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इन पांच कारणों से हुई टाटा संस से साइरस मिस्त्री की विदाई

साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद बुधवार को टाटा ग्रुप की कंपनियों में गिरावट देखने को मिली

By Surbhi JainEdited By: Published: Wed, 26 Oct 2016 11:23 AM (IST)Updated: Thu, 27 Oct 2016 08:53 AM (IST)
इन पांच कारणों से हुई टाटा संस से साइरस मिस्त्री की विदाई

नई दिल्ली: साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद बुधवार को टाटा ग्रुप की कंपनियों में गिरावट देखने को मिली। साइरस मिस्त्री की इस तरह विदाई को लेकर कई तरह की कयासबाजी हो रही है। माना जा रहा है कि रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच के मतभेदों के चलते ऐसा हुआ है। इन मतभेदों की वजह वो पांच बड़े फैसले हैं जो मिस्त्री ने अपने कार्यकाल के दौरान किए थे। इन्हीं फैसलों के कारण रतन टाटा ने उनकी विदाई पर मुहर लगा दी। जानिए उन फैसलों के बारे में जो उनकी विदाई की वजह बताए जा रहे हैं।

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विमानन सेवा:
साल 1953 में टाटा एयरलाइन्स का राष्ट्रीयकरण हो गया था और यह एयर इंडिया के तौर पर जानी जाने लगी। साल 1990 के बाद से टाटा ग्रुप ने विमानन क्षेत्र में आने के फिर से प्रयास शुरु किए। मिस्त्री की अध्यक्षता में साल 2015 में सिंगापुर एयरलाइन्स के साथ साझेदारी से टाटा ने लक्जरी विमानन सेवा विस्तार शुरू की, जिस वक्त इसका गठन हुआ था उस वक्त अधिकतर बजट विमानन सेवाएं घाटे में थीं। विस्तारा का अंजाम भी वही हुआ।

टाटा डोकोमो:
जापान की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी डोकोमो और टाटा टेलीसर्विसेज के बीच की कानूनी लड़ाई मिस्त्री के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित हुई। उन्होंने जिस तरह से इस पूरे मामले को संभाला रतन टाटा उससे नाखुश थे। दरअसल टाटा टेलीसर्विसेज ने साल 2009 में डोकोमो से साझेदारी की थी। डोकोमो ने कंपनी ने 26.5 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। हालांकि विदेशी निवेशकों के लिए सख्त नियम-कानून के चलते, ये साझेदारी सफल नहीं हुई। रतन टाटा डोकोमो के निवेश को बचाना चाहते थे, लेकिन मिस्त्री ने साझेदारी खत्म करने का फैसला किया। डोकोमो ने टाटा पर केस कर दिया। इसके लिए टाटा को जापानी कंपनी को 1.2 अरब डॉलर का भुगतान करना पड़ा।

टाटा मोटर्स:
जनवरी 2014 में टाटा मोटर्स के प्रबंध निदेशक कार्ल स्लिम ने आत्महत्या कर ली। ऑटोमोबाइल सेक्टर में अपनी पकड़ मजबूत बनाने में जुटी इस कंपनी को तगड़ा झटका लगा। उस वक्त मिस्त्री ने इसकी कमान संभाली। उस अवधि में कंपनी ने कई गाड़ियां लॉन्च कीं, पर इनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। ग्रुप को सबसे अधिक फायदा देने वाली टाटा मोटर्स के हालात बदतर होते गए। आखिरकार इस साल जनवरी में एयरबस के पुराने अनुभवी गुंटर बटसेक को कंपनी का मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया।

संपत्तियों की बिक्री:
टाटा ग्रुप के कर्ज को कम करने के लिए मिस्त्री ने चल एवं अचल की संपत्तियों की बिक्री की रणनीति बनाई। किसी भी कंपनी के लिए कर्ज कम करने का यह अंतिम विकल्प माना जाता है। इसी साल अगस्त में टाटा केमिकल ने पुणे की यारा फर्जिलाइजर को अपना यूरिया उद्योग बेचा। हॉस्पिटैलिटी श्रेणी में इंडियन होटल ने कर्ज घटाने के लिए अपनी कई विदेशी संपत्तियों की बिक्री की। इस साल मई में इसने ताज बोस्टन बेचने की बात कही। संपत्तियों के लिए मिस्त्री को खतरा माना जाने लगा।

टाटा स्टील:
भारतीय स्टील दिग्गज ने साल 2007 में एंग्लो-डच स्टील मेकर कोरस का 12 अरब डॉलर का अधिग्रहण किया। यूरोप में पैर जमाने में टाटा को इससे मदद मिली। उस वक्त साल 2012 के लंदन ओलंपिक का तैयारी चल रही थी। बड़े स्तर पर ढांचागत निर्माण हो रहा था। स्टील की मांग जोरों पर थी। लेकिन 2008 की मंदी से वैश्विक स्टील उद्योग को भारी झटका लगा। कोरस भी घाटे में चली गई। मिस्त्री ने छटनी से स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की लेकिन फायदा नहीं हुआ। आखिरकार उन्होंने इसी साल मार्च महीने में कोरस को बेचने का फैसला किया। रतन टाटा इससे खुश नहीं थे। वे शुरू से मिस्त्री को बिजनेस में दोबारा जान फूंकने के लिए कह रहे थे।

साइरस मिस्त्री के बारे में:
साइरस मिस्त्री टाटा संस के बोर्ड में साल 2006 में शामिल हुए थे। साल 2012 में वो ग्रुप के चेयरमैन बने। उन्हें टाटा ग्रुप का भविष्य माना जा रहा था, लेकिन चार साल के भीतर ही उन्हें इस पद से हाथ धोना पड़ा। रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच के मतभेदों को इसकी वजह माना जा रहा है। माना जा रहा है कि इन मतभेदों की वजह वो पांच बड़े फैसले हैं जो मिस्त्री ने अपने कार्यकाल के दौरान किए थे। इन्हीं फैसलों के कारण रतन टाटा ने उनकी विदाई पर मुहर लगा दी।


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