Coronavirus: राजकोषीय घाटे की चिंता का समय नहीं, बड़े आर्थिक पैकेज की जरूरत
एसबीआइ इकोरैप के अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.88 फीसद रह सकता है।
नई दिल्ली, राजीव कुमार। कोरोना संकट के बावजूद चालू वित्त वर्ष 2019-20 के राजकोषीय घाटे में अति मामूली बढ़ोतरी का अनुमान है जो अधिकतम 0.1 फीसद तक रह सकता है। हालांकि आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि अभी राजकोषीय घाटे की चिंता करने का समय नहीं है। इस समय सरकार को तमाम वित्तीय चिंताओं को छोड़ अधिक से अधिक पैकेज देना चाहिए। यहां तक कि केंद्र सरकार को राज्यों को भी अतिरिक्त कर्ज लेने की इजाजत देनी चाहिए।
SBI के अर्थशास्त्रियों के मुताबिक 3.88% तक पहुंच सकता है राजकोषीय घाटा
एसबीआइ इकोरैप के अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.88 फीसद रह सकता है जबकि संशोधित लक्ष्य 3.8 फीसद का है। पहले यह लक्ष्य 3.3 फीसद का था। यह मामूली बढ़ोतरी इसलिए संभव हो सकती है क्योंकि कोरोना की वजह से मार्च महीने में देश में टूरिज्म, ट्रांसपोर्ट, होटल व अन्य सेवा क्षेत्र काफी प्रभावित रहा। इससे चालू वित्त वर्ष (2019-20) की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च,2020) में जीडीपी की दर में कमी आएगी और इसका प्रभाव चालू वित्त वर्ष की विकास दर पर दिखेगा। एसबीआइ के मुख्य आर्थिक सलाहकार एसके घोष के मुताबिक अंतिम तिमाही के प्रभावित होने से चालू वित्त वर्ष की विकास दर में 1.4 फीसद की कमी आ सकती है जिस वजह से राजकोषीय घाटा 3.88 फीसद तक पहुंच सकता है।
राजकोषीय घाटे की चिंता का समय नहीं
वित्तीय विशेषज्ञों ने बताया कि सरकार को अभी राजकोषीय चिंता को छोड़ राज्यों के लिए बनाए गए वित्तीय नियम में भी ढील देना चाहिए, ताकि राज्य सरकार भी अतिरिक्त कर्ज लेकर कोविड-19 के साथ की लड़ाई में अपना योगदान दे सके। अर्थशास्त्री एम. गोविंद राव कहते हैं, वर्ष 2008 की मंदी के दौरान भी ऐसा किया गया था। अब भी समय की यही दरकार है कि राज्यों को अतिरिक्त कर्ज लेने के लिए कम से कम 50 आधार अंक की छूट मिलनी चाहिए। उन्होंने बताया कि सरकारी खर्च की वजह से अगर राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी होती भी है तो सरकार संसद को इस आपात स्थिति की जानकारी दे सकती है जिसकी इजाजत फिस्कल रिस्पांसिबलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (एफआरबीएम) कानून के तहत है।
आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक एफआरबीएम कानून इस बात की पूरी तरह से इजाजत देता है कि राष्ट्रीय आपदा, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसी कठिन स्थिति में आरबीआइ केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों को खरीद सकता है। सरकार इस प्रावधान के तहत राशि जुटा सकती है। एसबीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक अगले वित्त वर्ष 2020-21 में केंद्र और राज्य दोनों को 11 लाख करोड़ के कर्ज की जरूरत होगी, जिसे बैंक से प्रतिभूति की मांग, म्युचुअल फंड व एफपीआइ के फंड से उधार लेकर पूरा किया जा सकता है।
एक नामी अर्थशास्त्री ने तो इस संकट के समय गरीबों की मदद के लिए अतिरिक्त नोट तक छापने की सलाह दी है। उनका मानना है कि अतिरिक्त नोट छापने से राजकोषीय घाटे में भारी बढ़ोतरी होगी, लेकिन अभी उसकी परवाह करने जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने कोविड-19 के खिलाफ जंग लड़ने के लिए 2.2 लाख करोड़ डॉलर के पैकेज की मंजूरी दी है जो वहां के GDP का 10 फीसद है। भारत सरकार को बड़ा पैकेज देना चाहिए।