेरिका व ईयू से एफटीए भारत का अगला लक्ष्य; आरसेप में जाने पर भारत के छोटे उद्योग हो सकते थे तबाह
अभी सरकार के मैन्यूफैक्चरिंग प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत भारत दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल उत्पादक देश बन गया है।

नई दिल्ली, राजीव कुमार। भारत ने 15 देशों के रिजनल कंप्रेहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) में जाने के बजाय अमेरिका व यूरोपीय यूनियन (ईयू) के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) करने का लक्ष्य तय किया है। भारत का यह भी मानना है कि RCEP में शामिल होने से भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम को धक्का लग सकता है। वहीं, आरसेप (RCEP) से जुड़ने पर भारत को निवेश के मामले में अन्य देशों की तरह चीन को भी महत्व देना पड़ता जो किसी भी सूरत में भारत को मंजूर नहीं है।

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फिर से भारत बन सकता था मोबाइल फोन का आयातक देश

वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक आरसेप में सहभागी बनने से भारत फिर से पूरी तरह से मोबाइल फोन का आयातक देश बन जाता। अभी सरकार के मैन्यूफैक्चरिंग प्रोत्साहन कार्यक्रम के तहत भारत दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल उत्पादक देश बन गया है और निर्यात भी लगातार बढ़ रहा है। वाणिज्य मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक 15 देशों ने आरसेप को लेकर जो हस्ताक्षर किए हैं, उसे 2022 तक अमल में लाया जाएगा जबकि कस्टम ड्यूटी का आधार वर्ष 2014 होगा। ऐसे में भारत का मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग तबाह हो सकता था।

चीन को भी देना पड़ता निवेश में अहमियत

वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक आरसेप समझौते के नियम के मुताबिक अगर कोई देश आरसेप के अलावा किसी अन्य देश को अपने यहां निवेश करने पर कोई लाभ देता है तो समान लाभ आरसेप से जुड़े देश को देना पड़ेगा। ऐसे में भारत अगर फ्रांस व अमेरिका की रक्षा कंपनियों द्वारा निवेश करने पर उन्हें लाभ देता है तो वही नियम चीन के लिए भी लागू होता जो भारत को कतई मंजूर नहीं हो सकता। मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक श्रीलंका या नेपाल को दिए जाने वाले लाभ मलेशिया को नहीं दिए जा सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक जिन देशों के साथ हमारे सीमा विवाद है, उन्हें हम आरसेप के कारण निवेश में संरक्षण या मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा नहीं दे सकते।

छोटे उद्योग को बचाने की कवायद हो जाएंगी बेकार

मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक कुछ साल पहले तक भारत के राष्ट्रीय झंडे तक का आयात हो रहा था जो राष्ट्रीय झंडा संहिता का उल्लंघन है। वैसे ही, अगरबत्ती, पाम ऑयल, काजू जैसे कई छोटे-छोटे उद्योग को बचाने के लिए सरकार द्वारा कदम उठाए गए हैं। हाल ही में सरकार ने टीवी, एसी जैसे आइटम की घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को प्रोत्साहित करने के लिए इनके आयात को प्रतिबंधित क्षेत्र में रखा है। मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक आरसेप में शामिल होने पर इन तमाम कोशिशों पर पानी फिर जाता।

अमेरिका व यूरोप से एफटीए फायदेमंद

मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक अमेरिका व यूरोप से मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) भारत के लिए हमेशा फायदेमंद रहेगा क्योंकि ये विकसित देश हैं और यहां भारतीय उत्पाद व सेवाएं अन्य देशों के साथ मुकाबला कर सकते हैं जबकि आसियान देशों में भारतीय उत्पाद मुकाबला नहीं कर पाते हैं। अमेरिका के साथ भारत का निर्यात आयात के मुकाबले अधिक है जबकि आरसेप से जुड़े चीन के साथ भारत का निर्यात आयात के मुकाबले काफी कम है।

आरसेप 15 देशों का समूह है जिनमें आसियान के 10 देशों के साथ चीन, जापान, साउथ कोरिया, न्यूजीलैंड व आस्ट्रेलिया शामिल हैं। इन देशों ने दो दिन पहले व्यापार समझौते को लेकर करार किया है। पहले भारत भी इसमें शामिल था, लेकिन पिछले साल भारत ने आरसेप से खुद को बाहर कर लिया था। 


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