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रघुराम राजन के मुताबिक 'मंदी' की चपेट में है देश की इकोनॉमी, PMO को ठहराया जिम्मेदार

RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक मैग्जीन में लिखे आलेख में कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था को सुस्ती के दौर से निकालने के लिए कई तरह उपाय किये जाने की जरूरत है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 03:00 PM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 08:44 AM (IST)
रघुराम राजन के मुताबिक 'मंदी' की चपेट में है देश की इकोनॉमी, PMO को ठहराया जिम्मेदार
रघुराम राजन के मुताबिक 'मंदी' की चपेट में है देश की इकोनॉमी, PMO को ठहराया जिम्मेदार

नई दिल्ली, पीटीआइ। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि भारत 'मंदी' के भंवर में फंस गया है और देश की इकोनॉमी की स्थिति भारी सुस्ती की ओर इशारा कर रही है। उन्होंने इस स्थिति के लिए पीएमओ में शक्ति के 'सेंट्रलाइजेशन' को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि मंत्रियों के पास शक्ति नहीं होने से भी यह स्थिति पैदा हो गई है। 'इंडिया टुडे' मैग्जीन में देश की अर्थव्यवस्था को सुस्ती के दौर से निकालने के लिए अपनी सिफारिशों में उन्होंने मौद्रिक, भूमि, श्रम बाजार में उदारीकरण पर जोर दिया। इसके साथ ही उन्होंने निवेश एवं आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए भी उपाय करने की बात कही है।

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इसके साथ ही रघुराम राजन ने प्रतिस्पर्धा बढ़ाने एवं घरेलू क्षमताओं को बेहतर बनाने के लिए भारत से विवेकपूर्ण तरीके से मुक्त व्यापार समझौते करने का आह्वान किया। राजन ने इस आलेख में लिखा है, ''हमें मौजूदा सरकार की सेंट्रलाइज्ड नेचर से यह समझने में मदद मिल सकती है कि गलती कहां पर हुई। प्रधानमंत्री के करीबी लोग और पीएमओ में बैठे कुछेक लोग ना सिर्फ फैसले लेते हैं बल्कि आइडिया और प्लान्स भी उन्हीं के होते हैं। पार्टी के पॉलिटिकल और सोशल एजेंडा के लिहाज से यह कारगर साबित होता है, क्योंकि इन क्षेत्रों में इन लोगों की विशेषज्ञता होती है।''

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की पूरी समझ नहीं होने के कारण ये आइडिया आर्थिक मोर्चे पर बहुत अधिक कारगर साबित नहीं होता है। राजन ने कहा कि पूर्व की सरकारें भले ही ढीले गठबंधनों पर आधारित थीं लेकिन उन्होंने लगातार आर्थिक उदारीकरण की दिशा में काम किया। 

राजन ने कहा, ''बहुत अधिक केंद्रीकरण, मंत्रियों के पास बहुत अधिक शक्तियां नहीं होने एवं दृष्टिकोण की कमी के कारण केवल पीएमओ के ध्यान देने के बाद ही सुधार से जुड़ी कोशिशों को बल मिलता है। पीएमओ जैसे ही दूसरे मुद्दों पर ध्यान देता है, यह प्रक्रिया ढीली पड़ जाती है।''


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