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फिक्स्ड रेट वाले होम लोन के बंद होने का खतरा

fixed rate home loanदेश के सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) ने इस समस्या को आरबीआइ के सामने उठाया है कि लंबी अवधि के लोन के लिए स्थायी ब्याज दर तय करने की कोई नई

By NiteshEdited By: Published: Sun, 15 Sep 2019 09:50 AM (IST)Updated: Sun, 15 Sep 2019 09:50 AM (IST)
फिक्स्ड रेट वाले होम लोन के बंद होने का खतरा
फिक्स्ड रेट वाले होम लोन के बंद होने का खतरा

जयप्रकाश रंजन, लेह। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने बैंकों की तरफ से ब्याज दर तय करने की व्यवस्था को बदल कर रेपो रेट आधारित कर दिया है। लेकिन इससे बैंकिंग सेक्टर में एक बड़ी समस्या पैदा हो गई है। यह समस्या ज्यादा अवधि की कर्ज योजनाओं के लिए ब्याज दरें तय करने को लेकर आई है। इस नई व्यवस्था ने फिक्स्ड रेट वाली होम लोन योजनाओं पर एक तरह से रोक लगा दी है, क्योंकि अब हर तरह के खुदरा लोन के लिए ब्याज दरों को रेपो रेट आधारित करना पड़ेगा। देश के सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) ने इस समस्या को आरबीआइ के सामने उठाया है कि लंबी अवधि के लोन के लिए स्थायी ब्याज दर तय करने की कोई नई व्यवस्था होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होगा तो होम लोन वितरण पर और ज्यादा विपरीत असर पड़ सकता है।

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लेह में एसबीआइ के चेयरमैन रजनीश कुमार ने बताया, 'रेपो रेट आधारित व्यवस्था होने के बाद तो स्थायी दर की स्कीमें ही खत्म हो गई हैं। पहले होम लोन हम 20 वर्षो तक के लिए स्थायी ब्याज की दरों पर देते थे। अब जब भी रेपो रेट में बदलाव आएगा तब ब्याज दरों को भी बदलना होगा।' कुमार के मुताबिक रेपो रेट लिंक्ड ब्याज दर की व्यवस्था ऑटो लोन या अन्य छोटी अवधि की योजनाओं के लिए तो अच्छी है, लेकिन लंबी अवधि के लिए कई बार स्थायी दर की योजनाएं पसंद की जाती रही हैं। जबकि अब रेपो रेट आधारित व्यवस्था का मतलब है कि अब सारे कर्ज के लिए ब्याज की फ्लोटिंग दरें (बार बार बदलने वाली) ही तय होंगी।

केंद्रीय बैंक ने ब्याज दर तय करने में पारदर्शिता लाने के लिए इसी महीने नया नियम लागू किया था जिसके तहत सभी तरह के खुदरा, पर्सनल, छोटे व मझोले कारोबारियो को दिए जाने वाले कर्ज के लिए रेपो रेट लिंक्ड ब्याज की दरें तय की गई हैं। आरबीआइ के निर्देश के बाद एसबीआइ ने अपनी खुदरा लोन के लिए ब्याज की दरों में भी कटौती का एलान किया है। आरबीआइ का कहना है कि बैंक अपनी तरफ से ब्याज दर घटाने के फैसले को लागू करने में देरी करते हैं इसलिए ब्याज दरों को रेपो रेट आधारित करना पड़ा है। इस वर्ष अब तक आरबीआइ रेपो रेट में 1.10 फीसद की कटौती कर चुका है। लेकिन बैंकों ने ग्राहकों को महज 0.50 फीसद तक का ही फायदा दिया।

बहरहाल, अब एसबीआइ समेत सरकारी क्षेत्र के 11 बैंक रेपो रेट लिंक्ड ब्याज दरें लागू कर चुके हैं। लेकिन कई बड़ी रेटिंग एजेंसियों और जानकारों ने इसे लंबी अवधि के लिए ग्राहकों व बैंकों के लिए उलटा असर वाला बताया है। मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ब्याज दरों को अपनी स्थिति के मुताबिक बदलने की बैंकों की क्षमता प्रभावित होगी। अभी तक बैंक कई बार रेपो रेट (जिस दर पर बैंक अपनी अल्पावधि जरुरतों के लिए आरबीआइ से कर्ज लेते हैं, इसी दर पर खुदरा कर्ज की दरें आम तौर पर तय होती हैं) में वृद्धि होने के बावजूद इसका बोझ ग्राहकों पर नहीं डालते हैं। लेकिन नई व्यवस्था के मुताबिक रेपो रेट में वृद्धि होने के साथ ही होम लोन या आटो लोन ग्राहकों की मासिक किस्त भी उसी रफ्तार से बढ़ानी होगी। 


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